Friday, October 29, 2021

राजनीति का चक्कर भारी

 


--राजनीति का चक्कर भारी--


राजनीति का चक्कर भारी।

सांप-नेवले करते यारी।।

दोनों मिलकर बीन बजाकर।

सत्ता हथियाने की तैयारी।।1।।


सहयोगों की कसमें खाते।

हलाहलों के गुण समझाते।।

कालकूट सा चरित्र छुपाकर।

पीयूष मुखौटे ये दिखलाते।।2।।


मौका पाकर रूप बदलते।

झांसा देते चलते-चलते।।

सड़क-दवाई-पानी-पुलिया।

चारा तक भी स्वयं निगलते।।3।।


रक्तपात की कर तैयारी।

जहर उगलते बारी-बारी।।

गाँधीजी की शपथ उठाकर।

छुरी छुपाने की होशियारी।।

राजनीति का चक्कर भारी

सांप नेवले करते यारी।।4।।



Wednesday, August 18, 2021

पांचाली ललकार सुनाओ

 पांचाली ललकार सुनाओ 

दुशासनों को स्वयं मिटाओ


चक्रधारी भी आज मौन है,

रखवाला भी आज कौन है।

सभा सदों ने चुप्पी साधी,

सभासदों की नींव हिलाओ।।

पांचाली ललकार सुनाओ।

दुशासनों को स्वयं मिटाओ।।


राजसिंहासन नेत्रहीन है,

धर्मराज भी तेजहीन है।

अर्जुन की है तरकश खाली,

अर्जुन को अहसास कराओ।।

पांचाली ललकार सुनाओ।

दुशासनों को स्वयं मिटाओ।।


द्रोणगुरू की शिक्षा चुप है,

कृपाचार्य की दीक्षा चुप है।

भीष्म-विदुर की नीति रोती,

भीष्म-विदुर को याद दिलाओ।।

पांचाली ललकार सुनाओ।

दुशासनों को स्वयं मिटाओ।।



Thursday, June 17, 2021

KooTweet: संघर्ष करता भारतीय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म

 सोशल मीडिया की जब शुरूआत हुई तो इनमें गिने चुने नाम ही शामिल थे। कुछ ही समय में यूट्यूब, फेसबुक और ट्विटर ने अच्छा नाम कमाया। समय के साथ-साथ कुछ और भी प्लेटफॉर्म्स सामने आने लगे जैसे इंस्टाग्राम, स्नैटचैट, व्हाट्सएप, QQ और भी बहुत। लेकिन इन सब की दौड में कहीं न कहीं ऐसा लगने लगा था कि भारतीय डेवलपर पीछे छूटते जा रहे थे। जितने भी प्रसिद्ध सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स प्रचलित थे, उनमें से अधिकांश भारतीय नहीं थे। इनके भारतीय नहीं होने का बडा नुकसान यह भी था कि इनके सर्वर्स, टीम सभी भारत से बाहर स्थित थे, और इनको नियमित करना कठिन था। पिछले कुछ समय में देखा गया कि ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म्स ने बहुत से राष्ट्रों की सरकारों के ऊपर अपने निर्णय थोपना शुरू कर दिया था। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सोशल मीडिया अकाउंट डिलीट किया जाना इसका सबसे बडा उदाहरण था। इसके बाद बहुत से देशों की सरकारों से इनके मनमुटाव होने लगे। भारत में भी इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के एक्शन विवादित रहे। समय के साथ अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने तो भारत सरकार के कानूनों की अनुपालना करने का वायदा किया, लेकिन ट्विटर आखिरी समय तक अडा रहा। हालांकि आगे क्या होगा, यह भविष्य के गर्भ में है, समय के सात पता चल ही जाएगा।

पिछले कुछ समय में भारतीय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स भी सामने आए। कुछ इनमें से चल निकले तो कुछ चल बसे। Hike, ShareChat, DailyHunt, Koo App, KooTweet आदि। इनमें से Hike को बंद करना पडा था। बाकी के प्लेटफॉर्म अभी भी काम कर रहे हैं। इनमें मुझे दो एप बेहतर लगे। पहला है Koo App और दूसरा है KooTweet.। 

KooApp को ट्विटर के विकल्प के तौर पर पेश किया जा रहा है। भारत के अनेकों सेलिब्रिटीज, पॉलिटिशियन, ब्रांड इसपर आ चुके हैं। हाल ही में नाईजीरिया में ट्विटर बैन किये जाने के बाद वहां की सरकार ने अपना आधिकारिक koo हैंडल बनाया। यह इस भारतीय एप के लिए गर्व की बात है।

