Sunday, December 27, 2020

Quora पर - स्मार्टफोन के अधिक उपयोग की आदत

 Quora एक वेबसाईट है जिस पर एक बडी सक्रिय कम्यूनिटी उपस्थित है। इस पर लोगों के द्वारा सवाल जबाब किए जाते हैं। मुझसे एक उपयोगकर्ता के द्वारा पूछा गया कि मोबाईल को चलाने की आदत से कैसे बचा जाए। तो वहां मैने जबाब देने का प्रयास किया। मैं यहां पर आपके साथ भी उसे साझा कर रहा हूं-

आपने प्रश्न पूछा है कि मोबाइल चलाने की लत से कैसे छुटकारा पाएं । मोबाईल चलाने की लत से छुटकारा पाने से आपका तात्पर्य मेरे अनुमान में यह है कि बहुत ज्यादा मोबाईल चलाने से कैसे बचा जाए। आपका यह प्रश्न न केवल आपका, बल्कि बहुत लोगों का है। मोबाईल के अधिक उपयोग से बचने के लिए हमें इस पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी। जिसके लिए हम कुछ उपाय कर सकते हैं-

  1. मोबाईल का उपयोग अन्य गैजेट्स जैसे अलार्म क्लॉक या कैल्कुलेटर आदि के तौर पर करने के बजाय आप अलग से ही ये गैजेट्स खरीद लें। उदाहरण के तौर पर आप सुबह के लिए अलार्म मोबाईल में भरते हैं तो सुबह सुबह ही आप अलार्म के साथ जागने पर मोबाईल को हाथ में लेकर अलार्म को बंद करेंगे। ठीक उसी समय आपको कुछ नोटिफिकेशन दिखेंगे या कुछ सर्च करने की आपकी इच्छी होगी। ऐसा करने पर आपको पता ही नहीं चलेगा कि कब आपके सुबह का मूल्यवान समय इस मोबाईल की भेंट चढ गया।
  2. अगर आप ऑनलाईन क्लासेज/मीटिंग लेते हैं, या ईमेल आदि चेक करते हैं, तो इसके लिए बेहतर होगा कि यदि आपके पास लैपटॉप/डेस्कटॉप आदि है तो उसका उपयोग करें। इसका कारण है कि अगर आप मोबाईल पर ये काम करते हैं, तो आपको अन्य नोटिफिकेशन आदि दिखने पर या कुछ और एप दिखने पर आपका ध्यान उधर जाएगा और आपका समय एक बार फिर से मोबाईल की भेंट चढ जाएगा।
  3. सोशल मीडिया का उपयोग करते समय आप को सतर्कता बरतनी चाहिए। अगर आपका बिजनेस ही सोशल मीडिया पर आधारित हैं या आप कोई ऐसा कार्य करते हैं जिसके लिए सोशल मीडिया आवश्यक है (जैसे मार्केटिंग, पत्रकारिता आदि), तब तो आप उसका उपयोग आवश्यकतानुसार कर सकते हैं। लेकिन अगर आप केवल निजी उपयोग के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, तो सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी समान उपस्थिति बनाने के स्थान पर कुछ चुनिंदा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ही सक्रिय रहें। इसके अलावा सोशल मीडिया के वो ऐप जिन्हे आप ज्यादा उपयोग में लाते हैं, उनको मोबाईल में नहीं रखें।(उदाहरण के तौर पर मैं पिछले कई बर्षों से फेसबुक का ऐप अपने फोन में नहीं रखता।) इससे आपको नोटिफिकेशन से बचने में सहायता होगी। सोशल मीडिया का उपयोग आप लैपटॉप/डेस्कटॉप से करें। यदि आवश्यक हो तो आप मोबाईल पर सोशल मीडिया का उपयोग केवल ब्राउजर (जैसे क्रोम, ओपेरा) में लॉगिन करके ही करें। इससे आपके सोशल मीडिया उपयोग में आश्चर्यजनक रूप से कमी आएगी।
  4. जिन एप के नोटिफिकेशन बहुत ज्यादा आवश्यक नहीं है (जैसे कोई गेम, फूड ऑर्डर एप, शॉपिंग एप) उनके नोटिफिकेशन को बंद कर दें। शॉपिंग एप्स का उपयोग फोन पर करने के बजाय या तो उन्हे लैपटॉप/डेस्कटॉप पर उपयोग करें या फोन के ब्राउजर से उन्हे उपयोग में लाएं। ये एप इस प्रकार से डिजायन होते हैं कि आप एक बार इनका उपयोग करते हैं, तो स्क्रॉल करते जाते हैं, आपको अपनी पसंदीदा चीजें दिखती जाती हैं। और आपका समय नष्ट होता जाता है।
  5. ईमेल पर आने वाले अनावश्यक नोटिफिकेशन (जैसे नए ऑफर्स, सोशल मीडिया नोटिफिकेशन आदि) को बंद कर दें। आपको आभास नहीं होता लेकिन आपका काफी कीमती समय, इन के कारण नष्ट होता है।
  6. एक कठिन निर्णय लें। अपने व्हॉट्सएप के नोटिफिकेशन बंद कर दें। यदि व्हाट्सएप के मैसेज समय पर देखना आवश्यक हो (उदाहरण- आपका कोई बिजनेस है, आप पढाई संबंधी चीजें देखते हैं या आप कोई ऐसा कार्य करते हैं जिसमें तुरंत अपडेट चाहिए जैसे पत्रकारिता आदि) तो व्हाट्सएप नोटिफिकेशन को बंद न करके केवल म्यूट कर दें। अगर यह न कर सकें तो व्हाट्सएप पर सभी गैर जरूर ग्रुप/लोगों को म्यूट कर दें, केवल जरूरी चैट्स को ही अनम्यूट रखें।
  7. कुछ ऐसा कार्य करें जिसमें आपके समय का सदुपयोग होता हो। जैसे लैपटॉप पर आर्टिकल लिखना, किताबें पढना, कविता लेख आदि लिखना, संगीत सीखना, बागवानी करना, सबसे मुश्किल काम (पढाई) करना, या कोई अन्य काम करना। जब आप किसी अन्य रुचिकर काम में मग्न होते हैं, तो आपको मोबाईल की याद नही सताती है।
  8. आपके फोन में ऐसे ऐप रखें जो आपके फोन यूजेज टाईम को ट्रैक करते हों। ऐसे बहुत सारे एप्स प्ले स्टोर या एप्पल स्टोर पर उपलब्ध हैं, जो हमें बताते हैं कि हमने दिनभर में कितना फोन चलाया और कितना समय किस एप पर बिताया। इससे हमें पता चलता है कि हमारा समय कहां अनावश्यक नष्ट हो रहा है। अगर आप इन एप्स के माध्यम से पता लगा लेते हैं कि आपका समय कहां नष्ट हो रहा है और फिर भी समय नष्ट करना बंद नहीं करते , तो इसका अर्थ है कि या तो आपके पास आवश्यकता से अधिक समय है या आप समय की कीमत नहीं पहचान रहे। ऐसे में आपको फोन चलाने से रोकना अत्यंत कठिन है।
  9. जब आप अपना काम कर रहे हों (जैसे स्टूडेंट्स के लिए पढाई करना, ड्राईवर के लिए ड्राईविंग करना, खिलाडी के लिए खेलना, गृहणी के लिए गृहकार्य करना आदि) तो फोन को ऐसी जगह रखें जहां से ये आपकी नजर में न रहे। यदि बहुत जरूरी न हो तो फोन को बंद या साईलेंट कर दें। इससे आपके द्वारा किए जा रहे कार्य की गुणवत्ता बढेगी, और आपके फोन के उपयोग की आदत कम होगी।
  10. फोन के उपयोग के लिए उसे अनलॉक करने से पहले ही तय कर लें कि आपको फोन में क्या कार्य करना है जिसके लिए आप उसे अनलॉक करने जा रहे हैं। इसे तय करने के बाद फोन में वह कार्य करें, और उस कार्य को करते ही फोन की लॉक कर दें। जिन एप्स पर जाना तय नहीं किया गया है, उन पर न जाएं।
  11. ओटीटी प्लेटफॉर्म (जैसे प्राईम, नेटफ्लिक्स, जी 5 आदि) एवं अन्य जैसे यूट्यूब आदि या मूवी / वीडियो आदि देखने के लिए यथासंभव फोन का उपयोग न करें। इसके स्थान पर लैपटॉप/डेस्कटॉप का उपयोग करें। इससे आपके फोन के उपयोग करने की आदत कम होगी।
  12. अचानक से शक्तिमान बनकर उडने की कोशिश न करें। अगर आप रोजाना 5–8 घंटे फोन पर बिताते हैं, और फिर अचानक से इसे 1 घंटे से कम करना चाहते हैं तो आपको ऐसा करने में बहुत समस्या होगी। आपको खालीपन लगेगा और एक दो दिन बाद वापस पुरानी आदत पर आ जाओगे। इसलिए इसे धीरे धीरे बदलें।

