Monday, May 4, 2020

सख्त शिक्षक की भूमिका निभाता लॉकडाउन

जब से कोरोना को विश्व स्वास्थय संगठन ने महामारी घोषित किया है, तब से अनेकों देश लॉकडाउन में रहने को विवश हैं। एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में विश्व की लगभग आधी जनसंख्या लॉकडाउन में रह रही है। यह समय हमें बहुत कुछ सीखने का अवसर देता है। कोरोना से पहले तक हर युद्ध घऱ से बाहर निकलकर युद्धभूमि में लडा जाता था, लेकिन यह पहला अवसर है जब किसी समस्या को सुलझाने के लिए घर के अंदर रहने के लिए कहा जा रहा है। किसी ने कभी यह कल्पना भी नहीं कि होगी कि ऐसा समय भी आएगा जब सबकुछ थम जाएगा और दुनिया वीरान सी दिखने लगेगी।
कहते हैं कि हर समस्या अपने साथ कोई न कोई शिक्षा लेकर आती है। शायद कोरोना भी हमारे लिए कुछ सीख लेकर ही आया होगा। कोरोना ने मनुष्य को यह सोचने पर विवश किया है कि जीवन के जिन आभासी सुखों के पीछे हम मनुष्य भाग रहे हैं, वो कितना स्थाई है। हम मानव अपने विकास को लेकर अहंकार में रहते हैं। हम प्रकृति को चुनौती देने का प्रयास करते हैं लेकिन जब प्रकृति अपनी प्रतिक्रिया देती है तो हम असहाय हो जाते हैं। मानव का मूल स्वभाव है किसी भी संकट से झूझना और अंततः उससे उबर जाना। आशा है कि मानव अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करते हुए इस संकट से भी निपट लेगा। पिछले कुछ दशकों में संचार और यातायात के क्षेत्र में हमने क्रांति ला दी है। संचार के साधनों के माध्यम से दुनिया को एक छोटे शहर की तरह तो बना दिया है लेकिन इसके साथ आने वाले खतरों का आंकलन करने में हम विफल रहे। महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक 'हिंद स्वराज' में लिखा था कि रेलगाडी दुष्टता फैलाती है। आज के दौर में रेलगाडी का साथ हवाईजहाज आदि ने दिया है और कोरोना उस दुष्टता के रुप में फैल गया है। हालांकि आज के दौर में जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए यातायात के साधनों का प्रयोग आवश्यक है, लेकिन इससे उत्पन्न खतरों से लडने की तैयारी भी आवश्यक है।
जब हम इस महामारी से निपटने में सक्षम हो जाऐंगे तो हमारे लिए आवश्यक होगा कि हम ऐसी व्यवस्था करें कि यदि भविष्य में ऐसी कोई भी समस्या आने पर देश में सभी प्रकार की सीमाओं को सरलता से बंद की जा सके। अर्थात ऐसा तंत्र विकसित करना होगा कि यदि कोई संकट आता है तो किसी गांव, जिले, शहर अथवा राज्य की सीमाओं को पूरी तरह बंद किया जा सके। ऐसा करने से किसी भी प्रकार की महामारी को किसी क्षेत्र में ही रोका जा सकेगा। हमने देखा था कि कोरोना संकट में अनेको लोगों ने सकारात्मक योगदान दिया, लेकिन बडी संख्या में लोग ऐसे भी थे जिनके कारण स्थिति खराब हुई। ये लोग सरकारों के लिए चुनौती बन गए थे। हमें हमारे लोगों को इस तरह प्रशिक्षित करना होगा कि ऐसे किसी भी संकट में वो न केवल जिम्मेदाराना व्यवहार करें बल्कि संकट से निपटने में सरकार का सहयोग भी करें। जब हर व्यक्ति जिम्मेदार नागरिक की तरह व्यवहार करेगा तो हम किसी भी समस्या को आसानी से पराजित कर सकें। समस्या हमारे सामने यह आई थी कि लॉकडाउन लगाने पर अर्थव्यवस्था के साथ साथ शिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाएं भी ठप हो गईं थी। हमें  इस तरह से अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित करना होगा कि हम इस तरह के संकट में भी अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखें तथा हर व्यक्ति को अत्यावश्यक वस्तुएं यथा भोजन आदि की पूर्ति करवा सकें।
देखने में आया था कि कुछ लोगों ने ऐसे मौके पर एकदम गैरजिम्मेदाराना हरकतें की थीं। कुछ लोगों ने अपने सामूहिक कार्यक्रमों को बिल्कुल भी रद्द नहीं किया था। कुछ दुकानदारों नें मौके का गलत फायदा उठाते हुए कीमतें बढा दी थीं। कईं स्थानों पर वहां के स्थानीय निवासियों नें चिकित्साकर्मियों एवं सुरक्षाकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार किया था। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए न केवल दोषियों को कडी सजा का प्रावधान होना चाहिए बल्कि समाज में जागरूकता भी फैलाई जानी चाहिए ताकी लोग ऐसा करने से बचे।
इस बार लॉकडाउन के कारण तथा कुछ अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रमों के चलते कच्चे तेल की कीमतें असाधारण रूप से गिर गईं। इसके अतिरिक्त बहुत सी अंतरराष्ट्रीय कम्पनियों ने उत्पादन इकाईयों को एक देश से दूसरे देश में स्थानांनतरित किया था। ये दोनो ही भारत के लिए बडे अवसर थे। हम इन अवसरों का लाभ नहीं उठा पाए, बल्कि कुछ दूसरे देशों ने इनका लाभ उठाया।
इस महामारी में कुछ देश ऐसे थे जो एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति कर रहे थे, वहीं भारत ऐसा देश था जिसने आरोप प्रत्यारोप से दूर रहते हुए न केवल भारतवासी बल्कि हर मानवमात्र के भले के लिए पुरूषार्थ की पराकाष्ठा की। विश्व को भारत से शिक्षा लेनी चाहिए।
कहने को तो ये महामारी हमें बहुत कुछ सिखा सकती है, लेकिन ये हम लोगों पर निर्भर करता है कि हम इससे कुछ सीखते हैं या पहले से भी ज्यादा गैरजिम्मेदार बनते हैं।

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