Thursday, September 28, 2017

क्या हिन्दी वाकई जटिल है?

दरअसल ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि हिन्दी जटिल है, और अनेक लोग इसे ज्यादा जटिल रूप प्रदर्शित करतें हैं। जबकि वास्तव में ऐसा नही है। हिन्दी अत्यंत सरल भी है और अत्यंत कठिन भी। हम इसे किसी भी रूप में व्यवहार में ला सकते हैं। यह एक विस्तृत भाषा है। यह केवलमात्र भाषा नही, संस्कृति और सभ्यता भी है।

पिछले कुछ दिनों से एक पोस्ट अधिक दिखाई दे रही है सोशल मीडिया पर जो यह दिखाने की कोशिश करती है कि हिन्दी केवल जटिल है और इसे व्यवहार में लाना संभव नही। मैं यहा आपके साथ वह पोस्ट शेयर कर रहा हूं और इसके साथ यह पोस्ट लिखने वाले को मेरा जबाब भी लिख रहा हूं
पोस्ट
आज हिंदी बोलने का शौक हुआ,
घर से निकला और एक ऑटो वाले से पूछा,
"त्री चक्रीय चालक पूरे वाराणसी शहर के परिभ्रमण में कितनी मुद्रायें व्यय होंगी ?"
ऑटो वाले ने कहा 😇, "अबे हिंदी में बोल रे.."
मैंने कहा, "श्रीमान, मै हिंदी में ही वार्तालाप कर रहा हूँ।"
ऑटो वाले ने कहा, "मोदी जी पागल करके ही मानेंगे । चलो बैठो, कहाँ चलोगे?"
मैंने कहा, "परिसदन चलो"
ऑटो वाला फिर चकराया !😇
"अब ये परिसदन क्या है?"
बगल वाले श्रीमान ने कहा, "अरे सर्किट हाउस जाएगा"
ऑटो वाले ने सर खुजाया और बोला, "बैठिये प्रभु"
रास्ते में मैंने पूछा, "इस नगर में कितने छवि गृह हैं ??"
ऑटो वाले ने कहा, "छवि गृह मतलब ??"
मैंने कहा, "चलचित्र मंदिर"
उसने कहा, "यहाँ बहुत मंदिर हैं ... राम मंदिर, हनुमान मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, शिव मंदिर"
मैंने कहा, "भाई मैं तो चलचित्र मंदिर की
बात कर रहा हूँ जिसमें नायक तथा नायिका प्रेमालाप करते हैं."
ऑटो वाला फिर चकराया, "ये चलचित्र मंदिर क्या होता है ??"
यही सोचते सोचते उसने सामने वाली गाडी में टक्कर मार दी।
ऑटो का अगला चक्का टेढ़ा हो गया और हवा निकल गई।
मैंने कहा, "त्री चक्रीय चालक तुम्हारा अग्र चक्र तो वक्र हो गया"
ऑटो वाले ने मुझे घूर कर देखा और कहा, "उतर साले ! जल्दी उतर !"
आगे पंक्चरवाले की दुकान थी। हम ने दुकान वाले से कहा....
"हे त्रिचक्र वाहिनी सुधारक महोदय, कृपया अपने वायु ठूंसक यंत्र से मेरे त्रिचक्र वाहिनी के द्वितीय चक्र में वायु ठूंस दीजिये। धन्यवाद।"
दूकानदार बोला कमीने सुबह से बोहनी नहीं हुई और तू श्लोक सुना रहा है।
आनंद ही आनंद 

अब यह पोस्ट लिखने वाले को मेरा संबोधन
सबसे पहली बात तो हिंदी का शौक नही, आदत होनी चाहिए। दूसरे आपको आज हिंदी का 'शौक' हुआ तो आपको पहले हिंदी सीखनी चाहिए। आप वेवजह संस्कृत शब्दों को हिंदी का बनाकर, हिंदी को क्लिष्ट दिखाने की कोशिश में है। अनेकों शब्द आपने वेवजह निर्मित कर दिए जिनकी आवश्यकता ही नही, जैसे 'त्रिचक्रीय चालक' , 'छवि गृह' , ' वायू ठूंसक' आदि आदि। ये सब आपने अपनी तरफ से बनाकर यह दिखाने की कोशिश की कि हिंदी जटिल है। आपने तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग किया, आप तद्भव शब्दो का प्रयोग कर सकते थे। आपने प्रचलित हिंदी का नही प्रयोग किया, इसीलिए ऑटो वाले ने औऱ दुकानदार ने आपका अपमान किया।  यदि हिंदी बोलनी है तो प्रचलित शब्दों का प्रयोग करें, हिंदी सभी भाषाओं के शब्दों को आसानी से अपना लेती है। हमें सदैव ऐसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए जिन्हे सामने वाला अासानी से समझ सके। यदि हम अपनी बात सामने वाले को अच्छी तरह व्यक्त नही कर पा रहे हैं तो यह हमारी गलती होती है न कि उस शब्द की जिसका हम प्रयोग करते हैं।
  आप हिंदी के गुणों को नही समझ पाएंगे तो जैसा अनुभव आज आपको हुआ, वैसा अक्सर होता ही रहेगा। और यह बड़े दुःख की बात है कि  भारत जैसे महान देश मे रहकर भी आप वर्तमान में प्रचलित हिंदी नही सीख पाए जिसकी वजह से आपको आज ऐसा अनुभव प्राप्त हुआ।
 *जय मातृभाषा* *जय मातृभूमि*