अब आपने ये 12 बिंदु पढ लिए हैं। यदि हम चाहते तो इन सभी 12 बिंदुओ में से प्रत्येक पर ही लंबे लंबे आर्टिकल लिख देते। लेकिन वो फिर आप पढते नहीं। इसलिए हमने लिखे नहीं। अब ऐसा न करें कि शुरूआत के दो चार बिंदु ध्यान से पढें और बाकियों को सरसरी निगाह से देखकर स्क्रॉल कर दें। न ही ऐसा करें कि इनमें से एक दो बिंदुओं को अपना लें और बाकियों को छोड दें। अगर आप ऐसा करते हैं तो इसके दो ही कारण हो सकते हैं कि या तो आपको अपने फोन के उपयोग को कम करने में दिलचस्पी नहीं हैं या आप को लगता है कि आपको ये सभी बिंदु पहले से पता है, और इनको अपनाने से आपको चमत्कारिक लाभ नहीं मिलेंगे। इन दोनों ही स्थितियों में यह लेख आपके लिए नहीं है। इसलिए आप इसे पढकर अपना समय ही नष्ट करेंगे।

इन सभी 12 बिंदुओ को एक साथ अपनाने से ही आपको आश्चर्यजनक लाभ दिखेंगे। अगर इन्हे सावधानीपूर्वक नहीं अपनाते हैं तो आपको लाभ नहीं दिखेंगे, फिर आप दो चार दिन में ही अपने फोन कम चलानेकी इच्छा से परेशान हो जाओगे और पुरानी आदतों पर वापस आ जाओगे।

इसे आप Quora पर यहां से पढ सकते हैं। 


Sunday, November 29, 2020

कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर चीन का नया पैंतरा

 बर्ष 2019 में कोरोना के पहले ज्ञात केस से लेकर आज (30 नवंबर 2020) Worldmeter वेबसाईट के अनुसार दुनियाभर कोरोना वायरस के 6 करोड से ज्यादा केस दर्ज हो चुके हैं। इसमें 14 लाख से ज्यादा मौतें दर्ज की गई हैं। यह ज्ञात आंकडा है। वास्तविक आंकडा इससे कहीं ज्यादा हो सकता है।

कोरोना वायरस का पहला केस 2019 में चीन के वुहान शहर में दर्ज किया गया था। मार्च 2020 आते आते यह लगभग पूरी दुनिया में फैल गया था। अप्रैल-जून तक के समय में दुनियाभर में यह संकट अपने उच्चतम शिखर पर था। दुनियाभर की लगभग सभी बडी अर्थव्यवस्थाएं काफी हद तक बंद हो चुकी थी। लगभग सभी बडे देशों में लॉकडाउन लगाया गया था। इससे अर्थव्यवस्था गिरने लगी थी। लाखों लोगों के लिए रोजगार का संकट खडा हो गया। करोडों लोगों को जीवन यापन के लिए संघर्ष करना पडा। लाखों मौतें हुई। इतने भारी नुकसान के बाद भी अधिकांश देश चीन को उत्तरदायी ठहराने से बचते रहे। हालांकि अमेरिका ने चीन को इसका जिम्मेदार माना। विभिन्न राजनैतिक, कूटनीतिक कारणों के चलते विभन्न देशों की सरकारों का भले ही इस बारे में कुछ भी रवैया रहा हो, लेकिन अगर बात आमजन की करें, तो दुनिया भर के लोग चीन को ही इसका दोषी मान रहे हैं। जब भी कोरोना वायरस का नाम आता है, तो लोग चीन के बारे में बुरा भला कहते हैं। उनकी भावनाएं जायज है। उन्होने बहुत कुछ खोया है, तो प्रतिक्रिया तो देंगे ही। चीन की सरकार इससे से तिलमिलाई हुई है। वो समय समय पर ऐसे पैंतरे अपनाते रहे हैं जिससे  कोरोना वायरस का लगा यह दाग उनके सर से छुपाया जा सके। इसके लिए कभी वो सैन्य हरकतें करते हैं, तो कभी आर्थिक-व्यवसायिक पैंतरे अपनाते हैं। अपनी कूटनीतिक चालों को चलते हुए वो अनेकों छोटे देशों को अपना निशाना बना चुके हैं। ऐसे में एशिया में एक ही उभरती हुई महाशक्ति है, जो उनके लिए चुनौती बन सकती है। वह है भारत। ऐसे में वो भारत के खिलाफ नीतियों से भी नहीं चूकते। 

हाल ही में चीन के वैज्ञानिकों ने नया दावा किया है। डेली मेल में 27 नवंबर को प्रकाशित एक लेख  के अनुसार चीनी शोधकर्ताओं ने यह दावा किया है कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति संभवतया भारत में हुई है। कोरोना वायरस की उत्पत्ति को अपने देश में होने के आरोप से बचने के लिए उन्होने ऐसा किया है। चाईनीज एकेडमी ऑफ साईंसेज की एक टीम ने यह दावा किया है कि बर्ष 2019 की गर्मियों में भारत में पानी की भारी किल्लत हुई। इसके चलते जानवरों और मनुष्यों का संपर्क बढा। इससे संभवतया यह वायरस जानवरों से मनुष्यों में आय़ा। उनके दावों के अनुसार भारत में कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते, और अधिकांश युवा आबादी के होने से इसका पता नहीं लगाया जा सका। फिर यह विभिन्न माध्यमों से बाहर के देशों में गया। उनका दावा है कि भारत और बंग्लादेश में इसका संचरण हुआ क्योंकि यहां पर आबादी घनत्व अत्यधिक है। डेली मेल के लेख में बंग्लादेश, यूएसए, भारत, ग्रीस, ऑस्ट्रेलिया, इटली, चेक रिपब्लिक, रूस और सर्बिया के नामों का भी उल्लेख है।

Glasgow University में Viral Genomics and Bioinformatics के हैड प्रोफेसर डेविड रॉबर्टसन ने इसे ‘बहुत त्रुटिपूर्ण’ कहा है। उन्होने यह भी कहा कि यह रिसर्च पेपर, कोरोना के बारे में जानकारी में कुछ भी नया नहीं बताता है। उनके अनुसार यह रिपोर्ट Biased अर्थात पक्षपातपूर्ण है। भारत में मीडिया हाउससेज, इसके बारे में कोई खास रिपोर्टिंग नहीं कर रहे हैं।

चीन का यह प्रयास , संभवतया इस उद्देश्य से रहा होगा कि आज से कईं साल बाद जब लोग कोरना वायरस महामारी के बारे में पढें, या बात करें तो सारा दोष सिर्फ चीन पर न जाए। आज के समय में भी दुनिया का ध्यान इस बात से हटाने के लिए चीन हरसंभव प्रयास कर रहा है। इसी कडी में कभी वह अपने पडौसी देशों के साथ सैन्य उलझनें तैयार करता है, तो कभी वह अपनी स्टेट मीडिया के जरिए ऐसी खबरें फैलाने का प्रयास करता है जिससे लोगों का ध्यान इससे हटे। यह अब भारतीय उपमहाद्वीप के आम लोगों पर निर्भर करता है कि वो इस बारे में अपनी क्या राय बनाते हैं। आम लोगों की राय ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है, और इसको ही प्रभावित करने का प्रयास चीन के द्वारा निरंतर किया जाता रहा है। 

आप अपनी राय बताएं कि आप इस बारें में क्या विचार रखते हैं


(डिस्क्लेमर- यहां लेख में दी हुई जानकारी विभिन्न मीडिया श्रोतों से ली गई है। लेख में दी हुई राय लेखक की निजी है। इसका उद्देश्य नकारात्मक बिल्कुल नहीं है।ः

Sunday, November 15, 2020

लोकतंत्र में फेसबुक पर आलोचना पर एफआईआर?