KooTweet एक और एप है। इसे फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम तीनों के विकल्प के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है। इसमें दिए जाने वाले फीचर्स इन तीनों प्लेटफॉर्म्स के मूलभूत फीचर्स का विकल्प उपलब्ध करवाते हैं। इनका कॉन्सेप्ट काफी अच्छा है। लेकिन इस प्लेटफॉर्म को शुरू हुए कुछ ही समय हुआ है और इनके संघर्ष की कहानी अभी शुरू हुई है। KooTweet के पास शुरूआती समय में न केवल संसाधनों का अभाव है, बल्कि बजट की भी समस्या है। इसके चलते बेहतरीन कॉन्सेप्ट वाला एप होते हुए भी इनको संघर्ष करना पड रहा है।

KooTweet एक विशेषता मुझे यह अच्छी लगी कि ये लोगों को सरकार द्वारा जारी किए गए पहचान पत्रों के आधार पर वेरिफिकेशन टिक उपलब्ध करवाते हैं। इससे लाभ यह होगा कि भविष्य में यदि कोई भी यूजर, कोई विवादित पोस्ट करता है तो पता चल सकेगा कि वो असली यूजर है अथवा फर्जी, क्योंकि वास्तविक यूजर के पास अपना वेरिफिकेश टिक होगा।



KooTwee  के सीईओ  जितेन्द्र राठौड हैं।  ये हरियाणा के खिरबी गांव के निवासी हैं। य़े वेबसाईट तथा एप निर्माण का कार्य करते हैं।  शुरूआत में KooTweet को एन्ड्रोईड पर लॉंच किया गया था। अब इसे वेबसाईट के माध्यम से कम्प्यूटर, लैपटॉप अथवा टैबलेट पर भी उपयोग किया जा सकता है

KooTwee  एप की टीम से बात करते हुए हमें ऐसा महसूस हुआ कि अगर कोई अच्छा सा फाईनेंसर, इनको फाईनेंस करता है, या कोई इंस्टीट्यूट इनको सपोर्ट करती है तो यह ऐप जल्दी ही अनोखा कारनामा करके दिखा सकता है। इस एप के पास 'विभव' (Potential) तो  है, लेकिन मार्ग कठिन है। ऐसे में इनको अपना ब्रांड स्थापित करने के लिए लगातार कठिन श्रम करना  पड रहा है। 

हाल ही में इन्होने टीम के विस्तार के लिए एक खुला प्रस्ताव भी रखा है। इनका प्रस्ताव है कि शुरूआती तौर पर जो इनसे जुडकर कार्य करना चाहे, कर सकता है। शुरूआत में जो भी इनकी टीम का हिस्सा बनेगा, उनको ये भुगतान नहीं कर पाएंगे, लेकिन जैसे ही इनको आय प्रारंभ होगी, ये अपनी टीम को पर्याप्त भुगतान भी करेंगे। ऐसे में अगर आपके क्षमता है इनकी टीम के साथ जुडकर कार्य करने की, तो आप भी इनसे संपर्क करके इनके साथ कार्य कर सकते हैं।

(इस लेख में दी हुई सामग्री मेरी अपनी विचारधारा पर आधारित है। मैं औपचारिक तौर पर इस व्यवसाय के साथ जुडा हुआ नहीं हूं। यह पेड प्रमोशन नहीं है, केवल जानकारी के उद्देश्य से यहां दिया जा रहा है।)

Tuesday, May 18, 2021

इजरायल-फिलीस्तीन विवाद और रूस

  पिछले कुछ समय से विश्व मीडिया में एक विषय जो लगातार रिपोर्ट किया जा रहा है, वो है इजरायल-फिलीस्तीन विवाद। इजरायल और फिलीस्तीन का विवाद नया नहीं है। मूलतः तो यह मामला सदियों पुराना है। इसका आधुनिक रूप कुछ दशकों पुराना है। समय-समय पर यह विवाद सुलग जाता है। पिछले कुछ दिनों से इस विवाद ने नया रूप ले लिया है। स्थिति लगातार बिगड रही है। लगातार दोनों ओर से हमले किये जा रहे हैं। इसी के चलते दोनों ओर के आम नागरिकों को इसका खामियाजा भुगतना पड रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी सामने आया है कि जमीन के अंदर सुरंगो का प्रयोग करते हुए हमास जैसे समूह लगातार हमले कर रहे हैं। इसके उत्तर में इजरायल से की गई कार्यवाही में बडी संख्या में ऐसी सुरंगों को नष्ट भी किया गया है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि हमास नाम का ये संगठन, फिलीस्तीनियों का प्रतिनिधि नहीं हैं। फिलीस्तीन की आधिकारिक सरकार अभी भी शांति के पक्ष में है। लेकिन दोनों ही देशों में ऐसे लोग हैं जो एक दूसरे के प्रति कट्टर भावनाएं रखते हैं। अभी मामला दो देशों के बीच में था, तब तक तो दुनिया को लगता था कि बीच-बचाव करके स्थिति को ठीक किया जा सकता है।  लेकिन अब अन्य देश भी अपने हित साधने के लिए इस विवाद में कूद रहे हैं। पाकिस्तान, तुर्की जैसे देश इस स्थिति का लाभ उठाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। इसी बीच रूस के भी इस विवाद में शामिल होने की संभावना लगातार बनती जा रही है।



