Tuesday, October 20, 2020

लॉकडाउन गया है वायरस नहीं

 ‘लॉकडाउन गया है वायरस नहीं’

कोरोनाकाल के दौरान आज प्रधानमंत्रीजी का संबोधन था। इससे पहले के संबोधनों में प्रधानमंत्री ने कईं बिशेष घोषणाएं की थी, किन्तु इस बार प्रधानमंत्री का संबोधन कुछ अलग रहा। इस बार उन्होने लोगों की लापरवाही पर अपनी चिंता व्यक्त की और लोगों से सावधान रहने का आग्रह किया।

प्रधानमंत्री के द्वारा इस तरह की चिंता व्यक्त करना हम सब के लिए बडा संदेश है। यह एक ऐसा बिषय है जिसमें राजनीति और राजनैतिक हितों को परे रखकर, जनहित में विचार करना चाहिए। ऐसे में हम सब की जिम्मेदारी है कि प्रधानमंत्री के इस संबोधन और चिंता को गंभीरता से लेते हुए, न केवल स्वयं को जागृत करें, अपितु जनजागरण का भी प्रयास करें। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में प्रति 10 लाख पर संक्रमण के आंक़डे साढे पांच हचार मामले सामने आ रहे हैं जबकि अमेरिका-ब्राजील जैसे देशों में आंकड़ा 25 हजार के आसपास है।  भारत में प्रति दस लाख पर मृत्यु दर 83 है जबकि अनेको देशो में में आंकड़ा 600 के पार है। देश में 12000 कोरेन्टाईन सेंटर है। लेकिन यह समय लापरवाह होने का नहीं है। यह समय यह मानने का नहीं है कि कोरोना चला गया या अब कोरोना से कोई खतरा नहीं है। हाल ही के दिनों में मीडिया-सोशल मीडिया रिपोर्ट्स में देखा गया है कि लोगों ने सावधानी बरतना बंद कर दिया है, या बिल्कुल ही ढिलाई बरत रहे हैं। अगर आप लापरवाही बरत रहें हैं, और आप बिना मास्क के बाहर निकल रहे हैं, तो आप न केवल स्वयं को बल्कि अपने परिवार, बुजुर्ग, बच्चों को भी संकट में डाल रहे हैं। अमेरिका और यूरोप में कोरोना के मामले कम हो रहे थे, लेकिन अब फिर से बढने लगे हैं।

 लॉकडाउन भले चला गया हो, लेकिन वायरस अभी नहीं गया है।’

उन्होने कबीरदास जी के दोहे का उदाहरण दिया

‘पाकि खेती देखकरगर्व किया किसान।

अभी झोला(संकट) बहुत हैघर आवे तब जान॥’

अर्थात जब संकट पूरी तरह टल जाए तभी निश्चिंत होना चाहिए।

रामचरितमानस में लिखा गया है कि

‘रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि।’

अर्थात- शत्रुरोगअग्निपापस्वामी और सर्प को छोटा नहीं समझना चाहिए।

 जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं’

प्रधानमंत्री का यह चेतावनी देना कुछ लोगों के लिए राजनैतिक हो सकता है, कुछ लोग इसे गंभीरता से लेने से बच भी सकते हैं लेकिन यह हम सब के लिए आवश्यक है कि हम सावधानी रखकर न केवल स्वयं को बचाए, बल्कि अपने परिजनों को भी बचाएं।

‘छोटी सी लापरवाही हमारी खुशियों को धूमिल कर सकती हैं।’

यह बातें तो प्रधानमंत्री के संबोधन की थी, किन्तु आम व्यक्ति के तौर पर हमें अपनी जिम्मेदारियों को टालना नहीं चाहिए। ये जिम्मेदारियां हमारे ऊपर भार नहीं है, इन्हे बोझ नहीं समझना चाहिए। यह तो हमारे लिए आवश्यकता है। जिस तरह हम जलने से बचने के लिए आग से सावधानी रखते हैं, सर्दी से बचने के लिए ऊनी वस्त्र पहनते हैं, पेट के संक्रमण से बचने के लिए शुद्ध जल पीने का प्रयास करते हैं, उसी तरह हमारे लिए आवश्यक है कि कोरोना संक्रमण से बचने के लिए नियमित हाथ धोएं, मास्क लगाएं, एवं अन्य सावधानियों का ध्यान रखें।

 

                                  

Sunday, October 18, 2020

कोरोना : डर से लापरवाही तक

 