 जब हम ब्रिटिश शासन से मुक्त हुए, तो हमने हमारे देश में राजशाही की जगह लोकतंत्र का शासन रखने का विचार किया। शायद उस समय के आम नागरिकों से लेकर खास नेताओं तक का यही स्वप्न रहेगा कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने का अधिकार होगा। सभी को स्वतंत्रता होगी। किसी का दमन नहीं होगा आदि आदि। फिर उस लोकतंत्र की आत्मा को शरीर देने के लिए राजनैतिक व्यवस्थाएं की गईं, और उसके मस्तिष्क के रूप मेंं संविधान को निर्माण किया गया। शायद संविधान बनाते समय यह विचार रहा होगा कि कहीं लोकतंत्र के मार्ग पर देशवासी भटक न जाएं, इसलिए उनको हर समय राह दिखाने के लिए कुछ लिखित दस्तावेज होना चाहिए। लिखित दस्तावेज के रूप में हमें संविधान प्राप्त हुआ। विश्व का सबसे बडा लिखित संविधान। उस समय  नागरिकों के अधिकारों की अवधारणा भी दी गई, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बडा योगदान था। शायद उस समय के आम नागरिकों को यह आभास नहीं रहा होगा  कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, कितना बडा अधिकार है। इसका एक कारण यह भी रहा होगा कि उस समय का आम नागरिक अपने जीवन की रोटी-कपडा-मकान जैसी मूलभूत चीजों के प्रबंध में ही इतना उलझा होगा कि कुछ कहने का समय ही नहीं मिलता होगा। कुछ कहना चाहे भी तो सुने कौन? बाद में जब टीवी रेडियों का चलन हुआ, तो वहां तो केवल पढे लिखे तबके के उंचे लोग ही बोलते थे। आम आदमी तो तब भी मौन था। बोलना चाहे भी बोले कहां, और बोल भी दे तो सुने कौन। लेकिन आज लोग उसका महत्व समझ पा रहे हैं। आज लोगों के पास सोशल मीडिया की ताकत है। हालांकि अभी सभी लोग इसका पर्याप्त महत्व नहीं समझ पाए हैं, लेकिन धीरे धीरे समझ रहे हैं। शायद इसी वजह से हम आम नागरिक बोल सकता है। स्वयं को व्यक्त कर सकता है। अब उसकी सुनी भी जाती है। अब हुक्मरानों को डर रहता है कि पता नहीं कब किस आम नागरिक की आवाज, पूरे देश की आवाज बन जाए। जब से जनसाधारण की पहुंच इंटरनेट और सोशल मीडिया तक पहुंची है, तब से परिवर्तन की शुरूआत हुई है। अब हर मुद्दे पर जनसाधारण अपनी राय व्यक्त कर सकता है, और उसकी सुनी भी जाती है। हाल ही के कुछ घटनाक्रमों ने बता दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करते हुए जनसाधारण ने सोशल मीडिया पर आवाज उठाई है, तो सरकारों को अपने फैसलों पर पुनर्विचार तक करना पडा है। यह लोकतंत्र को सशक्त बनाता है। पर यहां भी सबकुछ उतना आसान नहीं है जितना पहली निगाह में दिखाई पडता है। लोगों ने तो अपने अधिकारों का धीरे धीरे प्रयोग करना शुरू कर दिया है, लेकिन अफसरशाही का अंग्रेजों के जमाने का रवैया अभी तक पूरी तरह गया नहीं है। अनेकों बार ऐसा होता है कि बोलने वाले को अपने बोलने की सजा भुगतनी पडती है। कईं जगहों पर छोटे बडे राजनेताओं, अफसरों अथवा ताकतवर लोगों को लगता है कि उन्हे कोई कुछ नहीं बोल सकता । कोई उनके ऊपर प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकता। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो इन लोगों का 'ईगो हर्ट' हो जाता है और अनेकों हथकंडे अपना कर ये उस आवाज को दबाने की भरकस कोशिश करते हैं। ऐसे में स्वतंत्र न्यायपालिका की अवधारणा को का महत्व समझ में आता है। जब जनसाधारण के ऊपर इस तरह का शक्ति प्रयोग होता है, तब न्यायपालिका सक्रिय भूमिका निभाते हुए, जनसाधारण के अधिकारों की रक्षक सिद्ध होती है। कुछ ऐसा ही हमें दिखा इलाहबाद हाईकोर्ट में आई एक याचिका में, जो कि उमेश प्रताप सिंह नाम के एक व्यक्ति के संबंध में थी।

उमेश प्रताप नाम के इन महोदय ने एक फेसबुक पोस्ट की थी। उस फेसबुक पोस्ट में प्रयागराज जिले के कोटवा बानी में बने एक क्वारंटीन सेंटर में अव्यवस्थाओं के बारे में जिक्र किया था।   शायद उमेश जी ने सोचा होगा कि फेसबुक पोस्ट के बाद उन अव्यवस्थाओं में सुधार होगा, लेकिन जैसा सोचा जाता है, अक्सर वैसा होता नहीं। उमेश जी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवा दी गई।  इसके बाद इस संबंध में इलाहबाद हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई।  याचिका का केस टाईटल है-  उमेश प्रताप सिंह बनाम यूपी राज्य और 4 अन्य [2020 की आपराधिक विविध रिट याचिका संख्या - 6691]। इसमें हाईकोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए कहा “यह एफआईआर स्पष्ट रूप से दुर्भावानागस्त और दुष्‍प्रेरित है...” । 

न्यायालय ने 4 नवंबर को अपने निर्णय में कहा कि “हमने सराहना की होती, अगर अधिकारियों ने फेसबुक पोस्ट पर ध्यान दिया होता और पोस्ट की सामग्री के विरोध में कुछ सामग्री लाते या कुछ सामग्री लाते, जिसमें यह दिखाया जाता है कि फेसबुक पोस्ट के बाद, उन्होंने क्वारंटीन सेंटर को बेहतर ढंग से प्रबंधित किया....”। 

न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को पांच हजार रुपये की क्षतिपूर्ति राशि दी जाए। यह राशि सरकारी खजाने से नहीं बल्कि संबंधित अधिकारी (प्रतिवादी संख्या 4 और 5) के वेतन से दी जाएगी।

इस मामले से यह हमें पता चलता है कि आज भी ऐसे अफसर सिस्टम में उपस्थित है, जो किसी आम नागरिक के द्वारा अव्यवस्थाओं के उजागर किये जाने से नाराज हो जाते हैं, और कार्यवाही करते हैं। इस मामले में न्यायालय ने माना कि “यह स्पष्ट है कि एफआईआर अधिकारियों द्वारा क्वारंटीन सेंटर के प्रबंधन में हुए कुप्रबंधन और अव्यवस्‍थाओं के खिलाफ पैदा हुई असंतोष की आवाज को दबाने के लिए दर्ज की गई है।...” हालांकि न्यायालय ने उमेश जी को राहत दी, लेकिन फिर भी यह उदाहरण है कि इस तरह की कार्यवाहियां अक्सर होती हैं। ऐसे में आम नागरिक को चाहिए कि वो न्यायालय पर विश्वास बनाए रखे और अपने अधिकारों के हनन होने पर न्यायालय की शरण में जाए। सर्वोच्च न्यायालय को संवैधानिक अधिकारों का संरक्षक अथवा अभिभावक माना जा सकता हैं। जब आम नागरिक की बात कोई नहीं सुनता, तब न्यायालय उसकी सुनता है। न केवल उसकी सुनता है, बल्कि उसे न्याय दिलाता है। हालांकि आम नागरिकों को यह भी समझना चाहिए कि हमारा देश अत्यंत विशाल है। ऐसे में हर जगह हर व्यवस्था एकदम आदर्श स्थिति में हो यह संभव नहीं। हमारे अधिकारीगण, प्रशासन और सिस्टम निरंतर कार्य करता है। लेकिन कार्यभार अधिक होने के कारण कईं बार अव्यवस्थाएं हो जाती हैं। ऐसे में सकारात्मक सोच अपनाते हुए प्रशासन, सिस्टम का सहयोग करते हुए सकारात्मक रूप से भागीदारी निभाएं, और व्यवस्था बनाए रखनें में सहयोग करे। अधिकारों के साथ कर्तव्य भी आते हैं। इसलिए अपना कर्तव्य निभाने में न चूकें। अधिकारियों, और प्रशासन को चाहिए कि किसी द्वारा की गई आलोचना पर नाराज होकर कार्यवाही करने के स्थान पर उस व्यक्ति की समस्या को सुनकर उसे दूर करने के प्रयत्न करें। इससे समाज में उनकी छवि बेहतर ही होगी। बाकि किसी भी नागरिक, चाहे वो आम व्यक्ति हो, या राजनेता, या अधिकारी, अपने अधिकारों के हनन की स्थिति में न्यायालय की शरण ले सकता है। न्यायालय निश्चित ही आपनी सुनेगा।




Tuesday, November 3, 2020

'रानू मंडल' से 'बाबे के ढाबे' तक

 आपको याद होगा कि कुछ पिछले साल 'रानू मंडल' नाम की एक महिला का वीडियो वायरल हुआ था। वह एक रेलवे स्टेशन पर लता दीदी का एक गाना प्यार का नगमा गा रही थी। उसमें रानू की आवाज काफी अच्छी लग रही थी, और वह वीडियो अचानक सभी जगह छा गया। लोगों को उस समय तक रानू मंडल का नाम नहीं पता था। वो केवल वीडियो को देखकर ही यह दुआ कर रहे  कि कोई गरीब महिला है, जो टैलेंटेड है, और उसे स्टेशन पर गा गाकर अपना गुजर बसर करना पड रहा है, काश इसे कहीं मौका मिले तो इसकी जिंदगी बदले।



(Photo From: Laughing Colors)
 तभी खबर आई कि हिमेश रेशमिया ने उस महिला को ढूंढ निकाला और यह भी घोषणा की कि वो उसे गाने का मौका देंगे। कुछ दिन बाद मार्केट में दो गाने आए जिनके कुछ हिस्सों में रानू मंडल की आवाज थी। आलम यह हो गया था कि जगह जगह रानू मंडल की आवाज में 'तेरी-मेरी-तेरी-मेरी-तेरी-मेरी-कहानी' सुनाई पडने लगा।लोग हिमेश रेशमिया की दरियादिली और रानू मंडल की बदली किस्मत की तारीफ कर ही रहे थे कि अचानक एक वीडियो और वायरल हुआ। इस वायरल वीडियों में दिखाई दे रहा था कि रानू मंडल नें अपनी एक फैन (या शायद मीडिया) के साथ अशिष्टता की, और अपने 'Celebrity' होने की अकड दिखाई। यह वीडियो कितना सच था, कितना झूठ, यह तो हमें नहीं मालूम, लेकिन इस वीडियो के बाद रानू मंडल की जिंदगी दुबारा बदल गई।जो लोग सोशल मीडिया पर उसे 'Hero' बना चुके थे, वही अब रानू के बदले रवैये को लेकर आलोचना करने लगे। जिस सोशल मीडिया के निवासियों ने उसे काम 'फेमस' किया था, उन्होने ही उसे 'डिफेम' कर दिया। जितनी जल्दी रानू मंडल सफलता की सीढी चढी थी, उतनी जल्दी ही वापस उतरना पडा। कुछ समय पहले खबर आई थी कि रानू के पास फिलहाल कोई काम नहीं है, और उसे वापस संघर्ष करना पड रहा है। 