इजरायल और गाजा पट्टी के इलाके में लगातार परस्पर बमबारी हो रही है। इन्ही के पडोस में एक देश है सीरिया। (मैप में देखें)  सीरिया में काफी समय तक हालात खराब बने रहे थे। अमेरिका  और यूके ने लगातार यहां कार्यवाहियां की थी। इस दौरान यहां के संसाधने को बहुत नुकसान पहुंचा था। इसके बाद रूस ने यहां पर अपने मिलिट्री बेस बनाए। रूस ने इस देश में काफी निवेश किया। वर्तमान में बताया जाता है कि रूस के छह से सात मिलिट्री बेस, सीरिया में स्थित हैं। सीरिया में बडी संख्या में ऐसे संगठन भी हैं जो इजरायल के खिलाफ हैं। इजरायल और फिलीस्तीन में लगातार विवाद के दौरान संभावना है सीरिया के यें संगठन भी इजरायल पर बमबारी करें। अगर ऐसा होता है तो पूरी संभावना है कि इजरायल इसके जबाब में कार्यवाही करेगा। ऐसे में रूस की चिंता होगी कि इजरायल की इस कार्यवाही में उनके मिलिट्री बेसों को नुकसान पहुंच सकता है।  इसलिए रुस, इजरायल पर कार्यवाही की घोषणा करेगा। अगर ऐसा होता है तो ये बहुत बडे विवादों को जन्म देगा क्योंकि रूस के ऐसा करने पर अनेकों देश भी इस विवाद में कूद पडेंगे, जो कि बिल्कुल भी अच्छा नहीं होगा। 

रूस के और इजरायल के संबंधों के आंकलन के लिए दो अलग घटनाओं को देखते हैं। सोवियत संघ (USSR) के विघटन से पहले लंबे समय तक अमेरिका और सोवियंत संघ में शीत युद्ध (Cold War) चला था। इस दौरान अमेरिका और इजरायल के अच्छे संबंध थे। तो स्पष्ट है कि इजरायल और रूस परस्पर विरोधी थे। कुछ समय पूर्व सीरिया में कार्यवाही के दौरान इजरायल ने भी सीरिया पर बमबारी की थी। उस समय भी रूस को चिंता थी कि उसके मिलिट्री बेसों को नुकसान पहुंच सकता है। इसके बारे में  25 दिसंबर 2019 को टाईम्स ऑफ इजराल के लेख में लिखा गया था कि नेतन्याहु ने इस बारे में जिक्र किया था। उनके अनुसार पुतीन ने कहा था कि यदि नेतन्याहू प्रधानंत्री न होते तो रूस ने इजरायल पर युद्ध घोषित कर दिया होता। आगे लिखा है कि नेतन्याहू ने पुतिन को विश्वास दिलाया कि वो सीरिया में आगे की कार्यवाही ध्यानपूर्वक करेंगे और पूरा ध्यान रखेंगे कि रूस को कोई नुकसान न पहुंचे। नेतन्याहू के इस रवैये से रूस और इजरायल के बीच टकराव की स्थिति उस समय बच गई थी। 

आज के समय में इजरायल और फिलीस्तीन के इस विवाद में बाकी देशों के कूदने की स्थिति लगातार बढती जा रही है। इससे स्थिति के लगातार बिगडने का खतरा बढता जा रहा है। हमें याद होना चाहिए कि प्रथम विश्व युद्ध भी ऐसी ही छोटी घटना से शुरू हुआ था, लेकिन बाद में उसने ऐसा रूप धारण कर लिया कि विश्व युद्ध हुआ, और इसके बाद एक और विश्व युद्ध हुआ जिसे द्वितीय विश्व युद्ध कहा गया। ऐसे में संयुक्त राष्ट संघ को चाहिए कि वो इजरायल पर एक तरफा कार्यवाही के प्रयास करने के स्थान पर, उस क्षेत्र में शांति की पहल करे। 