कोरोना : डर से लापरवाही तक

भारत में कोविड-19 का पहला केस 30 जनवरी 2020 को रजिस्टर किया गया था, जो कि 3 फरवरी तक बढकर 3 हो गए। मार्च 15 तक दुनियाभर के अनेकों देशों में लॉकडाउन लगाया जा चुका था।  भारत के कईं हिस्सों में अनेकों गतिविधियों पर रोक लगा दी गई थी। 22 मार्च 2020, रविवार के दिन जनता कर्फ्यू का आह्वान किया गया था, जिसमें देशभर के नागरिकों नें अच्छा सहयोग किया। इससे आगे बढते हुए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 24 मार्च 2020 को देशभर में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की, और घोषणा के कुछ घंटे बाद 24-25 मार्च 2020 की मध्यरात्रि से देशभर में लॉकडाउन लागू हो गया था। केवल अत्यावश्यक सुविधाओं को छोडकर, बाकी गतिविधियां बंद हो गई। कुछ ही घंटो में देशभर में माहौल बदल गया। कुछ लोग, अचानक हुए इस परिवर्तन से परेशान होकर ‘पैनिक’ करने लगे, कुछ लोग भयग्रस्त होकर अनावश्यक खरीददारी करने लगे। हालांकि प्रधानमंत्री जी ने अपने संबोधन में कहा था कि भयग्रस्त न हों। आवश्यक वस्तुओं की कोई कमीं नहीं आने दी जाएगी। देशभर में इसका अलग अलग प्रभाव रहा। जिस जगह मैं निवास कर रहा था, वहां खाद्य पदार्थ एवं दवाईयों जैसी जरूरी चीजों की कोई बिशेष समस्या नहीं रही। देशभर में कार्यालय, फैक्ट्रियां, यातायात आदि बंद हो गए। दिहाडी मजदूर एवं फेरीवालों का काम—ंधंधा ठप हो गया। चूंकि यह निर्णय सभी के हित में था, इसलिए सबने पर्याप्त सहयोग किया। पुलिस, प्रशासन, चिकित्साकर्मी, विद्युतकर्मी, जलदाय विभाग के कर्मचारी, सफाई कर्मचारी, मीडिया एवं संचार संबधी कार्मिकों ने अपना जीवन खतरे में होने के बावजूद भी अपना बेहतरीन देने की कोशिश की। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे विभाग भी थे, जिनके बारे में आमजनता को आभास नहीं था, लेकिन वो लगातार अपना कार्य करते रहे, ताकि देश चलता रहे।

लॉकडाउन के बाद देशभर में लोगों को अनेकों समस्याओं का सामना करना पडा। लोगों को ऐसे माहौल में जीने का कोई अनुभव नहीं था, इसलिए वो परेशान होने लगे। बडी संख्या में मानसिक रोग/तनाव आदि के रोगी बने। निम्नवर्ग के पास भोजन/दवाई आदि का भी अभाव हो गया। मध्यम वर्ग के लोगों की बचत भी मुठ्ठी में रेत की तरह फिसलने लगी। ऐसे नागरिक जो अपने घर से दूर रोजगार के लिए अथवा अन्य कारणों से रह रहे थे, उन्हे और उनके परिजनों को चिंताग्रस्त होना पड रहा था। सभी लोग इस अचानक आई आफत के कारण परेशान और भयभीत थे। उन्हे कुछ समझ नहीं आ रहा था। यातायात बंद था। सीमाएं सील थीं। लोग घर आना चाहते थे, लेकिन आ नहीं पा रहे थे। बाहर निकलने पर उन्हे बलप्रयोग का सामना करना पडता। अनेकों ऐसे केस भी थे जहां बलप्रयोग के कारण लोगों को चोटें आईं। लेकिन यह बलप्रयोग लोगों के जीवन के हित में था, इसलिए इस बलप्रयोग का विरोध नहीं किया गया, अपितु लोगों ने इसका स्वागत किया। समाजसेवियों ने आगे बढकर जरूरतमंदों की सहायता करने का फैसला किया, और अपनी जमापूंजी का उपयोग परहित में करते हुए निम्नवर्ग की पूरी सहायता करने की कोशिश की। एक तरफ जहां लोग अधिकाधिक सहायता प्रदान करने का प्रयास कर रहे थे, वहीं कुछ ऐसे भी लोग थे  जो मौके का फायदा उठाने की दृष्टि से जमाखोरी, कालाबाजारी आदि कर रहे थे।