ऐसा ही कुछ मामला 'बाबा का ढाबा' से हुआ। दिल्ली के मालवीय नगर में एक बुजुर्ग दंपत्ति एक ढाबा चलाते हैं। दंपत्ति की आयु अस्सी बर्ष के आसपास है। लॉकडाऊन से पहले तक वो अपना गुजारा करने लायक कमा लेते थे। ल़ॉकडाउन और कोरोना के चलते उनकी कमाई अचानक गिर गई। उन्ही के एक इंटरव्यू के अनुसार उनका गुजारा भी नहीं हो पा रहा था।कईं बार  उन्हे लागत निकालने में भी कठिनाई होती थी।एक यूट्यूबर है जो फूड व्ल़ॉगिंग करते हैं। फूड व्लॉगिंग का मतलब है कि वो अलग अलग भोजनालयों पर जाते हैं। वहां का खाना चखते हैं। उसके बारे में लोगों को बताते हैं। अगर भोजनालय के मालिक को सहायता की जरूरत होती है, तो वो लोगों को उसकी मदद की अपील करते हैं। संयोग ऐसा हुआ कि अक्टूबर की एक दोपहर को ये यूट्यूबर महोदय इस बाबा के ढाबा पर पहुंच गए। उन्होने इनसे बातचीत की। बातचीत कें दौरान पता चला कि ये बाबा बडी कठिनाई से गुजर रहे हैं। यूट्यूबर को लगा कि इस बारे में वीडियो बनाई जानी चाहिए। (ये हमारी निजी राय है कि यूट्यूबर ने सोचा होगा कि इससे बाबा की मदद भी हो जाएगी, और चैनल के लिए कंटेंट भी मिल जाएगा।) तो यूट्यूबर ने बाबा की वीडियो रिकॉर्ड की। उस वीडियो में ये बाबा साहब रोते हुए नजर आ रहे थे।वो अपनी कठिनाई के बारे में बता रहे थे। उनके अनुसार दिनभर काम करके कई बार तो सौ रूपये की भी कमाई नहीं हो पाती थी। उसके बाद यूट्यूबर ने उनके खाने की क्वालिटी के बारे में बताया। अब हम इस वीडियो का तो क्या ही वर्णन करें। आप खुद ही उनके चैनल पर जाकर देख लीजिए।



(Photo From: Dna India)
 फिर हुआ ये कि अचानक देशभर में वीडियो वायरल हो गया।आम लोगों से लेकर खास लोगों तक, सभी नें बाबा के लिए संवेदना व्यक्त की। यथा संभव बाबा की मदद की कोशिश की गई। बाबा के ढाबे पर भीड भी बढ गई। देश के सभी बडे मीडिया हाउसेस ने इस घटना को कवर किया। बाबा को बडे पैमाने पर आर्थिक मदद हुई। लेकिन इस में थोडा पेंच फंस गया। यूट्यूबर ने बाबा की मदद करने के लिए न केवल वीडियो बनाया था, बल्कि मदद के रूप  में आ रहे पैसों के 'मैनेजमेंट' में भी मदद की। मैनेजमेंट से हमारा मतलब है कि उसने बाबा के पैसे बैंक में जमा कराने में सहायता की। जो पैसे मदद के लिए यूट्यूबर के खाते में आए थे, उनको चैक के रूप में बाबा को दिया। कुल मिलाकर बाबा का उस समय यह मानना था कि ये यूट्यूबर भगवान के दूत बनकर आए और बाबा की जिंदगी बदल दी। लेकिन अभी कुछ समय पहले मामला अचानक बदल गया। बाबा ने इस यूट्यूबर के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है कि इसको मदद के नाम पर पच्चीस लाख रुपये मिले थे लेकिन यूट्यूबर नें धोखाधडी करते हुए रकम डकार ली। इस बारे में अपनी सफाई देते हुए इन यूट्यूबर भाईसाब ने अपना बैंक स्टेटमैंट दिखाया और बताया कि उन्होने कोई धोखाधडी नहीं की। उन्होने केवल सच्ची नियत से बाबा की मदद की है।अब चूंकि मामला पुलिस तक पहुंचना बताया जा रहा है, इसलिए यह जांच का बिषय है कि वास्तव में धोखाधडी हुई या नहीं हुई। लेकिन बाबा को जब मदद की जरूरत थी, तब से लेकर बाबा की मदद होने के बाद तक में उनके एटीट्यूड में बहुत बदलाव आ गया। आसान भाषा में कहें तो बाबा की बातों में अकड सी दिखाई देने लगी है। देशभर के लोग इस बारे में अपनी राय दे रहें है, कि बाबा 'दूसरे रानू मंडल' बन गया। जिसने उसकी मदद की, उसी के खिलाफ शिकायत कर दी। खैर बाबा सही हैं या नहीं, यह तो जांच के बाद पता चल ही जाएगा। लेकिन जिस तरह बाबा का रवैया बदला है, वह हमें निराश करता है।

(Photo From: The Print)

रानू मंडल हो या बाबा का ढाबा। दोनों में ही यह देखने में आया है कि पहलेे कठिनाई से गुजरने के बाद भी जब मदद मिली, तो इस मिली हुई मदद ने उनका रवैया बदल दिया। हो सकता है कि उनका वास्तविक रवैया यही हो, लेकिन कठिनाई और गरीबी के समय वो इस रवैये को उजागर नहीं कर पा रहे हों, लेकिन जैसे ही उनको पैसा और प्रसिद्धि मिलते ही उनका वास्तविक रवैया सामने आ गया हो।किसी महान व्यक्ति ने कहा है कि पैसा आदमी के स्वभाव को बदलता नहीं है, बल्कि उसके वास्तविक रवैये को कई गुना बढाकर सामने ले आता है। अगर कोई आदमी अच्छा है, तो उसकी अच्छाई कई गुना बढ जाती है, और अगर उसमें बुराई है, तो उसकी बुराई कईं गुना बढकर सामने आ जाती है।इसका एक कारण यह भी हो सकता है की अभावों के चलते वो अपने जीवनयापन में ही अधिकांश समय गुजार देता है। ऐसे में उसके पास पर्याप्त समय और संसाधन नहीं होते होंगे कि वो अपने अंदर की असलियत (अच्छाई या बुराई) को दिखाने के लिए हरकत कर सकें। पैसे, पावर आने पर उनके पास समय और संसाधन आ जाते हैं, और वो अपने वास्तविक स्वरूप में सामने आ जाते हैं।


(डिस्क्लेमर- घटनाओं के बारें में जानकारी अलग अलग मीडिया हाउसेज के द्वारा की हुई कवरेज, और इंटरनेट के माध्यम से जुटाई गई है। लेख में दी हुई राय हमारी निजी राय है, और इसका उद्देश्य नकारात्मक नहीं है। फोटोज को इंटरनेट से लिया गया है)

Tuesday, October 20, 2020

लॉकडाउन गया है वायरस नहीं

 ‘लॉकडाउन गया है वायरस नहीं’

कोरोनाकाल के दौरान आज प्रधानमंत्रीजी का संबोधन था। इससे पहले के संबोधनों में प्रधानमंत्री ने कईं बिशेष घोषणाएं की थी, किन्तु इस बार प्रधानमंत्री का संबोधन कुछ अलग रहा। इस बार उन्होने लोगों की लापरवाही पर अपनी चिंता व्यक्त की और लोगों से सावधान रहने का आग्रह किया।

प्रधानमंत्री के द्वारा इस तरह की चिंता व्यक्त करना हम सब के लिए बडा संदेश है। यह एक ऐसा बिषय है जिसमें राजनीति और राजनैतिक हितों को परे रखकर, जनहित में विचार करना चाहिए। ऐसे में हम सब की जिम्मेदारी है कि प्रधानमंत्री के इस संबोधन और चिंता को गंभीरता से लेते हुए, न केवल स्वयं को जागृत करें, अपितु जनजागरण का भी प्रयास करें। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में प्रति 10 लाख पर संक्रमण के आंक़डे साढे पांच हचार मामले सामने आ रहे हैं जबकि अमेरिका-ब्राजील जैसे देशों में आंकड़ा 25 हजार के आसपास है।  भारत में प्रति दस लाख पर मृत्यु दर 83 है जबकि अनेको देशो में में आंकड़ा 600 के पार है। देश में 12000 कोरेन्टाईन सेंटर है। लेकिन यह समय लापरवाह होने का नहीं है। यह समय यह मानने का नहीं है कि कोरोना चला गया या अब कोरोना से कोई खतरा नहीं है। हाल ही के दिनों में मीडिया-सोशल मीडिया रिपोर्ट्स में देखा गया है कि लोगों ने सावधानी बरतना बंद कर दिया है, या बिल्कुल ही ढिलाई बरत रहे हैं। अगर आप लापरवाही बरत रहें हैं, और आप बिना मास्क के बाहर निकल रहे हैं, तो आप न केवल स्वयं को बल्कि अपने परिवार, बुजुर्ग, बच्चों को भी संकट में डाल रहे हैं। अमेरिका और यूरोप में कोरोना के मामले कम हो रहे थे, लेकिन अब फिर से बढने लगे हैं।

