Sunday, November 29, 2020

कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर चीन का नया पैंतरा

 बर्ष 2019 में कोरोना के पहले ज्ञात केस से लेकर आज (30 नवंबर 2020) Worldmeter वेबसाईट के अनुसार दुनियाभर कोरोना वायरस के 6 करोड से ज्यादा केस दर्ज हो चुके हैं। इसमें 14 लाख से ज्यादा मौतें दर्ज की गई हैं। यह ज्ञात आंकडा है। वास्तविक आंकडा इससे कहीं ज्यादा हो सकता है।

कोरोना वायरस का पहला केस 2019 में चीन के वुहान शहर में दर्ज किया गया था। मार्च 2020 आते आते यह लगभग पूरी दुनिया में फैल गया था। अप्रैल-जून तक के समय में दुनियाभर में यह संकट अपने उच्चतम शिखर पर था। दुनियाभर की लगभग सभी बडी अर्थव्यवस्थाएं काफी हद तक बंद हो चुकी थी। लगभग सभी बडे देशों में लॉकडाउन लगाया गया था। इससे अर्थव्यवस्था गिरने लगी थी। लाखों लोगों के लिए रोजगार का संकट खडा हो गया। करोडों लोगों को जीवन यापन के लिए संघर्ष करना पडा। लाखों मौतें हुई। इतने भारी नुकसान के बाद भी अधिकांश देश चीन को उत्तरदायी ठहराने से बचते रहे। हालांकि अमेरिका ने चीन को इसका जिम्मेदार माना। विभिन्न राजनैतिक, कूटनीतिक कारणों के चलते विभन्न देशों की सरकारों का भले ही इस बारे में कुछ भी रवैया रहा हो, लेकिन अगर बात आमजन की करें, तो दुनिया भर के लोग चीन को ही इसका दोषी मान रहे हैं। जब भी कोरोना वायरस का नाम आता है, तो लोग चीन के बारे में बुरा भला कहते हैं। उनकी भावनाएं जायज है। उन्होने बहुत कुछ खोया है, तो प्रतिक्रिया तो देंगे ही। चीन की सरकार इससे से तिलमिलाई हुई है। वो समय समय पर ऐसे पैंतरे अपनाते रहे हैं जिससे  कोरोना वायरस का लगा यह दाग उनके सर से छुपाया जा सके। इसके लिए कभी वो सैन्य हरकतें करते हैं, तो कभी आर्थिक-व्यवसायिक पैंतरे अपनाते हैं। अपनी कूटनीतिक चालों को चलते हुए वो अनेकों छोटे देशों को अपना निशाना बना चुके हैं। ऐसे में एशिया में एक ही उभरती हुई महाशक्ति है, जो उनके लिए चुनौती बन सकती है। वह है भारत। ऐसे में वो भारत के खिलाफ नीतियों से भी नहीं चूकते। 

हाल ही में चीन के वैज्ञानिकों ने नया दावा किया है। डेली मेल में 27 नवंबर को प्रकाशित एक लेख  के अनुसार चीनी शोधकर्ताओं ने यह दावा किया है कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति संभवतया भारत में हुई है। कोरोना वायरस की उत्पत्ति को अपने देश में होने के आरोप से बचने के लिए उन्होने ऐसा किया है। चाईनीज एकेडमी ऑफ साईंसेज की एक टीम ने यह दावा किया है कि बर्ष 2019 की गर्मियों में भारत में पानी की भारी किल्लत हुई। इसके चलते जानवरों और मनुष्यों का संपर्क बढा। इससे संभवतया यह वायरस जानवरों से मनुष्यों में आय़ा। उनके दावों के अनुसार भारत में कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते, और अधिकांश युवा आबादी के होने से इसका पता नहीं लगाया जा सका। फिर यह विभिन्न माध्यमों से बाहर के देशों में गया। उनका दावा है कि भारत और बंग्लादेश में इसका संचरण हुआ क्योंकि यहां पर आबादी घनत्व अत्यधिक है। डेली मेल के लेख में बंग्लादेश, यूएसए, भारत, ग्रीस, ऑस्ट्रेलिया, इटली, चेक रिपब्लिक, रूस और सर्बिया के नामों का भी उल्लेख है।