Thursday, February 18, 2021

विदेश नीति पर नेताओं के बयानों से उपजता भ्रम

 भारत गणराज्य में जब भी आम चुनाव होते हैं, तो हर बार चुनकर आने वाली नई सरकार से यह आशा की जाती है कि वो भारत की विदेश नीति में सकारात्मक करेगी और अन्य राष्ट्रों के साथ संबंधों पर एक स्पष्ट रुख रखेगी। इस उद्देश्य से विदेश मंत्री का महत्वपूर्ण पद किसी ऐसे व्यक्ति को सौंपा जाता है जो उद्देश्यों की पूर्ति कर सके। मंत्री के सहयोग के लिए विदेश सचिव एवं अन्य अधिकारीगण नियुक्त किए जाते हैं। विदेश मंत्रालय के आधिकारिक रुख और आधिकारिक बयानों को आमजन तक पहुंचाने के लिए प्रवक्ता भी नियुक्त किए जाते हैं, जो स्वयं ही एक सक्षम व्यक्ति होते हैं। इसके बाद सरकार विदेश नीति की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी इस कार्यालय को सौंप देती  है। फिर समय के साथ साथ विदेश नीति से संबंधित निर्णय लिए जाते हैं। विदेश नीति से संबंधित कौन सक्षम व्यक्ति क्या बयान देगा, यह भी सावधानी के साथ तय किया जाता है क्योंकि बयानों में थोडी सी गलती भी दो या अधिक राष्ट्रों के मध्य भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर सकती है। विभिन्न राष्ट्रों के विदेश मंत्री/विदेश सचिव अथवा अन्य समकक्ष/सक्षम लोग मिलते हैं और संबंधों को नई दिशा में ले जाने के लिए कार्य करते हैं। यह किसी भी राष्ट्र एवं सरकार के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है कि वो अपनी विदेश नीति में सफल हो। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह आशा की जाती है कि उस राष्ट्र के अन्य जिम्मेदार लोग, अनर्गल बयानबाजी करके स्थिति को जटिल नहीं बनाएं।

पिछले कुछ समय में यह देखने को आया है कि देश के अनेकों महत्वपूर्ण व्यक्ति चाहे वो राजनीति से संबंधित हों, पत्रकार हों, लेखक, कलाकार या अन्य प्रतिष्ठित क्षेत्रों से संबंधित हो, विदेश नीति पर अपनी टिप्पणी कर देते हैं। विभिन्न राष्ट्रों के साथ न केवल अपनी विदेश नीति, बल्कि उस राष्ट्र और उस के साथ संबंध पर अपनी निजी राय भी असावधानीपूर्वक  दे डालते है। आज के तीव्र संचार के युग में ऐसी टिप्पणियां द्रुत गति से दुनियाभर में अपनी जगह प्राप्त कर लेती है। दुनियाभर के प्रतिष्ठित मीडिया हाउसेज, निरंतर ऐसे बयानों पर लेखन/कवरेज करते हैं। कुछ मीडिया हाउसेज इन बयानों का उल्लेख करते हुए उनका उपयोग अपने प्रोपोगेंडा को प्रसारित करने में भी करते हैं। इससे जिस राष्ट्र के बारे में टिप्पणी की गई है, वहां के नागरिकों के मन में भ्रम उत्पन्न हो जाता है। अनेकों बार यह भ्रम, कडवाहट की ओर भी ले जाता है। इससे राष्ट्रों के नागरिकों के मन में परस्पर बंधुत्व की भावना की हानि होती है। इस स्थिति का लाभ उठाकर, कुछ समूह अथवा राष्ट्र अपने निजी हितों को साधने का कुटिल प्रयास भी करते हैं। बहुदा वो इसमें सफल भी हो जाते हैं। 

हाल ही में भारत के एक राज्य के मुख्यमंत्री ने, भारत के एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व, जो एक राजनैतिक दल के तात्कालीन अध्यक्ष थे,  का उल्लेख करते हुए दावा किया कि उनकी पार्टी भारत के पडोसी राष्ट्रों विशेषतः नेपाल और श्रीलंका में सरकार बनाने की योजना रखती है। (संदर्भ - New Indian Express ) । इस समाचार के लेख का उल्लेख करते हुए एक ट्विटर यूजर ने इस खबर से जुड़े एक रिपोर्ट को नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली और विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली को टैग करते हुए पूछा कि इस खबर की ओर वे नेपाल की सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। इसका जवाब देते हुए विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली ने जवाब दिया और कहा कि इस मुद्दे को नोट कर लिया गया है और भारत सरकार केसाथ औपचारिक विरोध दर्ज करा दिया गया है। उन्होंने कहा, "नोट कर लिया गया है और औपचारिक आपत्ति दर्ज करा दी गई है।" (संदर्भ - आज तक )