 लॉकडाउन भले चला गया हो, लेकिन वायरस अभी नहीं गया है।’

उन्होने कबीरदास जी के दोहे का उदाहरण दिया

‘पाकि खेती देखकरगर्व किया किसान।

अभी झोला(संकट) बहुत हैघर आवे तब जान॥’

अर्थात जब संकट पूरी तरह टल जाए तभी निश्चिंत होना चाहिए।

रामचरितमानस में लिखा गया है कि

‘रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि।’

अर्थात- शत्रुरोगअग्निपापस्वामी और सर्प को छोटा नहीं समझना चाहिए।

 जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं’

प्रधानमंत्री का यह चेतावनी देना कुछ लोगों के लिए राजनैतिक हो सकता है, कुछ लोग इसे गंभीरता से लेने से बच भी सकते हैं लेकिन यह हम सब के लिए आवश्यक है कि हम सावधानी रखकर न केवल स्वयं को बचाए, बल्कि अपने परिजनों को भी बचाएं।

‘छोटी सी लापरवाही हमारी खुशियों को धूमिल कर सकती हैं।’

यह बातें तो प्रधानमंत्री के संबोधन की थी, किन्तु आम व्यक्ति के तौर पर हमें अपनी जिम्मेदारियों को टालना नहीं चाहिए। ये जिम्मेदारियां हमारे ऊपर भार नहीं है, इन्हे बोझ नहीं समझना चाहिए। यह तो हमारे लिए आवश्यकता है। जिस तरह हम जलने से बचने के लिए आग से सावधानी रखते हैं, सर्दी से बचने के लिए ऊनी वस्त्र पहनते हैं, पेट के संक्रमण से बचने के लिए शुद्ध जल पीने का प्रयास करते हैं, उसी तरह हमारे लिए आवश्यक है कि कोरोना संक्रमण से बचने के लिए नियमित हाथ धोएं, मास्क लगाएं, एवं अन्य सावधानियों का ध्यान रखें।

 

                                  

Sunday, October 18, 2020

कोरोना : डर से लापरवाही तक

 

कोरोना : डर से लापरवाही तक

भारत में कोविड-19 का पहला केस 30 जनवरी 2020 को रजिस्टर किया गया था, जो कि 3 फरवरी तक बढकर 3 हो गए। मार्च 15 तक दुनियाभर के अनेकों देशों में लॉकडाउन लगाया जा चुका था।  भारत के कईं हिस्सों में अनेकों गतिविधियों पर रोक लगा दी गई थी। 22 मार्च 2020, रविवार के दिन जनता कर्फ्यू का आह्वान किया गया था, जिसमें देशभर के नागरिकों नें अच्छा सहयोग किया। इससे आगे बढते हुए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 24 मार्च 2020 को देशभर में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की, और घोषणा के कुछ घंटे बाद 24-25 मार्च 2020 की मध्यरात्रि से देशभर में लॉकडाउन लागू हो गया था। केवल अत्यावश्यक सुविधाओं को छोडकर, बाकी गतिविधियां बंद हो गई। कुछ ही घंटो में देशभर में माहौल बदल गया। कुछ लोग, अचानक हुए इस परिवर्तन से परेशान होकर ‘पैनिक’ करने लगे, कुछ लोग भयग्रस्त होकर अनावश्यक खरीददारी करने लगे। हालांकि प्रधानमंत्री जी ने अपने संबोधन में कहा था कि भयग्रस्त न हों। आवश्यक वस्तुओं की कोई कमीं नहीं आने दी जाएगी। देशभर में इसका अलग अलग प्रभाव रहा। जिस जगह मैं निवास कर रहा था, वहां खाद्य पदार्थ एवं दवाईयों जैसी जरूरी चीजों की कोई बिशेष समस्या नहीं रही। देशभर में कार्यालय, फैक्ट्रियां, यातायात आदि बंद हो गए। दिहाडी मजदूर एवं फेरीवालों का काम—ंधंधा ठप हो गया। चूंकि यह निर्णय सभी के हित में था, इसलिए सबने पर्याप्त सहयोग किया। पुलिस, प्रशासन, चिकित्साकर्मी, विद्युतकर्मी, जलदाय विभाग के कर्मचारी, सफाई कर्मचारी, मीडिया एवं संचार संबधी कार्मिकों ने अपना जीवन खतरे में होने के बावजूद भी अपना बेहतरीन देने की कोशिश की। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे विभाग भी थे, जिनके बारे में आमजनता को आभास नहीं था, लेकिन वो लगातार अपना कार्य करते रहे, ताकि देश चलता रहे।

लॉकडाउन के बाद देशभर में लोगों को अनेकों समस्याओं का सामना करना पडा। लोगों को ऐसे माहौल में जीने का कोई अनुभव नहीं था, इसलिए वो परेशान होने लगे। बडी संख्या में मानसिक रोग/तनाव आदि के रोगी बने। निम्नवर्ग के पास भोजन/दवाई आदि का भी अभाव हो गया। मध्यम वर्ग के लोगों की बचत भी मुठ्ठी में रेत की तरह फिसलने लगी। ऐसे नागरिक जो अपने घर से दूर रोजगार के लिए अथवा अन्य कारणों से रह रहे थे, उन्हे और उनके परिजनों को चिंताग्रस्त होना पड रहा था। सभी लोग इस अचानक आई आफत के कारण परेशान और भयभीत थे। उन्हे कुछ समझ नहीं आ रहा था। यातायात बंद था। सीमाएं सील थीं। लोग घर आना चाहते थे, लेकिन आ नहीं पा रहे थे। बाहर निकलने पर उन्हे बलप्रयोग का सामना करना पडता। अनेकों ऐसे केस भी थे जहां बलप्रयोग के कारण लोगों को चोटें आईं। लेकिन यह बलप्रयोग लोगों के जीवन के हित में था, इसलिए इस बलप्रयोग का विरोध नहीं किया गया, अपितु लोगों ने इसका स्वागत किया। समाजसेवियों ने आगे बढकर जरूरतमंदों की सहायता करने का फैसला किया, और अपनी जमापूंजी का उपयोग परहित में करते हुए निम्नवर्ग की पूरी सहायता करने की कोशिश की। एक तरफ जहां लोग अधिकाधिक सहायता प्रदान करने का प्रयास कर रहे थे, वहीं कुछ ऐसे भी लोग थे  जो मौके का फायदा उठाने की दृष्टि से जमाखोरी, कालाबाजारी आदि कर रहे थे।

अनेकों केस ऐसे भी  आए थे जहां किसी परिजन-माता,पिता,भाई,बहन,पुत्र,पुत्री एवं अन्य निकट संबंधी की मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सके, क्योंकि सीमाएं सील थीं, और उन्हे सीमाओं पर ही रोक दिया गया। जो लोग तकनीकि ज्ञान रखते थे, वो वीडियो कॉल के माध्यम से ही अंतिम संस्कार में शामिल हुए। लेकिन इस कष्ट को भी सहते हुए लोगों ने इस व्यवस्था का विरोध नहीं किया क्योंकि एक तो उनको पता था कि यह सबके भले के लिए किया जा रहा है, और दूसरा लोग इस मानसिक अवस्था में नहीं थे कि कुछ नया कर पाएं, क्योंकि इस अनोखी आफत से वो भयभीत थे।

खैर जैसे तैसे वो दौर समाप्त हुआ और लॉकडाउन के कुछ चरणों के बाद अनलॉक की प्रक्रिय शुरू हुई। अनलॉक की प्रक्रिया के पीछे सरकार की मंशा थी कि देश को चलाए रखने के लिए, लोगों की रोजी-रोटी  के लिए एवं जीवन को वापस पटरी पर लाने के लिए आवश्यक गतिविधियों को शुरू किया जाए। इसके लिए अनेकों चरण भी बनाए गए। अब लोगों को बाहर निकलने पर बलप्रयोग का सामना तो नहीं करना पडता लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग-मास्क-सेनिटाईजेशन आदि का ध्यान रखना पडता। अधिकांश लोग इसका पालन करने के लिए तैयार हो गए, लेकिन कुछ लोग ऐसे थे जो इसे अपने आत्मसम्मान से जोडकर इनका पालन करने में अपना अपमान समझते थे। खैर जैसे तैसे लोग अपना जीवन वापस पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे थे। अब 18 अक्टूबर 2020 का दिन है, और आज के दिन ‘पत्र सूचना कार्यालय’ की वेबसाईट पर उपलब्ध 16 अक्टूबर 2020 के ‘कोरोना बुलेटिन’ के अनुसार 13 अक्टूबर 2020 शाम आठ बजे तक 71,25,880 कोविड-19 के केस दर्ज किए गए। पिछले 24 घंटों में 55,342 केस दर्ज किए गए। 1,09,856 मृत्यु दर्ज की गईं। अर्थान एक लाख से अधिक लोगों की जिंदगी को ये बीमारी लील गई। अनकों परिवार ऐसे थे जिसमें एक से अधिक सदस्यों की मृत्यु हुई।