Glasgow University में Viral Genomics and Bioinformatics के हैड प्रोफेसर डेविड रॉबर्टसन ने इसे ‘बहुत त्रुटिपूर्ण’ कहा है। उन्होने यह भी कहा कि यह रिसर्च पेपर, कोरोना के बारे में जानकारी में कुछ भी नया नहीं बताता है। उनके अनुसार यह रिपोर्ट Biased अर्थात पक्षपातपूर्ण है। भारत में मीडिया हाउससेज, इसके बारे में कोई खास रिपोर्टिंग नहीं कर रहे हैं।

चीन का यह प्रयास , संभवतया इस उद्देश्य से रहा होगा कि आज से कईं साल बाद जब लोग कोरना वायरस महामारी के बारे में पढें, या बात करें तो सारा दोष सिर्फ चीन पर न जाए। आज के समय में भी दुनिया का ध्यान इस बात से हटाने के लिए चीन हरसंभव प्रयास कर रहा है। इसी कडी में कभी वह अपने पडौसी देशों के साथ सैन्य उलझनें तैयार करता है, तो कभी वह अपनी स्टेट मीडिया के जरिए ऐसी खबरें फैलाने का प्रयास करता है जिससे लोगों का ध्यान इससे हटे। यह अब भारतीय उपमहाद्वीप के आम लोगों पर निर्भर करता है कि वो इस बारे में अपनी क्या राय बनाते हैं। आम लोगों की राय ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है, और इसको ही प्रभावित करने का प्रयास चीन के द्वारा निरंतर किया जाता रहा है। 

आप अपनी राय बताएं कि आप इस बारें में क्या विचार रखते हैं


(डिस्क्लेमर- यहां लेख में दी हुई जानकारी विभिन्न मीडिया श्रोतों से ली गई है। लेख में दी हुई राय लेखक की निजी है। इसका उद्देश्य नकारात्मक बिल्कुल नहीं है।ः

Sunday, November 15, 2020

लोकतंत्र में फेसबुक पर आलोचना पर एफआईआर?

