Saturday, August 27, 2016

हिंदी के पक्ष में (Hindi ke Paksh me)

आमतौर पर सभी जानते और मानते हैं कि अंग्रेजी बोलना बहुत जरुरी है
क्योंकि जब आप बाहर जाओगे तो अंग्रेजी ही अंग्रेजी मिलेगी। साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन या बीटेक या हाई लेवल के कोर्स करने के लिए अंग्रेजी सीखना जरुरी है। जो भी बड़े समाचार पत्र है दुनिया के वो सब अंग्रेजी में है। अगर अंग्रेजी नही सीखी तो महत्वपूर्ण जानकारियों से हाथ धोना पड़ेगा। इंटरव्यू देने जाओगे तो अंग्रेजी नही बोलने पर नौकरी नहीं मिलेगी। अगर आप कभी किसी को संबोधित करोगे और यदि संबोधन में हिंदी का प्रयोग करोगे तो लोग आपको गंभीरता से नही लेंगे और हँसेंगे। कही विदेश में मंच संचालन का मौका हुआ तो हिंदी में कोई भाषण देने ही नही दिया जाएगा। आज टेक्नोलॉजी का जमाना है। जितने भी बड़े सॉफ्टवेर हैं या वेबसाइट हैं वो अंग्रेजी में ही उपलब्ध हैं। अगर आप विदेश में किसी प्रसिद्ध व्यक्ति/नेता/अधिकारी से मिलते हैं और आप अंग्रेजी नही बोल पाते तो वो आपसे मिलने को भी तैयार नही होंगे।
अब आम इंसान के पास दो विकल्प है।
पहला ये की अंग्रेजी सीखे और इसका प्रयोग करके अंग्रेजी के प्रभाव को बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे।
दूसरा ये कि अंग्रेजी तो सीखे लेकिन इतना योग्य बने कि इसका प्रयोग हिंदी में पोस्ट ग्रेजुएशन की किताबें लिखने, हिंदी में प्रयोग किये जाने वाले  बनाने और और हिंदी में मीडिया को चला सके। जो सामग्री अंग्रेजी में ही उपलब्ध है उसकी हिंदी में उपलब्धता सुनिश्चित कर सके ।सबसे बड़ी बात की अंग्रेजी में इंटरव्यू देने के नही बल्कि हिंदी में इंटरव्यू लेने के काबिल बना जाए। इतना प्रसिद्ध बना जाए कि लोग आपको हिंदी में सुनने को उत्सुक रहे। विदेश में जब आपका भाषण हो तो जो लोग हिंदी नही समझते वो दुभाषिए या ट्रांसलेटर का प्रयोग करके आपको सुने। हिंदी को इतना प्रभावी बनाइए कि बड़ी से बड़ी वेबसाइट या सॉफ्टवेयर को अपना हिंदी वर्शन तैयार करना पड़े। इतने महत्वपूर्ण बनिए कि जब विदेश में किसी पब्लिक फिगर या किसी अधिकारी/लीडर से मुलाक़ात हो तो वो आपको हेल्लो नही बल्कि 'नमस्ते' कहकर आपका सम्बोधन करे।
मैं दूसरे विकल्प का प्रयोग करना पसंद करता हूँ। हो सकता है कि आपको ये सब बातें अतिश्योक्ति लगें लेकिन मैं आपको कुछ उदाहरण देता हूँ
सरकार ने बीटेक जैसी बड़ी डिग्रियों के लिए हिंदी में पाठ्यक्रम प्रारम्भ किया है। सबसे पहले परीक्षण के तौर पर मध्यप्रदेश के एक विश्वविद्यालय में पढ़ाया जा रहा है। बहुत से लेखक और अध्यापक साइंस की पोस्ट ग्रेजुएशन लेवल की पुस्तक हिंदी में लिखने के कार्य में लगे हुए हैं। आज देश में अनेकों ही ऐसे स्टार्ट अप हैं जो हिंदी माध्यम से प्रारम्भ हुए और आज लोगों को रोजगार दे रहे हैं नौकरियां उपलब्ध करवा रहे हैं। अगर बात वेबसाइट की की जाए तो जितनी भी बड़ी वेबसाइटे हैं जैसे गूगल, ट्विटर, फेसबुक, याहू, माइक्रोसॉफ्ट उन्होंने हिंदी वर्शन बनाया हुआ है और लगातार अनेकों वेबसाइटों के द्वारा इस दिशा में काम किया जा रहा है। आज में दौर में सैकड़ों ही सॉफ्टवेर हिंदी में या हिंदी के लिए भी उपलब्ध हैं और गूगल के द्वारा बनाया गया 'गूगल हिंदी इनपुट' एप्लीकेशन एवं 'मंगल फ़ॉन्ट्स' ने हिंदी टाइपिंग में क्रांति ही ला दी है। आज लगभग हर विषय के बारे में जानकारी हिंदी में इंटरनेट पर उपलब्ध है जोकि कुछ साल पहले एक सपना मात्र था।
हिंदी में संबोधन की अगर बात की जाए तो माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी साब के विदेशों में अनेकों ही भाषण हिंदी में हुए हैं और उनको सुनने के इतने लोग एकत्रित हुए कि जगह कम पड़ गई।
सबसे महत्वपूर्ण बात कि श्रीमद् भगवद गीता जो मूल रूप से संस्कृत में है उसको भी कई देशों के विश्वविद्यालयों के विभिन्न कोर्सेस में पढ़ना अनिवार्य कर दिया है।

