Tuesday, October 13, 2020

बाल अपराध या बाल अपचारिता?

 

बाल अपराध या बाल अपचारिता?

अक्सर समाचार पत्रों में बाल अपराधों का उल्लेख होता है। समय समय पर अवयस्कों द्वारा किए जाने वाले अपराध, लोगों को विचार करने पर विवश करते हैं। अनेकों बाल अवयस्कों द्वारा किये जाने वाले अपराध गंभार प्रकृति के भी होते हैं, जिनके लिए आमजान की भावना होती है कि उन्हे वयस्कों की भांति ही दंड दिया जाना चाहिए। अधिकांश बार इनके द्वारा किये जाने वाले अपराधों की प्रवृत्ति गंभीर नहीं होती, किन्तु सामान्य अपराधों की भी बढती संख्या समाज के लिए चिंता का बिषय है।

अगर बात बाल अपराधों की कानूनी भाषा की करें, तो अधिनियमों, अनुच्छेदों एवं आधाकारिका दस्तावेजों में बाल अपराध शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है। बाल अपराध के स्थान पर ‘बाल अपचारिता’ का प्रयोग किया जाता है। इसके पीछे भावना यह है कि बालक कभी अपराधी नहीं हो सकते। वह ह्रदय से कोमल एवं विकार रहित होते हैं। उनके द्वारा किये जाने वाले ‘अपराध’, किसी विशेष ष़डयंत्र अथवा दुर्भावना से प्रेरित नहीं होते हैं। ऐसे में उन्हे ‘बाल अपराधी’ कहना अनुचित है। विभिन्न बुद्धिजीवियों ने ‘बाल अपचार’ की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं।

डा. पी. एन. वर्मा के अनुसार- “बाल  अपचारिता से अभिप्राय कर्तव्यों की उपेक्षा अथवा उल्लंघन से है, एक गलती से है।”

रॉबिन्सन के शब्दों में- “बाल अपचारिता से अभिप्राय आवारागर्दी, भिक्षावृत्ति, शैतानी, दुर्व्यवहार, उद्दंडता आदि प्रवृत्तियों एवं गतिविधियों से है।”

बाल अपचारिता के पीछे अनेकों कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ कारण निम्नानुसार है-

1.      पारिवारिक माहौल- किसी भी बालक के विकास में उसके परिवार का बिशेष महत्व होता है। अगर पारिवार का माहौल अनुचित, अनैतिक है, अथवा परिवार में वेश्यावृत्ति, नशे, अश्लीलता, आपराधिक गतिविधियां होती हैं, तो ऐसे में बाल के विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव प़डता है, और वह अपचारिता की ओर बढ सकता है।

2.      आर्थिक कारण- किसी भी बालक के लिए यदि अत्यंत आर्थिक कठिनाई का दौर चल रहा होता है, अथवा उसे किसी कारण से मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा करने में समस्या होता है, तो वह बाल अपचारिता में लिप्त हो सकता है।

3.      शिक्षा का अभाव- अक्सर देखने में आता है कि बाल अपचारियों में अधिकांशत वह बालक होते हैं, जिन्हे पर्याप्त शिक्षा का अवसर नहीं मिला।

4.      अश्लील साहित्य- अगर बालक को कम उम्र में अश्लील साहित्य तक पहुंच मिल जाती है, तो वह उनके सम्मोहन में भ्रमित होकर अनैतिक कार्यो की ओर बढ सकता है। ऐसे में उसके बाल अपचारी बनने की प्रबल संभावनाएं होती हैं। आज के दौर में इंटरनेट तक बच्चों की बढती पहुंच, उन्हे अश्लील सामग्री तक सरलता से पहुंच बनाने में बडी भूमिका निभी रही है।

5.      माता-पिता के साथ संबंध- किसी बालक के व्यक्तिव निर्माण में उसके माता पिता की महती भूमिका रहती है। लेकिन यदि माता-पिता के साथ बच्चे के संबंध अच्छे न हों, माता-पिता बच्चे के लिए पर्याप्त समय न दे पाएं, माता पिता में परस्पर विवाद होता हो अथवा उनके तलाक होने के कारण वो अलग अलग रह रहे हों तो ऐसी स्थिति का प्रतिकूल प्रभाव बच्चे के मस्तिष्क पर पडता है और  वह अपचारिता की ओर कदम बढा सकता है।

6.      शारीरिक अक्षमता- यदि कोई बालक शारीरिक रूप से अक्षम हैं और उसके परिचित, परिजन अथवा परिवेश द्वारा उसका मखौल बनाया जाता है, या उसके प्रति शून्यता रखी जाती है तो ऐसा व्यवहार, उस शिशु के ह्रदय को नकारात्मक संवेग प्रदान करता है, जिससे वह अपचारिता की ओर जा सकता है।

7.      संगति- किसी भी बालक, अथवा वयस्क के व्यवहार, जीवन-शैली में उसकी संगति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अगर कोई बालक ऐसी संगति में रह रहा है जिसमें गाली-गलौच, नशा, अपराध, अश्लीलता, वेश्यावृत्ति, चोरी, अपराध जुआ आदि में लिप्त व्यक्ति हों, तो उस बालक पर इसका गहरा प्रभाव पडता है, और वह भी ऐसे मार्ग पर बढ सकता है। इसी कारण के चलते राजेश कुमार बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान (1989 किं. लॉ. रि. 560 राजस्थान) तथा गोपीनाथ घोष बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल (1984 एस.सी.सी. क्रि. 478) केस के संदर्भ को लेकर हम जान सकते हैं कि किसी बाल अपचारी को, आप अपराधियों के साथ जेल में रखने के स्थान पर सुधार गृहों में क्यों रखा जाता है।

यह कुछ कारण है जो किसी बालक को अपचारिता की ओर धकेल सकते हैं। किसी बालक को अपचारिता से कैसे दूर ऱखा जाएं, अथवा किसी बाल अपचारी को कैसे सही दिशा में लाया जाए, इस बारे में हम बाद में चर्चा करेंगे।

(डिस्क्लेमर- इस लेख में प्रस्तुत विचार मेरे अपने है। आपको इनसे सहमत अथवा असहमत होने का पूरा अधिकार है। इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाना बिल्कुल भी नहीं है।)

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