इस तरह के घटनाक्रम से एक अजीब स्थिति उत्पन्न होती है। जो उन मुख्यमंत्री महोदय ने कहा था, उसका कोई विशेष आधार नहीं है। यह भारत सरकार का आधिकारिक रुख नही हैं। यह भारत के किसी भी राजनैतिक दल का आधिकारिक रुख भी नहीं है। लेकिन इस तरह के बयानों से दूसरे राष्ट्र के नागरिकों के मध्य सकारात्मक संदेश बिल्कुल नहीं जाता। ऐसे बयान, भारत सरकार और भारत के विदेश मंत्रालय के समक्ष स्थितियों को अधिक जटिल बनाने का कार्य करता है। हमारें जिम्मेदार नेताओं और महत्वपूर्ण व्यक्तियों को समझना चाहिए कि वो जिस पद पर हैं, उस पद पर रहकर उनके द्वारा की जाने वाली हर टिप्पणी अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में उनको अपनी राय व्यक्त करते समय  अथवा टिप्पणी करते समय सावधानी रखनी चाहिए। विदेश मंत्रालय को भी ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों को सलाह देनी चाहिए कि वो विदेश नीति और विदेशों से संबंधित मामलों में अनावश्यक  टिप्पणी करने बचें। यदि टिप्पणी आवश्यक हो तो पूरी सावधानी के साथ ही अपनी बात रखें।

Thursday, January 14, 2021

हिट एंड धन

गाओं में ओरा परेखावे कछु बचौ नईपेट भरन कों काम कछु चईये।

मोडाय संग लेरमोडीय घर छोड़काज की तलाश में शहर चले गइये।।

काम कछु मिलो नहींआथे को मांग खायोसड़क किनारे सोय अब जइये।

मंत्री के छोरा नेदारू को नशा करसोते भयेन पे गाड़ी चढ़ाय दइये।।1।।

 

जैसी ये खबर लगीत्राहि त्राहि मच गईमंत्री को छोरा 'सेफरैनो चईये।

महंगी ये गाड़ी एफॉरन ते मंगाईयेगाड़ी ये फटाफट सर्विस कूं जइये।।

मजूर को मोडा मरोमरो भयो डरो रयोमौको मुआयनों पैले होनो चईये।

मंत्रीए खबर लगीएम्बुलेंस भेज दईमंत्री की छवि तो साफ रैनी चईये।।2।।

 

मीडिया वारे आय गएकैसो लगो पूछ रये, 'हिट एंड रनको केस होनो चईये।

मजूरे कछु पतो नईमोडा तो मर गयोनींद वाकी सरकारी बेड पे खुल रईए।।

पुलिस अब आय गईबयान लिख ले गईसंग वाके थोडो सो ज्ञान दे गईए।

मंत्री को छोराय चुपचाप डरो रियो नहीं तो मंत्री तेरे घर से उठा लईए।।3।।

 

मंत्री के गुर्गा आएधमकी वमकी दे गएमंत्री के छोरा को नाम नई चईये।

दो लाख रुपयालेकर के चुप हैजा वरना फिर तेरी जुबान खेंच लईए।।

मजूर फिर डर गयोडरके वो कै रयो गलती हमारे मोडा ते है गईए।

मोडाई हमारो, आगे आय सरकोगाड़ी तो अपने रस्ता रस्ता गईए।।4।।

 

एसपी फिर आय पौंचोप्रेस कॉन्फ्रेंस कर दइगलती तो ड्राइवर पे ते है गईए।

मंत्री को छोरा तोघर में सोय रयो,  मंत्री के ड्राइवर ने गाड़ी चढ़ाय दईये।।

मीडिया को पैसा पौंचोन्यूज फिर छप गईमंत्री को छोरा दोषी अब नईए।

'हिट एंड रनकोनाम पुरानो है गयो, 'हिट एंड धनतो कहनी अब चईये।।5।।

 



सर्फ पुदीना के सपने में ‘लोकतंत्र रक्षक’

 सुबह जागकर मैं जब फोन पर मॉर्निंग वॉक कर रहा था तभी भागता हुआ मेरा मित्र ‘सर्फ पुदीना’ आ पहुंचा। वैसे तो सर्फ पुदीना का असली नाम सर्फ पुदीन...