Friday, September 22, 2017

सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें

सोशल मीडिया पर फर्जी समाचारों के मामले बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में एक सोशल साइट 'फेसबुक' ने अपने ग्राहकों को जागरूक करने के लिए एक लेख साझा किया है जो उनको न्यूज फीड में दिखाई देता है। यहां आपके साथ उस लेख को शेयर कर रहा हूँ। आइए पढ़ते हैं लेख को उन्ही के शब्दों में-

हम Facebook पर फ़र्ज़ी ख़बरों को फैलने से रोकना चाहते हैं. इसके संबंध में हम क्या कर रहे हैं, इसके बारे में और जानें. जबकि हम ऐसी ख़बरों को फैलने से रोकना सीमित करने पर काम कर रहे हैं, हम आपको इन्हें पहचानने की कुछ युक्तियाँ बताना चाहेंगे:
शीर्षकों पर सहज ही विश्वास न करें. फ़र्ज़ी ख़बरों के शीर्षक अक्सर लुभावने होते हैं बड़े-बड़े अक्षरों में, विस्मय बोधक बिंदुओं के साथ. अगर इन शीर्षकों के दावे विश्वास करने लायक नहीं लग रहे हों, तो संभव है वे विश्वास करने के लायक नहीं ही हों.
URL को ग़ौर से देखें. झूठा या मिलता-जुलता URL, फ़र्ज़ी ख़बरों का चेतावनी लक्षण होता है. बहुत सी फ़र्ज़ी ख़बरों वाली साइटें, URL में छोटे-मोटे बदलावों के साथ, विश्वसनीय ख़बरों के स्रोतों की नक़ल करती हैं. आप इन विश्वसनीय साइटों पर जा कर URL की तुलना करके इन्हें जाँच सकते हैं.
स्रोत की जाँच-पड़ताल करें. सुनिश्चित करें कि ख़बरें किसी ऐसे स्रोत से हों जिन पर आप विश्वास करते हैं और सटीकता के लिए जिनकी ख्याति हो. अगर ख़बर किसी अनजान संस्था से आ रही हो, तो और अधिक जानने के लिए उनके “परिचय" खंड में जाकर मालूम करें.
अजीब सी दिखने वाली फ़ॉर्मेटिंग से सजग रहें. फ़र्ज़ी ख़बर वाली बहुत सी साइटों पर वर्तनी की ग़लतियाँ और अजीब से लेआउट देखने को मिलते हैं. अगर आपको ऐसे लक्षण दिखाई दें, तो सावधानी से पढ़ें.
फ़ोटो पर विचार करें. फ़र्ज़ी ख़बर वाली साइटों पर ऐसे चित्र या वीडियो होते हैं, जिनसे छेड़-छाड़ की गई होती है. कई बार फ़ोटो तो असली होती है, मगर उन्हें ग़लत प्रसंग में दिखाया जाता है. आप उस फ़ोटो या चित्र के लिए खोज करके यह सत्यापित कर सकते हैं कि वे आई कहाँ से हैं.
तारीख़ों की जाँच करें. फ़र्ज़ी ख़बरों में तारीख़ों का ऐसा क्रम हो सकता है जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता हो या फिर उनमें घटनाओं की तारीख़ों को बदला गया हो.
प्रमाण की जाँच करें. लेखक के स्रोतों की जाँच करें ताकि यह कन्फ़र्म किया जा सके कि वे सटीक हैं. प्रमाणों का न होना या ऐसे विशेषज्ञों पर भरोसा करना, जिनका नाम ही न दिया गया हो, ये फ़र्ज़ी ख़बर होने के लक्षण हैं.
अन्य रिपोर्ट देखें. अगर इस ख़बर की रिपोर्टिंग ख़बरों के किसी और स्रोत द्वारा नहीं की जा रही है, तो ये भी दर्शाता है कि ख़बर फ़र्ज़ी हो सकती है. अगर इस ख़बर की रिपोर्टिंग ख़बरों के किसी और स्रोतों द्वारा की जा रही है, जिन पर आपको भरोसा है, तो ख़बर असली होने की सम्भावना ज़्यादा होगी.
ये ख़बर है या मज़ाक़? कई बार फ़र्ज़ी ख़बरों और मज़ाक़ या व्यंग्य में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है. इसकी जाँच करें कि कहीं ख़बरों का यह स्रोत पैरोडी के लिए तो नहीं जाना जाता है, और ख़बरों के वर्णन और टोन से ऐसा तो नहीं लगता कि वे सिर्फ़ हँसी-मज़ाक़ के लिए हैं.
कुछ ख़बरें जानबूझ कर फ़र्ज़ी बनाई जाती हैं. जिन ख़बरों को आप पढ़ें, उनके बारे में समीक्षात्मक रूप से सोचें, और सिर्फ़ वही ख़बरें साझा करें जिनके सच्चाई के बारे में आपको यक़ीन हो.
वाकई फेसबुक के द्वारा यह एक अच्छा लेख है और अफवाहों से बचने  के लिए इस लेख को अपने परिचितों के साथ अवश्य शेयर करें