इतनी गंभीर स्थिति होने के बावजूद भी लोगों में लापरवाही बढती जा रही है। एक ओर ऐसे लोग हैं, जो इस बीमारी को इतनी गंभीरता ले रहे हैं कि इससे बचाव के चक्कर में मानसिक अवसाद में जा रहे हैं, वहीं बडी संख्या में ऐसे लोग है जो इसके प्रति असावधान है, और प्रतिदिन सैक़डों लोगों की मृत्यु हो रही है, और हजारों लोग पॉजीटिव पाए जा रहे हैं। एक आम व्यक्ति लापरवाह होता है तो समाज के प्रतिष्ठित लोग, बुद्धिजीवियों, नेताओं और प्रशासकों की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि उन्हे सचेत करें। अगर वो फिर भी लापरवाही बरतें तो उन्हे उचित रूप से दंडित करें। यह दंड उनके लाभ के लिए ही होगा। किन्तु आप परिस्थिति विपरीत है। राजनैतिक फायदों के लिए अनेकों जगहों पर सभाएं की जा रही हैं, आंदोलन, प्रदर्शन किए जा रहे हैं। जिन स्थानो पर चुनाव है, वहां पर चुनावी सभाओं  का आयोजन किया जा रहा है, जहां बडी संख्या में लोग एकत्रित हो रहे हैं। ऐसे में इन एकत्रित लोगों में किसी भी एक व्यक्ति के कोरोना संक्रमित होने पर, पूरे समूह के और उस समूह के जरिए समाज के उन लोगों के भी संक्रिमत होने की संभावना बढती है, जो अभी तक सावधानी और नियमों की पालना करते हुए इससे बचे हुए हैं। अनेकों देशों के कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर आ चुकी है, और उसके चलते संक्रमण की गति फिर से बढती जा रही हैं। इन सभी बातों की जानकारी होते हुए भी राजनेता, और आम नागरिक अपनी और दूसरों की जिंदगी खतरे में  डाल रहे हैं। राजनेताओं के बारे में आम धारणा है कि वो अपने राजनैतिक हित के लिए किसी भी प्रकार का अनैतिक कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे में चुनावी सभाएं, रैली, प्रदर्शन, आंदोलन आदि किए जाएं, तो आम नागरिक को आश्चर्य नहीं होता है, लेकिन जब आम नागरिक, इनमें सम्मिलित होते हैं, तो यह चिंता का बिषय बन जाता है।

आज राजनीति के स्तर और राजनेताओं की छवि लोगों के मन में बहुत अच्छी नहीं रह गई हैं। ऐसे में अगर राजनेता, राजनैतिक हित के लिए संक्रमण का खतरा बढाते हैं, तो उनकी छवि को और अधिक नुकसान नहीं होगा, क्योंकि आमजन इसके प्रति सचेत नहीं है, लेकिन अगर राजनैतिक दल चाहें तो इस समय लोगों को सचेत कर, और अपने राजनैतिक हित के स्थान पर नागरिकों के जीवन और देशहित को महत्व दें तो वो अपना स्तर और छवि दोनों सुधार सकते हैं। खैर मुझे नहीं लगता कि इस बार राजनैतिक दल कुछ सकारात्मकता दिखाएंगे। ऐसे में हमारे पास एक ही तरीका बचा है, कि खुद को इस संक्रमण से बचाएं, और संक्रमण के वाहक न बनकर दूसरों की भी रक्षा करें। अगर संक्रमण के लक्षण हैं तो बिन डर या लापरवाही के चिकित्सकीय सलाह लें। अगर संक्रमित हो गए हैं तो दिशानिर्देशों का पालन करें। अगर संक्रमण के बाद पुनः स्वस्थ हो गए हैं तो दूसरों को इसके अनुभव के बारे में बताकर जागरूकता लाएं।

(डिस्क्लेमर-  इस लेख में लेखक के निजी विचार प्रस्तुत किए गए हैं। इनके पीछे कोई दुर्भावना नहीं है।  अगर आप इन विचारों से सहमत नहीं हैं, तो इस लेख को नजरंदाज कर सकते हैं।)

Tuesday, October 13, 2020

बाल अपराध या बाल अपचारिता?

 

बाल अपराध या बाल अपचारिता?

अक्सर समाचार पत्रों में बाल अपराधों का उल्लेख होता है। समय समय पर अवयस्कों द्वारा किए जाने वाले अपराध, लोगों को विचार करने पर विवश करते हैं। अनेकों बाल अवयस्कों द्वारा किये जाने वाले अपराध गंभार प्रकृति के भी होते हैं, जिनके लिए आमजान की भावना होती है कि उन्हे वयस्कों की भांति ही दंड दिया जाना चाहिए। अधिकांश बार इनके द्वारा किये जाने वाले अपराधों की प्रवृत्ति गंभीर नहीं होती, किन्तु सामान्य अपराधों की भी बढती संख्या समाज के लिए चिंता का बिषय है।

अगर बात बाल अपराधों की कानूनी भाषा की करें, तो अधिनियमों, अनुच्छेदों एवं आधाकारिका दस्तावेजों में बाल अपराध शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है। बाल अपराध के स्थान पर ‘बाल अपचारिता’ का प्रयोग किया जाता है। इसके पीछे भावना यह है कि बालक कभी अपराधी नहीं हो सकते। वह ह्रदय से कोमल एवं विकार रहित होते हैं। उनके द्वारा किये जाने वाले ‘अपराध’, किसी विशेष ष़डयंत्र अथवा दुर्भावना से प्रेरित नहीं होते हैं। ऐसे में उन्हे ‘बाल अपराधी’ कहना अनुचित है। विभिन्न बुद्धिजीवियों ने ‘बाल अपचार’ की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं।

डा. पी. एन. वर्मा के अनुसार- “बाल  अपचारिता से अभिप्राय कर्तव्यों की उपेक्षा अथवा उल्लंघन से है, एक गलती से है।”

रॉबिन्सन के शब्दों में- “बाल अपचारिता से अभिप्राय आवारागर्दी, भिक्षावृत्ति, शैतानी, दुर्व्यवहार, उद्दंडता आदि प्रवृत्तियों एवं गतिविधियों से है।”

बाल अपचारिता के पीछे अनेकों कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ कारण निम्नानुसार है-

1.      पारिवारिक माहौल- किसी भी बालक के विकास में उसके परिवार का बिशेष महत्व होता है। अगर पारिवार का माहौल अनुचित, अनैतिक है, अथवा परिवार में वेश्यावृत्ति, नशे, अश्लीलता, आपराधिक गतिविधियां होती हैं, तो ऐसे में बाल के विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव प़डता है, और वह अपचारिता की ओर बढ सकता है।

2.      आर्थिक कारण- किसी भी बालक के लिए यदि अत्यंत आर्थिक कठिनाई का दौर चल रहा होता है, अथवा उसे किसी कारण से मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा करने में समस्या होता है, तो वह बाल अपचारिता में लिप्त हो सकता है।

3.      शिक्षा का अभाव- अक्सर देखने में आता है कि बाल अपचारियों में अधिकांशत वह बालक होते हैं, जिन्हे पर्याप्त शिक्षा का अवसर नहीं मिला।

4.      अश्लील साहित्य- अगर बालक को कम उम्र में अश्लील साहित्य तक पहुंच मिल जाती है, तो वह उनके सम्मोहन में भ्रमित होकर अनैतिक कार्यो की ओर बढ सकता है। ऐसे में उसके बाल अपचारी बनने की प्रबल संभावनाएं होती हैं। आज के दौर में इंटरनेट तक बच्चों की बढती पहुंच, उन्हे अश्लील सामग्री तक सरलता से पहुंच बनाने में बडी भूमिका निभी रही है।

5.      माता-पिता के साथ संबंध- किसी बालक के व्यक्तिव निर्माण में उसके माता पिता की महती भूमिका रहती है। लेकिन यदि माता-पिता के साथ बच्चे के संबंध अच्छे न हों, माता-पिता बच्चे के लिए पर्याप्त समय न दे पाएं, माता पिता में परस्पर विवाद होता हो अथवा उनके तलाक होने के कारण वो अलग अलग रह रहे हों तो ऐसी स्थिति का प्रतिकूल प्रभाव बच्चे के मस्तिष्क पर पडता है और  वह अपचारिता की ओर कदम बढा सकता है।

6.      शारीरिक अक्षमता- यदि कोई बालक शारीरिक रूप से अक्षम हैं और उसके परिचित, परिजन अथवा परिवेश द्वारा उसका मखौल बनाया जाता है, या उसके प्रति शून्यता रखी जाती है तो ऐसा व्यवहार, उस शिशु के ह्रदय को नकारात्मक संवेग प्रदान करता है, जिससे वह अपचारिता की ओर जा सकता है।

