Thursday, June 18, 2020

किसान और प्रलय

तिमिर गहन छा गया था

छिप गया था कहीं भास्कर।

आंधिया भी नचने लगी थीं।

बिखर रहे गुंबद भी गिरकर।।

 

नदियों ने भी तीर छलांगे

दावानल जल उठा भयंकर।

धरती भी कंपने लगी थी

चट्टाने बरसी सरक कर।।

 

काल भी थर्रा उठा था

मौत का ये नाच देखकर।

प्राण हरते जा रहे थे

यमजी अपना पाश फेंककर।।

 

चिताएं जलती जा रही थीं

लाशों का ये ढेर लेकर।

श्मशान भी डरने लगा था

मुर्दों की ये भीड पाकर।।

 

किसान अपनी झोंपडी से

निकला खलिहान की डगर।

कांधे कुदाली – हाथ रस्सी

साथ अपने बैल लेकर।।

 

खेत को वो लगा खोदने

पास अपने बीज रखकर।

पौधों को  उसने सींचा

नीर घडे में भरकर।।

 

बैंलो को फिर घास खिलाई

खेत किनारे से लाकर।

रोटियां खुद खाने लगा

पत्थर पर प्याज तोडकर।।

 

प्रलय को तो अचरज हुआ

लीला कृषक की देखकर।

धरती सारी डर रही है

ये किंचित नहीं भयभीत मगर।।

 

अरे मूर्ख तुम व्यर्थ में ही

हो काम इतना कर रहे।

तुम भी अभी मंर जाओगे

जैसे सभी जन मर रहे।।

 

जब मरना है पल भर में

तो काहे परिश्रम कर रहे।

मौत की तुम प्रतीक्षा करो

ये कार्य व्यर्थ में कर रहे।।

 

क्या तुम ये सोचते हो

फसल हरी कर पाओगे।

क्या तुम ऐसे वीर हो

जो मुझे हराकर जाओगे।।

 

दुनिया त्राहि करने लगी है

क्या ये सब तुम न जानते।

सब जन मुझसे भयभीत हैं

क्या मुझे नहीं हो पहचानते।।

 

खेत तुम्हारा जल उठेगा

फसल भी मिट जाएगी।

बैल तुम्हारे लड मरेंगे

मौत तुम्हे तो खाएगी।।

 

बात मेरी मान लो तुम

 काम अपना रोक दो।

है मौत तुम्हारी आ रही

ह्रदय को अपने शोक दो।।

 

 

किसान ने हाथ जोडकर

प्रलय को फिर किया प्रणाम।

मैं तुमसे नहीं हूं लड रहा

मैं तो हूं एक छोटा किसान।।

 

प्राण मिटाना काम तुम्हारा

है नाज उगाना मेरा काम।

तुम काम अपना कर रहे

मैं कर रहा अपना काम।।

 

मौत मुझे आ जाएगा

यह सोचकर भी क्यों डरूं।

जब तक प्राण बने हुए

सौम्यता से  काम करूं।।

 

जब तक सांसे चल रही

भय को ह्रदय में न रखूं।

जब तक देह में बल मेरी

स्वाद जीवन का चखूं।।

 

मौत अभी तक आई नईं

मौत से पहले क्यों मरूं।

और अगर मरना है तो

कर्तव्य पथ पर मैं मरूं।।

 

जब तक जीवन बना हुआ

मै काम करता जाउंगा।

जब तक न मुझको फल मिले

तनिक न विश्राम पाउंगा।।

 

बात मेरी मान लो

तुम भी न विश्राम करो।

नाश रचाना काम तुम्हारा

तुम तो अपना काम करो।।

 

खेती करना है मेरा काम

मैं काम करता जाउंगा।

कर्तव्य पथ पर डटकर ही

मैं वीरगति को पाउंगा।।

 

ये बात प्रभावी सुनकर के

काम प्रलय ने रोक दिया।

बढ रही जो मौत थी

उस मौत को उसने टोक दिया।।

 

साहस धैर्य तेरे मन में

जब जब घर कर जाएगी।

मौत न तेरा कुछ बिगाडे

न बुरा प्रलय कर पाएगी।।

 

तिमिर अब छंटने लगा था

दिख गया था दिन – दिवाकर।

आंधिया अब थक सी गईं थीं

दावानल फिर गया बिखर।।

 

काल भी तब शांत हुआ

यम ने अपना पाश रोका।

चिता की गर्मी बुझा गया

शीतल सी हवा का झोका।।

 

धरती भी गंभीर हो गई

नदियों ने मर्यादा थामी।

दुर कहीं अम्बर तल से

मुस्कुरा उठे तब अंतर्यामी।। 

 

 


Thursday, June 4, 2020

छात्रों की पुकार

वो ए.सी. में बैठे हैं

हम सडकों पर तपते हैं।

वो कारों में घूम रहे

हम सिटी बसों में चलते हैं।।


वो अपनी जिदों पर अडे रहे

वो मनमानी करते हैं।

वो परीक्षाएं करवाएंगे

छात्र भले ही मरते हैं।।

 

वो ए.सी. ऑफिस बैठ कर

हमें कुएं में धकेल रहे।।

हम लाचार-बेचारे हैं

कोरोना का दंश झेल रहे।।

 

वो बिना सडक पर आकर के

हमकों ज्ञान बघार रहे।

छात्र पहले से ही मरे हुए हैं

य़े और उन्हे हैं, मार रहे।।

 

सरकार अकड अब छोड दो

मत हम पर अत्याचार करो।

हमने तुमको सत्ता दी है

मत लौट हमीं पर वार करो।।


सर्फ पुदीना के सपने में ‘लोकतंत्र रक्षक’

 सुबह जागकर मैं जब फोन पर मॉर्निंग वॉक कर रहा था तभी भागता हुआ मेरा मित्र ‘सर्फ पुदीना’ आ पहुंचा। वैसे तो सर्फ पुदीना का असली नाम सर्फ पुदीन...