Wednesday, April 17, 2024

सर्फ पुदीना के सपने में ‘लोकतंत्र रक्षक’

 सुबह जागकर मैं जब फोन पर मॉर्निंग वॉक कर रहा था तभी भागता हुआ मेरा मित्र ‘सर्फ पुदीना’ आ पहुंचा। वैसे तो सर्फ पुदीना का असली नाम सर्फ पुदीना नहीं है लेकिन हम उसे सर्फ पुदीना ही कहते हैं। अब सर्फ पुदीना क्यों कहते हैं इस के बारे में कभी और बात की जाएगी। 

हां तो सर्फ पुदीना आ पहुंचा। मैने पूछा “कैसे सुबह सुबह हांफ रहे हो सर्फ पुदीना। क्या हो गया? ”

सर्फ पुदीना - “यार मित्तल जी। कुछ नहीं। मैने आज एक सपना देखा। सपना देखने के बाद मुझ से रहा नहीं गया और मैं तुरंत भागकर आ गया सपना बताने के लिए।”

मैं - “ आज से करीब डेढ सौ साल पहले ग्राहम बेल अंकल ने एक आविष्कार किया था। उसका ही यूज कर लेते”

सर्फ पुदीना - “ क्या मतलब ”

मैं - “ अरे भाई फोन। फोन कर लेते”

सर्फ पुदीना - “ नहीं यार मित्तल जी। फोन पर बात करने में मजा नहीं आता। मुझे लगा कि आमने सामने ही बताउं ”

मैं - “ हां तो बताओ क्या हुआ ”

फिर सर्फ पुदीना के चेहरे पर मिश्रित भाव आ गया। उसने सपना बताना शुरू किया।  उसने बताया- मैं सो रहा था। फिर सपना आया। सपने में मैने देखा कि एक आदमी जा रहा है। वो थोडा थका परेशान सा लग रहा था। मैने पूछा कि भाई कौन हो? तो उस आदमी ने बताया कि उसका नाम लोकतंत्र है।

सर्फ पुदीना - “ अरे तुम मिल गए। तुम ठीक तो हो। सुना है कि तुम खतरे में आ गये हो। ”

लोकतंत्र - “ नहीं। मैं खतरे में नहीं हूं। बस थोडा सा परेशान हूं।”

सर्फ पुदीना - “ तुम्हारी उम्र कितनी है? 75 साल?”

लोकतंत्र - “ नहीं। मेरी उम्र तो हजारों साल की है। पर मेरी वर्तमान स्वरूप की उम्र 75 साल है”

सर्फ पुदीना - “ लेकिन मैने सुना है कि तुम खतरे में हो। आजकल कुछ लोग कह रहे हैं कि तुम खतरे में हो। मैं तुम्हे बचाना चाहता हूं। बताओं क्य करूं तुम्हारी हिफाजत के लिए। तुम कमजोर हो गये हो क्या”

इतना सुनते ही लोकतंत्र नाम का वो आदमी जमीन पर बैठ गया। देखते ही देखते वो पेड बन गया। एक विशाल पेड। उसकी जडें बहुत गहरी थीं। जमीन में काफी गहरी। एक छायांदार और फलदार पेड। देखनें में लग रहा था कि हवा का एक छोटा सा झोंका आया था तो उसके कुछ फल जमीन पर गिर गए थे और बेचारे कुछ भूखे पक्षी उस फल को खाकर अपना पेट भर रहे थे। फिर वो पेड बोलने लगा।

लोकतंत्र - “ देखो। मेरी जडें कितनी गहरी हैं। क्या तुमको लगता है कि कोई मेरी जडों को हिला सकता है। इतना आसान नहीं है मेरी जडों को हिलाना। मेरे फल को गरीब और कमजोर लोग खाकर अपना पेट पालते हैं। मैं अगर मिट गया होता तो ये लोग भी बहुत खराब हालातों में होते।”

सर्फ पुदीना - लेकिन वो लोग कह रहे हैं कि तुम खत्म होने वाले हो। और वो तुम्हे बचाने की बात कर रहे हैं।

तभी वहां पर कुछ लोग आ गए। उनकी कमीज पर ‘लोकतंत्र रक्षक’ लिखा हुआ था। उन्होने कहा - “ देखो भाई सर्फ पुदीना। ये लोकतंत्र का पेड खतरे में है। हम इसे बचाने आए हैं। हम इसे बचाकर ही रहेंगे।

सर्फ पुदीना -“ लेकिन इस को तो कोई खतरा नजर नहीं आ रहा। अगर तुम्हे लग रहा है कि खतरा है तो कोई सोर्स बताओ इस जानकारी का”

