Monday, July 1, 2019

कोई प्रत्याशी कितनी सीटों से चुनाव लड सकता है?




कई बार हम देखते हैं कि कोई नेता/प्रत्याशी एक से ज्यादा सीटों से चुनाव लडता है। हमारे मन में कईं बार यह कौतूहल होता है कि जीतने के बाद वह प्रत्याशी कौनसे विधानसभा क्षेत्र अथवा लोकसभा क्षेत्र को चुनेगा।  इस बार श्री राहुल गांधी ने दो लोकसभा क्षेत्रों अमेठी और वायनाड केरल से चुनाव लडा। इससे पहले श्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में लोकसभा चुनाव में गुजरात में वडोदरा से और उत्तरप्रदेश में वाराणसी से चुनाव लडा था। 2009 के लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव नें भी दो जगहों सहारन और पाटलीपुत्र से चुनाव लडा था। उससे और पहले के समय का चुनाव देखें तो श्रीमति सोनिया गांधी ने 1999 वेल्लारी कर्नाटक और रायबरेली से चुनाव लडा था। 1980 में इंदिरा गांधी जी ने भी दो जगहों से चुनाव लडा था।
 अब उत्सुकता होती है कि आखिर कैसे एक प्रत्याशी एक से ज्यादा जगहों से चुनाव लड सकता है और कितनी जगहों से चुनाव लड सकता है। अगर संविधान के नजरिए से देंखे कि एक प्रत्याशी कितनी जगहों से चुनाव लड सकता है, तो संविधान इस बिषय में मौन है, वहां स्पष्ट उल्लेख नहीं है। जब संविधान लागू हुआ तो संविधान को क्रियान्वित करने के लिए 1951 में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम बनाया गया। इसमें एक सेक्शन है, सेक्शन 33. हालांकि यह विवाद का बिषय रहा है क्योंकि यह एक से ज्यादा जगहों से चुनाव लडने के बारे में वर्णन करता है। जो मूल अधिनियम था, उसमें यह प्रतिबंध नहीं था कि एक प्रत्याशी कितनी जगहों से चुनाव लड सकता है। अर्थात उस समय प्रत्याशी जितनी चाहे उतनी जगहों से चुनाव लड सकता था। हालांकि उसी अधिनियम की धारा 70 के अनुसार कोई प्रत्याशी कितनी भी सीटों से चुनाव लडे या चुनाव जीतें, वो प्रत्याशी अधिकतम एक ही निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर सकेगा। यानि प्रत्याशी एक से ज्यादा निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकेगा। इससे एक बात तो स्पष्ट है कि यदि कोई प्रत्याशी एक से ज्यादा जगहों से चुनाव लडकर जीतता है तो वो एक निर्वाचन क्षेत्र को चुनेगा और दूसरे निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव संपन्न करवाने पडेंगे। स्व. अटल बिहारी जी ने 1957 में तीन जगहों से चुनाव लडा था। उनका पहला चुनाव क्षेत्र उत्तरप्रदेश में बलरामपुर था, दूसरा लखनउ था और तीसरा मथुरा था।
बात वर्तमान की करें तो 1996 में इस अधिनियम की सेक्शन 33 में संसोधन करके क्लोज 7 जोडा गया जो कि बहुत महत्वपूर्ण है। 33(7) के अनुसार कोई भी प्रत्याशी अधिकतम दो निर्वाचन क्षेत्रों से ही चुनाव लड सकता है। इसमें एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि यदि वह दोनों जगहों से जीत जाता है तो दोनो क्षेत्रों मे से एक का चयन करना होता है। यदि वो दस दिन के अंदर वो इस बात का निर्णय नहीं ले पाता है कि दोनों में से कौनसे निर्वाचन क्षेत्र का उसे प्रतिनिधित्व करना है तो दस दिन के बाद उसका दोनों निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव रद्द हो जाता है।
हाल ही में अश्विनी कुमार नाम के एक वकील ने 33(7) के विरुद्ध एक याचिका दायर की है। उनका तर्क है कि एक मतदाता एक ही जगह से मतदान कर सकता है, और यह भी तय है कि प्रत्याशी केवल एक ही जगह का प्रतिनिधित्व कर सकता है और दूसरी जगह छोडनी पडती है तो ऐसे में एक से ज्यादा जगहों से चुनाव लडने ही क्यों दिया जाए। निर्वाचन आयोग भी पूर्व में इस धारा के संदर्भ में कह चुका है कि जब कोई प्रत्याशी एक से ज्यादा जगहों से चुनाव लडकर जीत जाता है तो उसे एक जगह छोडनी पडती है। ऐसें में उस जगह दोबारा चुनाव करवाने पडते हैं जिसमें समय, ऊर्जा और धन का व्यय होता है। चुनाव आयोग ने 2004 में यह भी सुझाव दिया कि यदि कोई प्रत्याशी अगर दो जगहों से जीतता है और किसी एक निर्वाचन क्षेत्र को छोडता है तो वहां के दुबारा चुनाव का खर्चा वो प्रत्याशी दे। यदि वो विधानसभा चुनाव दो जगहों से लडकर जीतता है और एक जगह को छोडता है तो वह पांच लाख रुपये दे और यदि स्थिति लोकसभा क्षेत्रों की होती है तो वो दस लाख रूपये दे। हालांकि बाद में चुनाव आयोग ने इसे अपर्याप्त करार दिया क्योंकि बाद में चुनावों का खर्चा बढ गया। वर्तमान में यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। देखते हैं कि वहां से क्या निर्णय आता है।
-सौम्य मित्तल

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