अनेकों केस ऐसे भी  आए थे जहां किसी परिजन-माता,पिता,भाई,बहन,पुत्र,पुत्री एवं अन्य निकट संबंधी की मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सके, क्योंकि सीमाएं सील थीं, और उन्हे सीमाओं पर ही रोक दिया गया। जो लोग तकनीकि ज्ञान रखते थे, वो वीडियो कॉल के माध्यम से ही अंतिम संस्कार में शामिल हुए। लेकिन इस कष्ट को भी सहते हुए लोगों ने इस व्यवस्था का विरोध नहीं किया क्योंकि एक तो उनको पता था कि यह सबके भले के लिए किया जा रहा है, और दूसरा लोग इस मानसिक अवस्था में नहीं थे कि कुछ नया कर पाएं, क्योंकि इस अनोखी आफत से वो भयभीत थे।

खैर जैसे तैसे वो दौर समाप्त हुआ और लॉकडाउन के कुछ चरणों के बाद अनलॉक की प्रक्रिय शुरू हुई। अनलॉक की प्रक्रिया के पीछे सरकार की मंशा थी कि देश को चलाए रखने के लिए, लोगों की रोजी-रोटी  के लिए एवं जीवन को वापस पटरी पर लाने के लिए आवश्यक गतिविधियों को शुरू किया जाए। इसके लिए अनेकों चरण भी बनाए गए। अब लोगों को बाहर निकलने पर बलप्रयोग का सामना तो नहीं करना पडता लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग-मास्क-सेनिटाईजेशन आदि का ध्यान रखना पडता। अधिकांश लोग इसका पालन करने के लिए तैयार हो गए, लेकिन कुछ लोग ऐसे थे जो इसे अपने आत्मसम्मान से जोडकर इनका पालन करने में अपना अपमान समझते थे। खैर जैसे तैसे लोग अपना जीवन वापस पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे थे। अब 18 अक्टूबर 2020 का दिन है, और आज के दिन ‘पत्र सूचना कार्यालय’ की वेबसाईट पर उपलब्ध 16 अक्टूबर 2020 के ‘कोरोना बुलेटिन’ के अनुसार 13 अक्टूबर 2020 शाम आठ बजे तक 71,25,880 कोविड-19 के केस दर्ज किए गए। पिछले 24 घंटों में 55,342 केस दर्ज किए गए। 1,09,856 मृत्यु दर्ज की गईं। अर्थान एक लाख से अधिक लोगों की जिंदगी को ये बीमारी लील गई। अनकों परिवार ऐसे थे जिसमें एक से अधिक सदस्यों की मृत्यु हुई।

इतनी गंभीर स्थिति होने के बावजूद भी लोगों में लापरवाही बढती जा रही है। एक ओर ऐसे लोग हैं, जो इस बीमारी को इतनी गंभीरता ले रहे हैं कि इससे बचाव के चक्कर में मानसिक अवसाद में जा रहे हैं, वहीं बडी संख्या में ऐसे लोग है जो इसके प्रति असावधान है, और प्रतिदिन सैक़डों लोगों की मृत्यु हो रही है, और हजारों लोग पॉजीटिव पाए जा रहे हैं। एक आम व्यक्ति लापरवाह होता है तो समाज के प्रतिष्ठित लोग, बुद्धिजीवियों, नेताओं और प्रशासकों की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि उन्हे सचेत करें। अगर वो फिर भी लापरवाही बरतें तो उन्हे उचित रूप से दंडित करें। यह दंड उनके लाभ के लिए ही होगा। किन्तु आप परिस्थिति विपरीत है। राजनैतिक फायदों के लिए अनेकों जगहों पर सभाएं की जा रही हैं, आंदोलन, प्रदर्शन किए जा रहे हैं। जिन स्थानो पर चुनाव है, वहां पर चुनावी सभाओं  का आयोजन किया जा रहा है, जहां बडी संख्या में लोग एकत्रित हो रहे हैं। ऐसे में इन एकत्रित लोगों में किसी भी एक व्यक्ति के कोरोना संक्रमित होने पर, पूरे समूह के और उस समूह के जरिए समाज के उन लोगों के भी संक्रिमत होने की संभावना बढती है, जो अभी तक सावधानी और नियमों की पालना करते हुए इससे बचे हुए हैं। अनेकों देशों के कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर आ चुकी है, और उसके चलते संक्रमण की गति फिर से बढती जा रही हैं। इन सभी बातों की जानकारी होते हुए भी राजनेता, और आम नागरिक अपनी और दूसरों की जिंदगी खतरे में  डाल रहे हैं। राजनेताओं के बारे में आम धारणा है कि वो अपने राजनैतिक हित के लिए किसी भी प्रकार का अनैतिक कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे में चुनावी सभाएं, रैली, प्रदर्शन, आंदोलन आदि किए जाएं, तो आम नागरिक को आश्चर्य नहीं होता है, लेकिन जब आम नागरिक, इनमें सम्मिलित होते हैं, तो यह चिंता का बिषय बन जाता है।