लोकतंत्र रक्षक - “ जानकारी का सोर्स है - ‘ट्रस्ट मी ब्रो’। ट्रस्ट मी, ये खतरे में हैं।”

सर्फ पुदीना - “ ठीक है। लेकिन मुझे लग रहा है कि इसे कोई खतरा नहीं है”

लोकतंत्र रक्षक - “ सर्फ पुदीना। तेरी आंखों पर पट्टी लगी हुई है। तुझे दिख नहीं रहा खतरा। और फिर मैने बोला कि खतरा है तो खतरा है। मैं बहुत समझदार हूं ।”

सर्फ पुदीना - “अच्छा। ठीक है। अगर तुम इसे बचाने आए हो तो तुम्हारे हाथों में ये कुल्हाडी क्या कर रही है। कुल्हाडी हाथ में लेकर तुम इस लोकतंत्र के पेड को कैसे बचाओगे।”

लोकतंत्र रक्षक - “तुम मूर्ख हो। ये कुल्हाडी मैने इसे बचाने के लिए ही रखी है। इस पेड को मजबूत बनाने के लिए ही ये कुल्हाडी लाया हूं”

सर्फ पुदीना - “ तुम्हारे इरादे नेक नहीं लग रहे।”

लोकतंत्र रक्षक - “ तुम चुप रहो। हमें बोलने दो। हमें बोलने का अधिकार इस पेड ने दिया है। एकदम चुप हो जाओ”

सर्फ पुदीना - “ बडी अजीब बात है। मुझे चुप करवा कर खुद बोलने के अधिकार का फल खा रहे हो”

तभी वहां पर एक नवयुवक आया। करीब 18-20 साल का लग रहा था। उसकी कमीज पर मतदाता लिखा हुआ था। उसके हाथ में पानी का जग था। जग पर मतदान लिखा हुआ था। वो मतदान वाले जग में से लोकतंत्र के पेड की जडों में पानी देने वाला ही था तभी लोकतंत्र रक्षक चिल्लाया - “ क्या कर रहे हो मूर्ख। देखते नहीं कि ये खतरे में है।”

मतदाता - “ मैं इसे 75 सालों से पानी देता आया हूं। मैने पानी और खाद देकर इसे बडा किया है। मैं इसे जानता हूं। ये खतरे में नही हैं।”

लोकतंत्र रक्षक - “चुप रह। एकदम चुप। तू मूर्ख है। तुझे कुछ नहीं आता। इसे खतरा है।”

मतदाता- “ पिछले सालों में मैने बहुत बार ऐसा शोर सुना है। मैं  इसे हर बार खाद और पानी देता हूं। पेड लगातार मजबूत हो रहा है”

फिर मतदाता ने मतदान वाले जग में से लोकतंत्र के पेड को पानी दिया। पानी मिलने ही पेड की जडें और गहरी हो गई। पेड ने गर्जना की और तेज हवा चली। उस तेज हवा से लोकतंत्र रक्षक की कमीज उड गई और उसकी दूसरी कमीज दिखने लगी। दूसरी कमीज पर बहुत सारी डिजायन बनी हुई थी। उन पर लिखा हुआ था - सत्ता की भूख, सोशल मीडिया का ज्ञान, ब्रेनवॉश, फेक न्यूज, प्रोपगेंडा, अज्ञात फंडिंग आदि।


फिर सर्फ पुदीना ने लोकतंत्र के पेड से उसकी मजबूती का राज पूछा।

लोकतंत्र “ मेरी शक्ति का वर्णन संविधान नाम की किताब में है। किताब को 75 साल पहले  299 लोगों ने करोडों लोगों की राय से लिखा था। मेरी शक्ति का स्त्रोत भी वो संविधान ही है”

सर्फ पुदीना -  “ और उस संविधान की शक्ति का स्त्रोत क्या है?”

लोकतंत्र - “ संविधान की प्रस्ताव के शुरूआती शब्द - हम भारत के लोग। यानि भारत के लोगों से ही संविधान को शक्ति मिलती है। और उस संविधान से मुझे खाद और ऊर्जा मिलती है। जब तक संविधान है, मुझे कोई खतरा नहीं है”

सर्फ पुदीना - “ पर अगर किसी ने वो संविधान ही हटा दिया तो?”

