महामारी
महामारी का काल है, या तेरी ही माया है।
अपनी प्यारी धरती पर, ये कैसी विपदा लाया
है।।
कैसे आउं तेरे दर पर, तेरे सब पट बंद हैं।
महामारी के कष्ट काल में, मानव की बुद्धि
कुंद है।।
मानव से रूठ गया है तू, या कलयुग विकट अब
खिलता है।
तूने कहा था गीता में, तू सभी जगह पर मिलता
है।।1।।
गुरू है तू, ज्ञान है तू।
मानव का अभिमान है तू।।
संपत्ति है तू, विपत्ति है तू।
कंद-मूल और पत्ती है तू।।
योग है तू, संयोग है तू।
बिछुडों का वियोग है तू।।
अपकार है तू, उपकार है तू।
जीवन का उपहार है तू।।2।।
प्रेत भी तू है, खेत भी तू है।
सागर की ये रेत भी तू है।।
प्रेम भी तू है, रार भी तू है।
प्रलय का हाहाकार भी तू है।।
ताप भी तू है, आंच भी तू है।
तांडव का महानाच भी तू है।।
सौम्य भी तू है, काल भी तू है।
कालों का महाकाल भी तू है।।3।।
तू महाचन्द्र, तू श्याम विवर।
तू ही इस पृथ्वी का दिनकर।।
तू महात्वरित, तू महावेग।
तू ही कण कण का संवेग।।
तू ही शंका, तू महानिवारण।
तू गुरूत्व के बल का कारण।।
तू महानियम, तू ही खंडन।
तू नाभिक का महाविखंडन।।4।।
तू जीत में, तू हार में।
तू प्रेमी के प्यार में।।
तू एक में, तू खंड में।
तू शासक के दंड में।।
तू स्नेह में, तू रोष में।
तू प्रजा के आक्रोष में।।
तू राष्ट्र में, तू ग्राम में।
तू वीरों के संग्राम में।।5।।
मै मानव था महामूर्ख,
मैं मद में होकर चलता था,
कीट-पतंगे-जीवों को,
निज पैरों तले कुचलता था।
सागर सोखे-धरती चीरी-
पर्वत तोड-हवा बिगाडी,
और मिले मुझे और मिले,
मेरा मन यही मचलता था।।6।।
जीवों पर अत्याचार किया,
जुल्म विकट बरपाया था,
जिन्दा भूने और उबाले,
जीवित ही उन्हे पकाया था।
खालें खींचीं-आंख निकाली-
सींगें तोडे-आंत निकाली,
वो चीख रहे-चीत्कार रहे,
बिन सोचे उन्हे सताया था।।7।।
नाभिक तोडे-विस्फोट किए।
मानस में अपने खोट लिए।।
नदियां रोकी-बांध लगाए।
गले तो उनके सोख दिये।।
बंदूक बनाई-तोप सजाईं।
और चलाए अणु हथियार।।
गर्दन काटी-रक्त बहाए।
और मिटाए घर परिवार।।8।।
शाप उन्ही का लगा मुझे है।
लगा उन्ही का है अभिशाप।।
लौट मुझी पर आएंगे।
मेरी करनी - मेरे पाप।।
तेरे पथ से मैं भटक गया।
तुझे चुनौती दे डाली।।
झूठी शक्ति के मद ने।
बुद्धि तो मेरी हर डाली।।9।।
मै महामूर्ख, मै महानीच।
मै महाधूर्त, मै हूं गलीच।।
मै महातुच्छ, मै महापापी।
छुरी छुपाकर माला जापी।।
पर शरण में तेरी आया हूं।
हे मालिक मेरे पाप हरो।।
तेरी ही तो संतान हूं मैं।
हे मालिक मुझको माफ करो।।10।।
करो दया हे दयावान।
करो कृपा हे कृपानिधान।।
मानव की तुम रक्षा करो।
रक्षा करो हे महाबलवान।।
मुझको तुम सद्बुद्धि दो।
अपने पथ का देदो ज्ञान।।
मानव की तुम रक्षा करो।
हे त्राहिमाम हे त्राहिमाम।।11।।
अद्भुद लेखन शैली
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteअप्रतिम , बहुत अच्छा लेखन कौशल
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteमहामारी (कोरोना)से मानव समाज को बचाने का उपाय ईश्वर प्रार्थना
ReplyDelete🙏🙏 जी
Deleteअतिसुन्दर रचना है
ReplyDeleteधन्यवाद🙏
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