7.      संगति- किसी भी बालक, अथवा वयस्क के व्यवहार, जीवन-शैली में उसकी संगति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अगर कोई बालक ऐसी संगति में रह रहा है जिसमें गाली-गलौच, नशा, अपराध, अश्लीलता, वेश्यावृत्ति, चोरी, अपराध जुआ आदि में लिप्त व्यक्ति हों, तो उस बालक पर इसका गहरा प्रभाव पडता है, और वह भी ऐसे मार्ग पर बढ सकता है। इसी कारण के चलते राजेश कुमार बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान (1989 किं. लॉ. रि. 560 राजस्थान) तथा गोपीनाथ घोष बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल (1984 एस.सी.सी. क्रि. 478) केस के संदर्भ को लेकर हम जान सकते हैं कि किसी बाल अपचारी को, आप अपराधियों के साथ जेल में रखने के स्थान पर सुधार गृहों में क्यों रखा जाता है।

यह कुछ कारण है जो किसी बालक को अपचारिता की ओर धकेल सकते हैं। किसी बालक को अपचारिता से कैसे दूर ऱखा जाएं, अथवा किसी बाल अपचारी को कैसे सही दिशा में लाया जाए, इस बारे में हम बाद में चर्चा करेंगे।

(डिस्क्लेमर- इस लेख में प्रस्तुत विचार मेरे अपने है। आपको इनसे सहमत अथवा असहमत होने का पूरा अधिकार है। इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाना बिल्कुल भी नहीं है।)

Thursday, July 23, 2020

न्यायपालिका की सक्रियता एवं लोक कल्याण


स्वतंत्रता के बाद भारत में लोकतांत्रिक शासन की स्थापना की गई, जिसके लिए मुख्यतः तीन शाखाएं बनाई गईं जो कि न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के नाम से जानी जाती हैं। संविधान में एवं अन्य दस्तावेजों में इनकी शक्तियों एवं सीमाओं का वर्णन है। लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी सीमाओं का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, जो कि विवाद का बिषय बन जाता है। हमारे संविधान निर्माताओं ने एक स्वप्न देखा जो भारत में पूर्ण एवं मजबूत लोकतंत्र की स्थापना, नागरिकों को मौलिक अधिकार, सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक न्याय एवं निर्धन के लिए कल्याणकारी योजनाओं की भावना निहित रखता था। लेकिन आजादी के कुछ दशकों में ऐसी स्थितयां सामने आईं कि सत्ता पाने के लिए अनैतिक हथकंडे अपनाए जाने लगे, और येन-केन-प्रकारेण सत्ता हासिल करना ही लक्ष्य रह गया। ऐसे में आम नागरिक के अधिकारों का हनन होने लगा तथा संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का दुरूपयोग होने लगा। राजनीतिक व्यवस्था की इस बिगडती दशा पर कुछ बिशेष विचारधारा रखने वाले न्यायविदों का ध्यान गया और उन्हे महसूस हुआ कि न्याय केवल उनके लिए नहीं है जिनके पास शक्ति एवं संसाधन है। न्याय हर नागरिक के लिए है। न्यायपालिका द्वारा नागरिकों के हित में न्यायिक समीक्षा की कोई सीमा नहीं है। ऐसे में न्यायपालिका नें संवैधानिक मूल्यों को बचाने और नैतिका की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाना प्रारंभ किया। न्यायिक समीक्षा के द्वारा न्यायालय कार्यपालिका और  विधायिका के फैसलों की समीक्षा लोक कल्याण में कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त न्यायिक फैसलों की समीक्षा भी न्यायपालिका द्वारा की जा सकती है। संविधान में शक्ति पृथक्करण का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, ऐसे में न्यायपालिका नें संविधान की व्याख्या करने का कार्य किया है। अनुच्छेद 121 और 211 विधायिका को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में किसी भी न्यायाधीश के आचरण पर चर्चा करने से मना करते हैंवहीं दूसरी तरफ, अनुच्छेद 122 और 212 अदालतों को विधायिका की आंतरिक कार्यवाही पर निर्णय लेने से रोकते हैं। कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं जहां न्यापालिका द्वारा कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र का अतिक्रमण भी किया गया है जैसे सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2018) तथा राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2017) आदि।

न्यायपालिका की सक्रियता से कार्यपालिका के उन फैसलों की समीक्षा की जा सकती है जो लोककल्याण में बाधा बनते हैं। कोई सार्वजनिक शक्ति अपनी शक्तियों का दुरूपयोग कर, नागरिकों को नुकसान पहुंचाती है, अथवा ऐसे मामले जिनमें विधायिक बहुमत के मुद्दे पर फंस जाती है, ऐसे में न्यायपालिका सक्रिय भूमिका निभाते हुऐ लोककल्याण में न्यायिक समीक्षा कर फैसले ले सकती है। हालांकि न्यायिक सक्रिया के विरोधी अक्सर तर्क देते हैं कि न्यायधीश किसी भी कानून आदि के अधिकारों पर अतिक्रमण कर सकते हैं, अथवा ऐसे फैसले ले सकते हैं, जो निजी उद्देश्यों से प्रेरित हो सकते हैं। निरंतर न्यायिक हस्तक्षेपों के कारण सरकारी संस्थानों की दक्षता, गुणवत्ता पर लोगों का विश्वास कम हो सकता है।

हालांकि न्यायिक सक्रियता का स्पष्ट उल्लेख संविधान में नही है, यह तो न्यायपालिका के द्वारा लोककल्याण की भावना से तैयार एक प्रभावशाली औजार है । न्यायिक सक्रियता से लोक कल्याण के फैसले तो लिए जा सकते हैं, लेकिन इसके दुरूपयोग की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। संतुलन बनाए रखने के लिए न्यायिक अनुशासन की आवश्यकता है। कानूनो का निर्माण करना, या कमियों को दूर करना विधायिका का कार्य है, और उन कानूनों को उचित तरीकों से लागू कराना न्यायपालिका का कार्य है। सभी अंगो को संतुलित ढंग से कार्य करना चाहिए, तभी सही मायनों में लोकतंत्र को मजबूती प्रदान होगी।

 