 जब हम ब्रिटिश शासन से मुक्त हुए, तो हमने हमारे देश में राजशाही की जगह लोकतंत्र का शासन रखने का विचार किया। शायद उस समय के आम नागरिकों से लेकर खास नेताओं तक का यही स्वप्न रहेगा कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने का अधिकार होगा। सभी को स्वतंत्रता होगी। किसी का दमन नहीं होगा आदि आदि। फिर उस लोकतंत्र की आत्मा को शरीर देने के लिए राजनैतिक व्यवस्थाएं की गईं, और उसके मस्तिष्क के रूप मेंं संविधान को निर्माण किया गया। शायद संविधान बनाते समय यह विचार रहा होगा कि कहीं लोकतंत्र के मार्ग पर देशवासी भटक न जाएं, इसलिए उनको हर समय राह दिखाने के लिए कुछ लिखित दस्तावेज होना चाहिए। लिखित दस्तावेज के रूप में हमें संविधान प्राप्त हुआ। विश्व का सबसे बडा लिखित संविधान। उस समय  नागरिकों के अधिकारों की अवधारणा भी दी गई, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बडा योगदान था। शायद उस समय के आम नागरिकों को यह आभास नहीं रहा होगा  कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, कितना बडा अधिकार है। इसका एक कारण यह भी रहा होगा कि उस समय का आम नागरिक अपने जीवन की रोटी-कपडा-मकान जैसी मूलभूत चीजों के प्रबंध में ही इतना उलझा होगा कि कुछ कहने का समय ही नहीं मिलता होगा। कुछ कहना चाहे भी तो सुने कौन? बाद में जब टीवी रेडियों का चलन हुआ, तो वहां तो केवल पढे लिखे तबके के उंचे लोग ही बोलते थे। आम आदमी तो तब भी मौन था। बोलना चाहे भी बोले कहां, और बोल भी दे तो सुने कौन। लेकिन आज लोग उसका महत्व समझ पा रहे हैं। आज लोगों के पास सोशल मीडिया की ताकत है। हालांकि अभी सभी लोग इसका पर्याप्त महत्व नहीं समझ पाए हैं, लेकिन धीरे धीरे समझ रहे हैं। शायद इसी वजह से हम आम नागरिक बोल सकता है। स्वयं को व्यक्त कर सकता है। अब उसकी सुनी भी जाती है। अब हुक्मरानों को डर रहता है कि पता नहीं कब किस आम नागरिक की आवाज, पूरे देश की आवाज बन जाए। जब से जनसाधारण की पहुंच इंटरनेट और सोशल मीडिया तक पहुंची है, तब से परिवर्तन की शुरूआत हुई है। अब हर मुद्दे पर जनसाधारण अपनी राय व्यक्त कर सकता है, और उसकी सुनी भी जाती है। हाल ही के कुछ घटनाक्रमों ने बता दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करते हुए जनसाधारण ने सोशल मीडिया पर आवाज उठाई है, तो सरकारों को अपने फैसलों पर पुनर्विचार तक करना पडा है। यह लोकतंत्र को सशक्त बनाता है। पर यहां भी सबकुछ उतना आसान नहीं है जितना पहली निगाह में दिखाई पडता है। लोगों ने तो अपने अधिकारों का धीरे धीरे प्रयोग करना शुरू कर दिया है, लेकिन अफसरशाही का अंग्रेजों के जमाने का रवैया अभी तक पूरी तरह गया नहीं है। अनेकों बार ऐसा होता है कि बोलने वाले को अपने बोलने की सजा भुगतनी पडती है। कईं जगहों पर छोटे बडे राजनेताओं, अफसरों अथवा ताकतवर लोगों को लगता है कि उन्हे कोई कुछ नहीं बोल सकता । कोई उनके ऊपर प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकता। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो इन लोगों का 'ईगो हर्ट' हो जाता है और अनेकों हथकंडे अपना कर ये उस आवाज को दबाने की भरकस कोशिश करते हैं। ऐसे में स्वतंत्र न्यायपालिका की अवधारणा को का महत्व समझ में आता है। जब जनसाधारण के ऊपर इस तरह का शक्ति प्रयोग होता है, तब न्यायपालिका सक्रिय भूमिका निभाते हुए, जनसाधारण के अधिकारों की रक्षक सिद्ध होती है। कुछ ऐसा ही हमें दिखा इलाहबाद हाईकोर्ट में आई एक याचिका में, जो कि उमेश प्रताप सिंह नाम के एक व्यक्ति के संबंध में थी।

उमेश प्रताप नाम के इन महोदय ने एक फेसबुक पोस्ट की थी। उस फेसबुक पोस्ट में प्रयागराज जिले के कोटवा बानी में बने एक क्वारंटीन सेंटर में अव्यवस्थाओं के बारे में जिक्र किया था।   शायद उमेश जी ने सोचा होगा कि फेसबुक पोस्ट के बाद उन अव्यवस्थाओं में सुधार होगा, लेकिन जैसा सोचा जाता है, अक्सर वैसा होता नहीं। उमेश जी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवा दी गई।  इसके बाद इस संबंध में इलाहबाद हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई।  याचिका का केस टाईटल है-  उमेश प्रताप सिंह बनाम यूपी राज्य और 4 अन्य [2020 की आपराधिक विविध रिट याचिका संख्या - 6691]। इसमें हाईकोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए कहा “यह एफआईआर स्पष्ट रूप से दुर्भावानागस्त और दुष्‍प्रेरित है...” । 

न्यायालय ने 4 नवंबर को अपने निर्णय में कहा कि “हमने सराहना की होती, अगर अधिकारियों ने फेसबुक पोस्ट पर ध्यान दिया होता और पोस्ट की सामग्री के विरोध में कुछ सामग्री लाते या कुछ सामग्री लाते, जिसमें यह दिखाया जाता है कि फेसबुक पोस्ट के बाद, उन्होंने क्वारंटीन सेंटर को बेहतर ढंग से प्रबंधित किया....”। 

न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को पांच हजार रुपये की क्षतिपूर्ति राशि दी जाए। यह राशि सरकारी खजाने से नहीं बल्कि संबंधित अधिकारी (प्रतिवादी संख्या 4 और 5) के वेतन से दी जाएगी।