लोकतंत्र - “ नहीं। संविधान कोई मृत पुस्तक नहीं है। यह सजीव पुस्तक है। इसकी शक्ति भारत के मतदाता से आती है। इसलिए ये खतरे में नहीं है”

सर्फ पुदीना - “ लेकिन वो लोग जो कह रहे हैं तुम खतरे में हो, उनका क्या”

लोकतंत्र - “तुमने देखा न, उनके हाथों में कुल्हाडी थी। फिर भी पूछ रहे हो”

सर्फ पुदीना - “हां। समझ गया। अब सब समझ गया। अच्छा एक बात और बताओ। तुम्हे और मजबूत कैसे बनाया जाए”

लोकतंत्र - “बस मतदान वाले दिन मतदान कर आओ। आंखें और कान खुली रखो। किसी के बहकावे में मत आओ। तुम खुद शक्तिशाली हो। और जब तक ये सब है, तब तक मैं सुरक्षित हूं”

फिर सर्फ पुदीना ने मुझे बताया - “ इतना बात कर रहे थे कि मेरी नींद खुल गई। मित्तल जी, अब मुझे शंका है”

मैं - “ कैसी शंका।”

सर्फ पुदीना - “ ये सब सुनने में तो ठीक लग रहा है, लेकिन ये था तो सपना ही। मान लो लोकतंत्र की रक्षा वाली कमीज पहने कुल्हाडीधारी लोग सही कह रहे हों, मान लो वास्तव में ही खतरा हो तो?”

मैं - “ तुम अपनी राय खुद बनाओ। खुद समझदार बनो। खुद दुनिया को देखो। लोकतंत्र के पेड ने जो कहा वो सही था। और मान लो कि वो खतरे में हो, तो सबसे पहले तुम उसकी रक्षा के लिए जाना। तुम तो खुद शक्तशाली हो न।”

सर्फ पुदीना - “ सही है। मैं चाहता हूं कि उसे खतरा न हो। लेकिन मित्तल जी। एक समस्या और है?”

मैं - “ वो क्या?”

सर्फ पुदीना - “ आप जो मेरे और आपके बीच की बातचीत लिख रहे हो, वो भी तो आपके दिमाग की कल्पना है। वास्तव में तो मैं हूं ही नहीं। लोग जो हमारी बातचीत पढ रहे हैं, वो भी तो कल्पना ही है। अगर वास्तविक दुनिया जिसमें आप रहते हों वो अलग हुई तो?”

मैं - “ भाई सर्फ पुदीना। बात मान लो काल्पनिक है, पर तर्क तो हमारे सही हैं न। लोग तो समझदार हैं न। वो सब अपने हिसाब से निर्णय़ लेंगे। बस भविष्य में कोई ऐसी घटना, जिसके होने की संभावन बहुत कम है, उसके होने का डर दिखाकर लोग तुम्हारा सुख चैन छीनना चाहेंगे। पर तुम अपना मस्तिष्क स्थिर बनाए रखो। खुद सोचो और खुद राय बनाओ। उसके हिसाब से निर्णय लो। पर इन सब में यह मत भूल जाओ कि तुम्हारी एक निजी जिंदगी भी है। वो भी तुम्हे आगे लेकर जानी है। तुम्हारे दोस्त, पडौसी, परिवार ये सब भी हैं। तुम्हारे लिए ये लोग भी महत्वपूर्ण हैं। कुछ बुरा होने के डर से इन से संबंध खराब मत करो। कुछ बुरा न हो जाए इसके लिए सजग हो सकते हो, लेकिन जो हुआ ही नहीं, जो भविष्य में है, उसकी चिंता करके वर्तमान और भविष्य न बिगाडो”

सर्फ पुदीना - “ लोग तो कहते हैं कि बातचीत किया करो। राजनैतिक बातचीत करो। भोले मत बनो, सच्चाई से मत भागो।”

मैं - “ हां। बात करो। लेकिन उन लोगों से करो जो सकारात्मक चर्चा करना चाहते हो। कुछ सीखना कुछ सिखाना चाहते हों। अगर कोई हठी बनकर, खुद को सबसे समझदार मानकर आपको मूर्ख समझकर गलत साबित करना चाहे तो उस से चर्चा करने में तो केवल समय ही खराब होगा। इससे अच्छा है कि तुम ‘बुक रीडिंग’ करके ज्ञान में बढोतरी करो”

सर्फ पुदीना - “ बात तो सही है। एक बात और है....”

मैं - “ आगे कोई बात बाद में करेंगे। लोग हमारी यहां तक की बातचीत ही शायद न पढें। और कोई यहां तक आ भी गया हो तो बोर हो गया होगा। इसलिए आगे की बात कभी और...”

इसके बाद सर्फ पुदीना अपने घऱ चला गया। पर इस बार उसके चेहरे से चिंता गायब थी और मुक्त सोच उसके चेहरे पर झलक रही थी।




सर्फ पुदीना के सपने में ‘लोकतंत्र रक्षक’

 सुबह जागकर मैं जब फोन पर मॉर्निंग वॉक कर रहा था तभी भागता हुआ मेरा मित्र ‘सर्फ पुदीना’ आ पहुंचा। वैसे तो सर्फ पुदीना का असली नाम सर्फ पुदीन...