आज राजनीति के स्तर और राजनेताओं की छवि लोगों के मन में बहुत अच्छी नहीं रह गई हैं। ऐसे में अगर राजनेता, राजनैतिक हित के लिए संक्रमण का खतरा बढाते हैं, तो उनकी छवि को और अधिक नुकसान नहीं होगा, क्योंकि आमजन इसके प्रति सचेत नहीं है, लेकिन अगर राजनैतिक दल चाहें तो इस समय लोगों को सचेत कर, और अपने राजनैतिक हित के स्थान पर नागरिकों के जीवन और देशहित को महत्व दें तो वो अपना स्तर और छवि दोनों सुधार सकते हैं। खैर मुझे नहीं लगता कि इस बार राजनैतिक दल कुछ सकारात्मकता दिखाएंगे। ऐसे में हमारे पास एक ही तरीका बचा है, कि खुद को इस संक्रमण से बचाएं, और संक्रमण के वाहक न बनकर दूसरों की भी रक्षा करें। अगर संक्रमण के लक्षण हैं तो बिन डर या लापरवाही के चिकित्सकीय सलाह लें। अगर संक्रमित हो गए हैं तो दिशानिर्देशों का पालन करें। अगर संक्रमण के बाद पुनः स्वस्थ हो गए हैं तो दूसरों को इसके अनुभव के बारे में बताकर जागरूकता लाएं।

(डिस्क्लेमर-  इस लेख में लेखक के निजी विचार प्रस्तुत किए गए हैं। इनके पीछे कोई दुर्भावना नहीं है।  अगर आप इन विचारों से सहमत नहीं हैं, तो इस लेख को नजरंदाज कर सकते हैं।)

Tuesday, October 13, 2020

बाल अपराध या बाल अपचारिता?

 

बाल अपराध या बाल अपचारिता?

अक्सर समाचार पत्रों में बाल अपराधों का उल्लेख होता है। समय समय पर अवयस्कों द्वारा किए जाने वाले अपराध, लोगों को विचार करने पर विवश करते हैं। अनेकों बाल अवयस्कों द्वारा किये जाने वाले अपराध गंभार प्रकृति के भी होते हैं, जिनके लिए आमजान की भावना होती है कि उन्हे वयस्कों की भांति ही दंड दिया जाना चाहिए। अधिकांश बार इनके द्वारा किये जाने वाले अपराधों की प्रवृत्ति गंभीर नहीं होती, किन्तु सामान्य अपराधों की भी बढती संख्या समाज के लिए चिंता का बिषय है।

अगर बात बाल अपराधों की कानूनी भाषा की करें, तो अधिनियमों, अनुच्छेदों एवं आधाकारिका दस्तावेजों में बाल अपराध शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है। बाल अपराध के स्थान पर ‘बाल अपचारिता’ का प्रयोग किया जाता है। इसके पीछे भावना यह है कि बालक कभी अपराधी नहीं हो सकते। वह ह्रदय से कोमल एवं विकार रहित होते हैं। उनके द्वारा किये जाने वाले ‘अपराध’, किसी विशेष ष़डयंत्र अथवा दुर्भावना से प्रेरित नहीं होते हैं। ऐसे में उन्हे ‘बाल अपराधी’ कहना अनुचित है। विभिन्न बुद्धिजीवियों ने ‘बाल अपचार’ की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं।

डा. पी. एन. वर्मा के अनुसार- “बाल  अपचारिता से अभिप्राय कर्तव्यों की उपेक्षा अथवा उल्लंघन से है, एक गलती से है।”

रॉबिन्सन के शब्दों में- “बाल अपचारिता से अभिप्राय आवारागर्दी, भिक्षावृत्ति, शैतानी, दुर्व्यवहार, उद्दंडता आदि प्रवृत्तियों एवं गतिविधियों से है।”

बाल अपचारिता के पीछे अनेकों कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ कारण निम्नानुसार है-