इस मामले से यह हमें पता चलता है कि आज भी ऐसे अफसर सिस्टम में उपस्थित है, जो किसी आम नागरिक के द्वारा अव्यवस्थाओं के उजागर किये जाने से नाराज हो जाते हैं, और कार्यवाही करते हैं। इस मामले में न्यायालय ने माना कि “यह स्पष्ट है कि एफआईआर अधिकारियों द्वारा क्वारंटीन सेंटर के प्रबंधन में हुए कुप्रबंधन और अव्यवस्‍थाओं के खिलाफ पैदा हुई असंतोष की आवाज को दबाने के लिए दर्ज की गई है।...” हालांकि न्यायालय ने उमेश जी को राहत दी, लेकिन फिर भी यह उदाहरण है कि इस तरह की कार्यवाहियां अक्सर होती हैं। ऐसे में आम नागरिक को चाहिए कि वो न्यायालय पर विश्वास बनाए रखे और अपने अधिकारों के हनन होने पर न्यायालय की शरण में जाए। सर्वोच्च न्यायालय को संवैधानिक अधिकारों का संरक्षक अथवा अभिभावक माना जा सकता हैं। जब आम नागरिक की बात कोई नहीं सुनता, तब न्यायालय उसकी सुनता है। न केवल उसकी सुनता है, बल्कि उसे न्याय दिलाता है। हालांकि आम नागरिकों को यह भी समझना चाहिए कि हमारा देश अत्यंत विशाल है। ऐसे में हर जगह हर व्यवस्था एकदम आदर्श स्थिति में हो यह संभव नहीं। हमारे अधिकारीगण, प्रशासन और सिस्टम निरंतर कार्य करता है। लेकिन कार्यभार अधिक होने के कारण कईं बार अव्यवस्थाएं हो जाती हैं। ऐसे में सकारात्मक सोच अपनाते हुए प्रशासन, सिस्टम का सहयोग करते हुए सकारात्मक रूप से भागीदारी निभाएं, और व्यवस्था बनाए रखनें में सहयोग करे। अधिकारों के साथ कर्तव्य भी आते हैं। इसलिए अपना कर्तव्य निभाने में न चूकें। अधिकारियों, और प्रशासन को चाहिए कि किसी द्वारा की गई आलोचना पर नाराज होकर कार्यवाही करने के स्थान पर उस व्यक्ति की समस्या को सुनकर उसे दूर करने के प्रयत्न करें। इससे समाज में उनकी छवि बेहतर ही होगी। बाकि किसी भी नागरिक, चाहे वो आम व्यक्ति हो, या राजनेता, या अधिकारी, अपने अधिकारों के हनन की स्थिति में न्यायालय की शरण ले सकता है। न्यायालय निश्चित ही आपनी सुनेगा।




Tuesday, November 3, 2020

'रानू मंडल' से 'बाबे के ढाबे' तक

 आपको याद होगा कि कुछ पिछले साल 'रानू मंडल' नाम की एक महिला का वीडियो वायरल हुआ था। वह एक रेलवे स्टेशन पर लता दीदी का एक गाना प्यार का नगमा गा रही थी। उसमें रानू की आवाज काफी अच्छी लग रही थी, और वह वीडियो अचानक सभी जगह छा गया। लोगों को उस समय तक रानू मंडल का नाम नहीं पता था। वो केवल वीडियो को देखकर ही यह दुआ कर रहे  कि कोई गरीब महिला है, जो टैलेंटेड है, और उसे स्टेशन पर गा गाकर अपना गुजर बसर करना पड रहा है, काश इसे कहीं मौका मिले तो इसकी जिंदगी बदले।



