Tuesday, May 18, 2021

इजरायल-फिलीस्तीन विवाद और रूस

  पिछले कुछ समय से विश्व मीडिया में एक विषय जो लगातार रिपोर्ट किया जा रहा है, वो है इजरायल-फिलीस्तीन विवाद। इजरायल और फिलीस्तीन का विवाद नया नहीं है। मूलतः तो यह मामला सदियों पुराना है। इसका आधुनिक रूप कुछ दशकों पुराना है। समय-समय पर यह विवाद सुलग जाता है। पिछले कुछ दिनों से इस विवाद ने नया रूप ले लिया है। स्थिति लगातार बिगड रही है। लगातार दोनों ओर से हमले किये जा रहे हैं। इसी के चलते दोनों ओर के आम नागरिकों को इसका खामियाजा भुगतना पड रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी सामने आया है कि जमीन के अंदर सुरंगो का प्रयोग करते हुए हमास जैसे समूह लगातार हमले कर रहे हैं। इसके उत्तर में इजरायल से की गई कार्यवाही में बडी संख्या में ऐसी सुरंगों को नष्ट भी किया गया है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि हमास नाम का ये संगठन, फिलीस्तीनियों का प्रतिनिधि नहीं हैं। फिलीस्तीन की आधिकारिक सरकार अभी भी शांति के पक्ष में है। लेकिन दोनों ही देशों में ऐसे लोग हैं जो एक दूसरे के प्रति कट्टर भावनाएं रखते हैं। अभी मामला दो देशों के बीच में था, तब तक तो दुनिया को लगता था कि बीच-बचाव करके स्थिति को ठीक किया जा सकता है।  लेकिन अब अन्य देश भी अपने हित साधने के लिए इस विवाद में कूद रहे हैं। पाकिस्तान, तुर्की जैसे देश इस स्थिति का लाभ उठाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। इसी बीच रूस के भी इस विवाद में शामिल होने की संभावना लगातार बनती जा रही है।



इजरायल और गाजा पट्टी के इलाके में लगातार परस्पर बमबारी हो रही है। इन्ही के पडोस में एक देश है सीरिया। (मैप में देखें)  सीरिया में काफी समय तक हालात खराब बने रहे थे। अमेरिका  और यूके ने लगातार यहां कार्यवाहियां की थी। इस दौरान यहां के संसाधने को बहुत नुकसान पहुंचा था। इसके बाद रूस ने यहां पर अपने मिलिट्री बेस बनाए। रूस ने इस देश में काफी निवेश किया। वर्तमान में बताया जाता है कि रूस के छह से सात मिलिट्री बेस, सीरिया में स्थित हैं। सीरिया में बडी संख्या में ऐसे संगठन भी हैं जो इजरायल के खिलाफ हैं। इजरायल और फिलीस्तीन में लगातार विवाद के दौरान संभावना है सीरिया के यें संगठन भी इजरायल पर बमबारी करें। अगर ऐसा होता है तो पूरी संभावना है कि इजरायल इसके जबाब में कार्यवाही करेगा। ऐसे में रूस की चिंता होगी कि इजरायल की इस कार्यवाही में उनके मिलिट्री बेसों को नुकसान पहुंच सकता है।  इसलिए रुस, इजरायल पर कार्यवाही की घोषणा करेगा। अगर ऐसा होता है तो ये बहुत बडे विवादों को जन्म देगा क्योंकि रूस के ऐसा करने पर अनेकों देश भी इस विवाद में कूद पडेंगे, जो कि बिल्कुल भी अच्छा नहीं होगा। 

रूस के और इजरायल के संबंधों के आंकलन के लिए दो अलग घटनाओं को देखते हैं। सोवियत संघ (USSR) के विघटन से पहले लंबे समय तक अमेरिका और सोवियंत संघ में शीत युद्ध (Cold War) चला था। इस दौरान अमेरिका और इजरायल के अच्छे संबंध थे। तो स्पष्ट है कि इजरायल और रूस परस्पर विरोधी थे। कुछ समय पूर्व सीरिया में कार्यवाही के दौरान इजरायल ने भी सीरिया पर बमबारी की थी। उस समय भी रूस को चिंता थी कि उसके मिलिट्री बेसों को नुकसान पहुंच सकता है। इसके बारे में  25 दिसंबर 2019 को टाईम्स ऑफ इजराल के लेख में लिखा गया था कि नेतन्याहु ने इस बारे में जिक्र किया था। उनके अनुसार पुतीन ने कहा था कि यदि नेतन्याहू प्रधानंत्री न होते तो रूस ने इजरायल पर युद्ध घोषित कर दिया होता। आगे लिखा है कि नेतन्याहू ने पुतिन को विश्वास दिलाया कि वो सीरिया में आगे की कार्यवाही ध्यानपूर्वक करेंगे और पूरा ध्यान रखेंगे कि रूस को कोई नुकसान न पहुंचे। नेतन्याहू के इस रवैये से रूस और इजरायल के बीच टकराव की स्थिति उस समय बच गई थी। 

आज के समय में इजरायल और फिलीस्तीन के इस विवाद में बाकी देशों के कूदने की स्थिति लगातार बढती जा रही है। इससे स्थिति के लगातार बिगडने का खतरा बढता जा रहा है। हमें याद होना चाहिए कि प्रथम विश्व युद्ध भी ऐसी ही छोटी घटना से शुरू हुआ था, लेकिन बाद में उसने ऐसा रूप धारण कर लिया कि विश्व युद्ध हुआ, और इसके बाद एक और विश्व युद्ध हुआ जिसे द्वितीय विश्व युद्ध कहा गया। ऐसे में संयुक्त राष्ट संघ को चाहिए कि वो इजरायल पर एक तरफा कार्यवाही के प्रयास करने के स्थान पर, उस क्षेत्र में शांति की पहल करे। 


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