अगर मेरा इन सब बातों का मकसद पूछा जाए तो मैं कहूंगा कि ऐसा बिल्कुल नही है कि हमे अंग्रेजी पूरी तरह नही आए तक हम सफल नही हो सकते। हालांकि सत्य है कि अंग्रेजी एक महत्वपूर्ण भाषा है लेकिन यह भी सत्य है कि ये आवश्यक नही। अंग्रेजी भाषा सीखी जा सकती है लेकिन केवल इसी उद्देश्य से कि इससे विचारों का आदान प्रदान सुविधाजनक हो जाता है। और कोई भी भाषा सीखने में कोई बुराई नही है लेकिन अपनी मूल भाषा भूलने में बुराई ही बुराई है।  किसी को अगर अंग्रेजी नही आती तो इसमें शर्म की बात नही लेकिन अगर कोई व्यक्ति अपनी मातृ भाषा नही समझता तो उसे शर्म से पानी पानी हो जाना चाहिए।
अगर आपको लगता है कि अंग्रेजी सीखने से इंसान सफल होता तो मत भूलिए कि ब्रिटेन और अमेरिका में झाड़ू लगाने वाला  सफाईकर्मी  भी और भीख मांगने वाला भिखारी भी अंग्रेजी जानता है।
यह तो हमारे कुछ कम समझदार लोगो  की देन है जो यह भ्रम फैला रखा है कि हिंदी बोलने से इज्जत घटती है। यह तब से है जब अंग्रेजों का शासन था और उस समय अधिकांश बड़े अफसर और नेता अंग्रेजी बोलते थे। इससे सीधे साढ़े अनपढ़ लोगों को लगने लगा कि यदि कोई अंग्रेजी जानता है तो वह निश्चित ही बुद्धिमान होगा। वैसा ही भ्रम आज कुछ लोग फैला रहे हैं।
सबसे बड़ी दिक्कत तो यह है कि कुछ लोग अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव को देखकर हिंदी का प्रभाव बढ़ाने के प्रयास बजाय अंग्रेजी को स्वीकार कर लेते हैं। यह ठीक वैसा ही है कि किसी की शक्ति देखकर उसकी गुलामी स्वीकार कर लेना बिना अपनी शक्ति परीक्षण/प्रदर्शन किए।
लोग तीन प्रकार से अंग्रेजी का समर्थन करते हैं।
पहला तो वो हिंदी बोलने वाले कि सामने वाले को हिंदी नही आती केवल अंग्रेजी आती है तब हिंदी सामने वाले पर इतना प्रभाव छोड़ें की सामने वाला हिंदी सीखे को उत्सुक हो। ये एक बहुत अच्छी बात है।
दूसरे वो कि यदि सामने वाले को हिंदी नही आती तो बातचीत की आसानी के लिए सामने वाले से अंग्रेजी में बात करते हैं। इसमें कोई बुराई नही।
तीसरे वो जिनको खुद भी हिंदी आती है और सामने वाले को भी फिर भी भी होशियारी मारने के चक्कर में अंग्रेजी में बातचीत करते हैं। यह घटिया बात है।
हालांकि बात के अंत में मैं वही कहूंगा जो अक्सर हिंदी के विषय में कहता हूँ कि-
अगर आपको हिंदी वास्तव में नही आती तो जबर्दस्ती बोलने या लिखने की कोशिश न करे । कहीं अगर "मृदा को थैले में भरकर फेंकने ले जा रहा हूँ" के स्थान पर "मुर्दा को थैले में भरकर फैंकने ले जा रहा हूँ" कर दिया तो वेवजह मुसीबत में पड जाओगे।

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 सुबह जागकर मैं जब फोन पर मॉर्निंग वॉक कर रहा था तभी भागता हुआ मेरा मित्र ‘सर्फ पुदीना’ आ पहुंचा। वैसे तो सर्फ पुदीना का असली नाम सर्फ पुदीन...