(Photo From: Laughing Colors)
 तभी खबर आई कि हिमेश रेशमिया ने उस महिला को ढूंढ निकाला और यह भी घोषणा की कि वो उसे गाने का मौका देंगे। कुछ दिन बाद मार्केट में दो गाने आए जिनके कुछ हिस्सों में रानू मंडल की आवाज थी। आलम यह हो गया था कि जगह जगह रानू मंडल की आवाज में 'तेरी-मेरी-तेरी-मेरी-तेरी-मेरी-कहानी' सुनाई पडने लगा।लोग हिमेश रेशमिया की दरियादिली और रानू मंडल की बदली किस्मत की तारीफ कर ही रहे थे कि अचानक एक वीडियो और वायरल हुआ। इस वायरल वीडियों में दिखाई दे रहा था कि रानू मंडल नें अपनी एक फैन (या शायद मीडिया) के साथ अशिष्टता की, और अपने 'Celebrity' होने की अकड दिखाई। यह वीडियो कितना सच था, कितना झूठ, यह तो हमें नहीं मालूम, लेकिन इस वीडियो के बाद रानू मंडल की जिंदगी दुबारा बदल गई।जो लोग सोशल मीडिया पर उसे 'Hero' बना चुके थे, वही अब रानू के बदले रवैये को लेकर आलोचना करने लगे। जिस सोशल मीडिया के निवासियों ने उसे काम 'फेमस' किया था, उन्होने ही उसे 'डिफेम' कर दिया। जितनी जल्दी रानू मंडल सफलता की सीढी चढी थी, उतनी जल्दी ही वापस उतरना पडा। कुछ समय पहले खबर आई थी कि रानू के पास फिलहाल कोई काम नहीं है, और उसे वापस संघर्ष करना पड रहा है। 

ऐसा ही कुछ मामला 'बाबा का ढाबा' से हुआ। दिल्ली के मालवीय नगर में एक बुजुर्ग दंपत्ति एक ढाबा चलाते हैं। दंपत्ति की आयु अस्सी बर्ष के आसपास है। लॉकडाऊन से पहले तक वो अपना गुजारा करने लायक कमा लेते थे। ल़ॉकडाउन और कोरोना के चलते उनकी कमाई अचानक गिर गई। उन्ही के एक इंटरव्यू के अनुसार उनका गुजारा भी नहीं हो पा रहा था।कईं बार  उन्हे लागत निकालने में भी कठिनाई होती थी।एक यूट्यूबर है जो फूड व्ल़ॉगिंग करते हैं। फूड व्लॉगिंग का मतलब है कि वो अलग अलग भोजनालयों पर जाते हैं। वहां का खाना चखते हैं। उसके बारे में लोगों को बताते हैं। अगर भोजनालय के मालिक को सहायता की जरूरत होती है, तो वो लोगों को उसकी मदद की अपील करते हैं। संयोग ऐसा हुआ कि अक्टूबर की एक दोपहर को ये यूट्यूबर महोदय इस बाबा के ढाबा पर पहुंच गए। उन्होने इनसे बातचीत की। बातचीत कें दौरान पता चला कि ये बाबा बडी कठिनाई से गुजर रहे हैं। यूट्यूबर को लगा कि इस बारे में वीडियो बनाई जानी चाहिए। (ये हमारी निजी राय है कि यूट्यूबर ने सोचा होगा कि इससे बाबा की मदद भी हो जाएगी, और चैनल के लिए कंटेंट भी मिल जाएगा।) तो यूट्यूबर ने बाबा की वीडियो रिकॉर्ड की। उस वीडियो में ये बाबा साहब रोते हुए नजर आ रहे थे।वो अपनी कठिनाई के बारे में बता रहे थे। उनके अनुसार दिनभर काम करके कई बार तो सौ रूपये की भी कमाई नहीं हो पाती थी। उसके बाद यूट्यूबर ने उनके खाने की क्वालिटी के बारे में बताया। अब हम इस वीडियो का तो क्या ही वर्णन करें। आप खुद ही उनके चैनल पर जाकर देख लीजिए।