Thursday, July 16, 2020

आपदा में भी स्वार्थ ढूंढती राजनीति

इतिहास हमें बताता कि क्या हुआ। इतिहास हमें सिखाता है कि हमने क्या गलतियां कीं जो नहीं की जानी चाहिए थीं। जब कभी इतिहास लिखा जाएगा, और अगर मैं इतिहास लिखूँगा, तो यह अवश्य लिखा जाएगा कि जिस समय दुनिया महामारी से जूझ रही थी, लोगों के जीवन पर संकट था, विद्यार्थियों के भविष्य-जीवन अंधकार में थे, उस समय हमारे राजनैतिक दल, अनैतिक रूप से राज्य की सत्ता की खींचतान में लगे थे।
जिस गम्भीर और मूल्यवान समय में, जनहित में सर्वाधिक महत्वपूर्ण फैसले लिए जाने थे, उस समय राज्य में  अप्रत्याशित राजनैतिक उठापटक मची हुई थी। जिम्मेदार लोग मौन थे, और हमारे मतदाताओं ने इस विकट  स्वार्थपूर्ण परिस्थिति का विरोध भी नही किया। राज्य के मतदाताओं ने राजनैतिक दलों से यह प्रश्न तक नहीं किया कि वर्तमान समय राजनैतिक उठापठक का नहीं, बल्कि जनहित में महत्वपूर्ण निर्णय लेने का है, ऐसे में आप क्यों अस्थिरता लाने के प्रयास में हो!  हमारे समझदार मीडिया नें अपनी जिम्मेदारी निभाने के स्थान पर, अपनी प्रसिद्धि कमाने के मार्ग को चुना।
लोकतंत्र और संविधान पर हमला तो अनेकों बार हुआ है, औऱ सम्भवतया भविष्य में भी होगा, लेकिन वर्तमान में जो गम्भीर परिस्थिति बनी हुई है, उसमें लोकतंत्र, शासन, संविधान अथवा राजनैतिक दांवपेचों से अधिक महत्वपूर्ण है आमजन के जीवन और भविष्य की रक्षा!
अरे अत्यधिक बुद्धिमान प्राणियों! जब जनता ही नही बचेगी, लोगों के प्राण ही न बचेंगे, तो शासन क्या निर्जीव वस्तुओं अथवा रोबोट्स पर करोगे?
प्रभावशाली लोग कितना भी प्रभाव का दुरुपयोग कर लें, अपने आप को समाजसेवी और राजनैतिक आलोचक कहने वाले लोग, इस गम्भीर परिस्थिति में कितना भी मौन रह लें, 'शिशु नेता' कितना भी किसी दल का महिमामंडन कर लें, संवैधानिक औऱ कानूनी दांवपेचों का प्रयोग करके चाहे कोई पक्ष जीते, कोई हारे, लेकिन यह बात तय है कि इस सब संकट में आमजन पिसता जा रहा है। उसके हित के लिए आवश्यक निर्णय नही हो पा रहे हैं और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि वो आम आदमी एकदम चुप है, मानों पाषाण प्रतिमा हो! प्रभावशाली लोगों की चाटूकारिता की प्रवृत्ति, औऱ बलशाली लोगों के दिखाए भय ने सबको मौन कर रखा है!
प्रश्न यह नही है कि कौनसा दल सही है, कौनसा गलत, अथवा किस पक्ष ने सही निर्णय लिया, या किस पक्ष ने गलती की। सवाल यह है कि जब जनहित और जनजीवन पर संकट का समय था, राज्य और देश के लोगों को मदद की सर्वाधिक आवश्यकता थी, उस समय सभी जिम्मेदार लोग निज स्वार्थ में मग्न थे, औऱ उनके समर्थक उनसे प्रश्न करने के स्थान पर उनकी जयजयकार करते जा रहे थे।
देश मे प्रतिदिन 25 हजार से ज्यादा संक्रमण के केस आ रहे हैं, और इनकी संख्या में निरंतरता के साथ वृद्धि होती जा रही है। एक मिलियन अर्थात दस लाख क्रॉस होने वाला है। विशेषज्ञ चिंतित हैं! डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी निरन्तर पुरूषार्थ की पराकाष्ठा करते हुए जीवन को बचाने में लगे हुए हैं। हमारे शोधकर्ताओं ने उपचार और वैक्सीन ढूंढने के लिए दिन-रात एक किया हुआ है। हमारे ऐसे बुजुर्ग अथवा वरिष्ठ शिक्षक जिन्होंने कभी कैमरे का अथवा मोबाइल आदि का सामना नही किया, जिन्होंने कभी वीडियो कॉलिंग नही की, वो समय की गम्भीरता को समझते हुए , विभिन्न कठिनाईयों का सामना करते हुए बच्चों को ऑनलाइन पढा रहे हैं। हमारे सफाईकर्मी निरन्तर अपने काम में लगे हुए हैं। हमारे प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी और हमारे पुलिसकर्मी, अपनी जान जोखिम में डालकर जनसेवा कर रहे हैं। हमारे रेहड़ीवाले, सब्जी वाले, अखबार वाले अपने अपने काम को बखूबी निभा रहे हैं। लेकिन हमारे वो जिम्मेदार राजनैतिक दल, जिनका दायित्व है कि इन सबको पर्याप्त सहयोग दे, वो इस समय राजनीतिक उठापठक में लगे हैं। हमारा मीडिया, उस उठापठक को इस तरह दिखा रहा है मानों देश मे कोई और घटना ही नहीं घट रही।  हमारा आम आदमी, जिसको इन सबका विरोध करना चाहिए, वो या तो टीवी पर आँखें टिकाकर न्यूज देखे जा रहा है, या व्हाट्सएप फॉरवर्ड और पोस्ट्स को पढ़कर, अपने आप को कुशल राजनीतिक विश्लेषक समझकर अनावश्यक चर्चा में मशगूल है। 
कोरोना आया है, तो हमें बहुत कुछ सिखा रहा है। लेकिन समस्या है कि ये एक क्रूर शिक्षक है,  और न सीखने वालों को ये कड़ा दंड भी दे रहा है। भविष्य उन्ही का है जो मजबूत हैं , डार्विन भी यह बात सदियों पहले समझ चुका था, चाणक्य हजारों साल पहले यह बता चुका था। लेकिन हम मजबूत बनने के बजाय इतना कमजोर हो गए हैं कि आवाज तक नहीं उठा रहे। हमारा नैतिक पतन होता जा रहा है, और हमारा आत्मबल इतना कमजोर हो गया है कि गलत को गलत कहने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे।
वर्तमान समय एक ऐसा समय है जो भविष्य को लिए यह तय करेगा कि क्या वास्तव में मनुष्य 'सभ्य' बन पाया है, या अभी भी लाखों साल पहले के आदिमानव की तरह भोजन, वस्त्र और अन्य भौतिक वस्तुओं के पीछे एक-दूसरे को मार डालने पर उतारू है। हमारे वीर योद्धा, हमारे स्वतंत्रता सेनानी, हमारे सैनिक, हमारे महान राजा, हमारी वीरांगनाएं, हमारे संत और हमारे अच्छे शिक्षक जब स्वर्ग से वर्तमान परिस्थितियों को देख रहे होंगे, तो सोच रहे होंगे कि क्या ये वही दुनिया है जिसकी कल्पना उन्होंने की, और उस कल्पना को साकार करने में अपना जीवन अर्पित कर दिया!
श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि "धर्मयुद्ध में कोई निरपेक्ष नहीं रह सकता! जो धर्म के साथ नही हैं, अथवा मौन है, वो अधर्म का समर्थक है।" और कुछ तथाकथित तर्कवादी और बुद्धिजीवयों को यह स्पष्ट कर दूं कि यहां धर्म का मतलब किसी पूजा पद्धिति से नहीं, बल्कि यहां धर्म का मतलब सच्चाई,अच्छाई, मानवता, ईमानदारी आदि मूल्यों से हैं।
खैर लगे रहो। 

Thursday, June 18, 2020

किसान और प्रलय

तिमिर गहन छा गया था

छिप गया था कहीं भास्कर।

आंधिया भी नचने लगी थीं।

बिखर रहे गुंबद भी गिरकर।।

 

नदियों ने भी तीर छलांगे

दावानल जल उठा भयंकर।

धरती भी कंपने लगी थी

चट्टाने बरसी सरक कर।।

 

काल भी थर्रा उठा था

मौत का ये नाच देखकर।

प्राण हरते जा रहे थे

यमजी अपना पाश फेंककर।।

 

चिताएं जलती जा रही थीं

लाशों का ये ढेर लेकर।

श्मशान भी डरने लगा था

मुर्दों की ये भीड पाकर।।

 

किसान अपनी झोंपडी से

निकला खलिहान की डगर।

कांधे कुदाली – हाथ रस्सी

साथ अपने बैल लेकर।।

 

खेत को वो लगा खोदने

पास अपने बीज रखकर।

पौधों को  उसने सींचा

नीर घडे में भरकर।।

 

बैंलो को फिर घास खिलाई

खेत किनारे से लाकर।

रोटियां खुद खाने लगा

पत्थर पर प्याज तोडकर।।

 

प्रलय को तो अचरज हुआ

लीला कृषक की देखकर।

धरती सारी डर रही है

ये किंचित नहीं भयभीत मगर।।

 

अरे मूर्ख तुम व्यर्थ में ही

हो काम इतना कर रहे।

तुम भी अभी मंर जाओगे

जैसे सभी जन मर रहे।।

 

जब मरना है पल भर में

तो काहे परिश्रम कर रहे।

मौत की तुम प्रतीक्षा करो

ये कार्य व्यर्थ में कर रहे।।

 

क्या तुम ये सोचते हो

फसल हरी कर पाओगे।

क्या तुम ऐसे वीर हो

जो मुझे हराकर जाओगे।।

 

दुनिया त्राहि करने लगी है

क्या ये सब तुम न जानते।

सब जन मुझसे भयभीत हैं

क्या मुझे नहीं हो पहचानते।।

 

खेत तुम्हारा जल उठेगा

फसल भी मिट जाएगी।

बैल तुम्हारे लड मरेंगे

मौत तुम्हे तो खाएगी।।

 

बात मेरी मान लो तुम

 काम अपना रोक दो।

है मौत तुम्हारी आ रही

ह्रदय को अपने शोक दो।।

 

 

किसान ने हाथ जोडकर

प्रलय को फिर किया प्रणाम।

मैं तुमसे नहीं हूं लड रहा

मैं तो हूं एक छोटा किसान।।

 

प्राण मिटाना काम तुम्हारा

है नाज उगाना मेरा काम।

तुम काम अपना कर रहे

मैं कर रहा अपना काम।।

 

मौत मुझे आ जाएगा

यह सोचकर भी क्यों डरूं।

जब तक प्राण बने हुए

सौम्यता से  काम करूं।।

 

जब तक सांसे चल रही

भय को ह्रदय में न रखूं।

जब तक देह में बल मेरी

स्वाद जीवन का चखूं।।

 

मौत अभी तक आई नईं

मौत से पहले क्यों मरूं।

और अगर मरना है तो

कर्तव्य पथ पर मैं मरूं।।

 

जब तक जीवन बना हुआ

मै काम करता जाउंगा।

जब तक न मुझको फल मिले

तनिक न विश्राम पाउंगा।।

 

बात मेरी मान लो

तुम भी न विश्राम करो।

नाश रचाना काम तुम्हारा

तुम तो अपना काम करो।।

 

खेती करना है मेरा काम

मैं काम करता जाउंगा।

कर्तव्य पथ पर डटकर ही

मैं वीरगति को पाउंगा।।

 

ये बात प्रभावी सुनकर के

काम प्रलय ने रोक दिया।

बढ रही जो मौत थी

उस मौत को उसने टोक दिया।।

 

साहस धैर्य तेरे मन में

जब जब घर कर जाएगी।

मौत न तेरा कुछ बिगाडे

न बुरा प्रलय कर पाएगी।।

 

तिमिर अब छंटने लगा था

दिख गया था दिन – दिवाकर।

आंधिया अब थक सी गईं थीं

दावानल फिर गया बिखर।।

 

काल भी तब शांत हुआ

यम ने अपना पाश रोका।

चिता की गर्मी बुझा गया

शीतल सी हवा का झोका।।

 

धरती भी गंभीर हो गई

नदियों ने मर्यादा थामी।

दुर कहीं अम्बर तल से

मुस्कुरा उठे तब अंतर्यामी।। 

 

 


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