1.      पारिवारिक माहौल- किसी भी बालक के विकास में उसके परिवार का बिशेष महत्व होता है। अगर पारिवार का माहौल अनुचित, अनैतिक है, अथवा परिवार में वेश्यावृत्ति, नशे, अश्लीलता, आपराधिक गतिविधियां होती हैं, तो ऐसे में बाल के विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव प़डता है, और वह अपचारिता की ओर बढ सकता है।

2.      आर्थिक कारण- किसी भी बालक के लिए यदि अत्यंत आर्थिक कठिनाई का दौर चल रहा होता है, अथवा उसे किसी कारण से मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा करने में समस्या होता है, तो वह बाल अपचारिता में लिप्त हो सकता है।

3.      शिक्षा का अभाव- अक्सर देखने में आता है कि बाल अपचारियों में अधिकांशत वह बालक होते हैं, जिन्हे पर्याप्त शिक्षा का अवसर नहीं मिला।

4.      अश्लील साहित्य- अगर बालक को कम उम्र में अश्लील साहित्य तक पहुंच मिल जाती है, तो वह उनके सम्मोहन में भ्रमित होकर अनैतिक कार्यो की ओर बढ सकता है। ऐसे में उसके बाल अपचारी बनने की प्रबल संभावनाएं होती हैं। आज के दौर में इंटरनेट तक बच्चों की बढती पहुंच, उन्हे अश्लील सामग्री तक सरलता से पहुंच बनाने में बडी भूमिका निभी रही है।

5.      माता-पिता के साथ संबंध- किसी बालक के व्यक्तिव निर्माण में उसके माता पिता की महती भूमिका रहती है। लेकिन यदि माता-पिता के साथ बच्चे के संबंध अच्छे न हों, माता-पिता बच्चे के लिए पर्याप्त समय न दे पाएं, माता पिता में परस्पर विवाद होता हो अथवा उनके तलाक होने के कारण वो अलग अलग रह रहे हों तो ऐसी स्थिति का प्रतिकूल प्रभाव बच्चे के मस्तिष्क पर पडता है और  वह अपचारिता की ओर कदम बढा सकता है।

6.      शारीरिक अक्षमता- यदि कोई बालक शारीरिक रूप से अक्षम हैं और उसके परिचित, परिजन अथवा परिवेश द्वारा उसका मखौल बनाया जाता है, या उसके प्रति शून्यता रखी जाती है तो ऐसा व्यवहार, उस शिशु के ह्रदय को नकारात्मक संवेग प्रदान करता है, जिससे वह अपचारिता की ओर जा सकता है।

7.      संगति- किसी भी बालक, अथवा वयस्क के व्यवहार, जीवन-शैली में उसकी संगति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अगर कोई बालक ऐसी संगति में रह रहा है जिसमें गाली-गलौच, नशा, अपराध, अश्लीलता, वेश्यावृत्ति, चोरी, अपराध जुआ आदि में लिप्त व्यक्ति हों, तो उस बालक पर इसका गहरा प्रभाव पडता है, और वह भी ऐसे मार्ग पर बढ सकता है। इसी कारण के चलते राजेश कुमार बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान (1989 किं. लॉ. रि. 560 राजस्थान) तथा गोपीनाथ घोष बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल (1984 एस.सी.सी. क्रि. 478) केस के संदर्भ को लेकर हम जान सकते हैं कि किसी बाल अपचारी को, आप अपराधियों के साथ जेल में रखने के स्थान पर सुधार गृहों में क्यों रखा जाता है।

यह कुछ कारण है जो किसी बालक को अपचारिता की ओर धकेल सकते हैं। किसी बालक को अपचारिता से कैसे दूर ऱखा जाएं, अथवा किसी बाल अपचारी को कैसे सही दिशा में लाया जाए, इस बारे में हम बाद में चर्चा करेंगे।

(डिस्क्लेमर- इस लेख में प्रस्तुत विचार मेरे अपने है। आपको इनसे सहमत अथवा असहमत होने का पूरा अधिकार है। इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाना बिल्कुल भी नहीं है।)

सर्फ पुदीना के सपने में ‘लोकतंत्र रक्षक’

 सुबह जागकर मैं जब फोन पर मॉर्निंग वॉक कर रहा था तभी भागता हुआ मेरा मित्र ‘सर्फ पुदीना’ आ पहुंचा। वैसे तो सर्फ पुदीना का असली नाम सर्फ पुदीन...