(Photo From: Dna India)
 फिर हुआ ये कि अचानक देशभर में वीडियो वायरल हो गया।आम लोगों से लेकर खास लोगों तक, सभी नें बाबा के लिए संवेदना व्यक्त की। यथा संभव बाबा की मदद की कोशिश की गई। बाबा के ढाबे पर भीड भी बढ गई। देश के सभी बडे मीडिया हाउसेस ने इस घटना को कवर किया। बाबा को बडे पैमाने पर आर्थिक मदद हुई। लेकिन इस में थोडा पेंच फंस गया। यूट्यूबर ने बाबा की मदद करने के लिए न केवल वीडियो बनाया था, बल्कि मदद के रूप  में आ रहे पैसों के 'मैनेजमेंट' में भी मदद की। मैनेजमेंट से हमारा मतलब है कि उसने बाबा के पैसे बैंक में जमा कराने में सहायता की। जो पैसे मदद के लिए यूट्यूबर के खाते में आए थे, उनको चैक के रूप में बाबा को दिया। कुल मिलाकर बाबा का उस समय यह मानना था कि ये यूट्यूबर भगवान के दूत बनकर आए और बाबा की जिंदगी बदल दी। लेकिन अभी कुछ समय पहले मामला अचानक बदल गया। बाबा ने इस यूट्यूबर के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है कि इसको मदद के नाम पर पच्चीस लाख रुपये मिले थे लेकिन यूट्यूबर नें धोखाधडी करते हुए रकम डकार ली। इस बारे में अपनी सफाई देते हुए इन यूट्यूबर भाईसाब ने अपना बैंक स्टेटमैंट दिखाया और बताया कि उन्होने कोई धोखाधडी नहीं की। उन्होने केवल सच्ची नियत से बाबा की मदद की है।अब चूंकि मामला पुलिस तक पहुंचना बताया जा रहा है, इसलिए यह जांच का बिषय है कि वास्तव में धोखाधडी हुई या नहीं हुई। लेकिन बाबा को जब मदद की जरूरत थी, तब से लेकर बाबा की मदद होने के बाद तक में उनके एटीट्यूड में बहुत बदलाव आ गया। आसान भाषा में कहें तो बाबा की बातों में अकड सी दिखाई देने लगी है। देशभर के लोग इस बारे में अपनी राय दे रहें है, कि बाबा 'दूसरे रानू मंडल' बन गया। जिसने उसकी मदद की, उसी के खिलाफ शिकायत कर दी। खैर बाबा सही हैं या नहीं, यह तो जांच के बाद पता चल ही जाएगा। लेकिन जिस तरह बाबा का रवैया बदला है, वह हमें निराश करता है।

(Photo From: The Print)

रानू मंडल हो या बाबा का ढाबा। दोनों में ही यह देखने में आया है कि पहलेे कठिनाई से गुजरने के बाद भी जब मदद मिली, तो इस मिली हुई मदद ने उनका रवैया बदल दिया। हो सकता है कि उनका वास्तविक रवैया यही हो, लेकिन कठिनाई और गरीबी के समय वो इस रवैये को उजागर नहीं कर पा रहे हों, लेकिन जैसे ही उनको पैसा और प्रसिद्धि मिलते ही उनका वास्तविक रवैया सामने आ गया हो।किसी महान व्यक्ति ने कहा है कि पैसा आदमी के स्वभाव को बदलता नहीं है, बल्कि उसके वास्तविक रवैये को कई गुना बढाकर सामने ले आता है। अगर कोई आदमी अच्छा है, तो उसकी अच्छाई कई गुना बढ जाती है, और अगर उसमें बुराई है, तो उसकी बुराई कईं गुना बढकर सामने आ जाती है।इसका एक कारण यह भी हो सकता है की अभावों के चलते वो अपने जीवनयापन में ही अधिकांश समय गुजार देता है। ऐसे में उसके पास पर्याप्त समय और संसाधन नहीं होते होंगे कि वो अपने अंदर की असलियत (अच्छाई या बुराई) को दिखाने के लिए हरकत कर सकें। पैसे, पावर आने पर उनके पास समय और संसाधन आ जाते हैं, और वो अपने वास्तविक स्वरूप में सामने आ जाते हैं।


(डिस्क्लेमर- घटनाओं के बारें में जानकारी अलग अलग मीडिया हाउसेज के द्वारा की हुई कवरेज, और इंटरनेट के माध्यम से जुटाई गई है। लेख में दी हुई राय हमारी निजी राय है, और इसका उद्देश्य नकारात्मक नहीं है। फोटोज को इंटरनेट से लिया गया है)

सर्फ पुदीना के सपने में ‘लोकतंत्र रक्षक’

 सुबह जागकर मैं जब फोन पर मॉर्निंग वॉक कर रहा था तभी भागता हुआ मेरा मित्र ‘सर्फ पुदीना’ आ पहुंचा। वैसे तो सर्फ पुदीना का असली नाम सर्फ पुदीन...