Friday, September 1, 2017

बदलाव

बहुत पहले टेलिविजन पर एक सीरियल आता था 'शक्तिमान'।

मेरा विचार है कि लगभग सभी पाठक लोग उससे परिचित होंगे।
उस सीरियल में शक्तिमान का बुराई से लड़ने का फार्मूला यह था कि बुराई से लड़ने के साथ अच्छाई को फैलाओ। पाप का 'प्रतिकार' करो। जब अच्छाई लोगों में आएगी तो वो बुराई से दूर होंगे, पाप कम करेंगे औऱ सत्य की जीत हो जाएगी।

यह सिर्फ कल्पना पर आधारित सीरियल था लेकिन इसमें एक सीख है जो मुझे अच्छी लगी।
वो यह कि किसी बुरी शक्ति से लड़ने के लिए उसका 'प्रतिकार' करो और साथ साथ सत्य के पक्ष में खड़े होने के लिए लोगों को आत्मनिर्भर बनाओ।
आज जो लगभग हर दूसरे-तीसरे व्यक्ति या समूह के द्वारा कहा जाता है कि कोई बुरी शक्ति हमारे समुदाय, सँस्कृति या सभ्यता को तोड़ रही है या विदेशी शक्तियां भारतवर्ष के लोगों में ही भारत के खिलाफ विचारधारा फैला रही हैं, उसमे हम सामान्यतः 'प्रत्युत्तर' देने के बजाय 'प्रतिक्रिया' देने लगते हैं। अगर हमें वाकई ऐसी शक्तियों से लड़ना और जीतना है तो हमे भारत के प्रत्येक व्यक्ति में विशेषकर बच्चों में अच्छाई भरनी होगी। ये अच्छाई अनेक रूपों में हो सकती है जैसे अपनी संस्कृति की सभी अच्छी बातों को उन्हें बताना ताकि उन्हें पता चले कि हमारी संस्कृति, किसी भी संस्कृति से अच्छी है और वो दूसरी संस्कृति विशेषकर पाश्चात्य संस्कृति की तरफ आकर्षित न हों। या फिर उन्हें यह शिक्षा देना कि किसी भी अनाधिकृत और अंजान व्यक्ति की बातों में न आएं। या उन्हें यह बताना कि किसी 'बाबा' को अपना भगवान बनाने के बजाय ईश्वर को पूजो औऱ कर्म को अपना उद्देश्य बनाओ। उन्हें भारतबर्ष के गौरवपूर्ण इतिहास को बताना। उन्हें यह बताना कि वाणी में शुद्धता रखो और सदैव गरिमापूर्ण शब्दों का प्रयोग करो। उन्हें छोटी छोटी बातों को मुद्दा बनाकर अपनी ऊर्जा खर्च करने के बजाय उसे देश औऱ स्वयं के विकास में लगाने की शिक्षा देना। उन्हें ऐसी शिक्षा देना कि रोजगार के लिए उन्हें भटकना न पड़े और बेरोजगारी के चलते गलत कदम न उठाएं।  उन्हें निराश न होने की 'प्रेरणा' (भाषण नही) देना। उन्हें इतना आत्मबल अर्जित करने में सहयोग करो कि वो किसी भी गलत विचारधारा  की तरफ आकर्षित न हों बल्कि स्वयं भला बुरा सोच सकने की क्षमता रख सकें। शुरुआत स्वयं से करनी पड़ेगी। हो सकता है कि हमे खुद को बदलने में कई बर्ष लग जाएं। मैंने स्वयं को बदलने की कोशिश की है। और मुझे स्वयं पर पूरा भरोसा है कि मैं किसी भी गलत विचारधारा के पक्ष में खड़े होकर देश को बुरा नही कहूंगा।
अगर हम ऐसा करने में सफल हुए तो हमे जरूरत नही पड़ेगी किसी भी बुरी शक्ति के प्रति प्रतिक्रिया देने की क्योकि यह स्वयं में एक प्रत्युत्तर होगी।

सर्फ पुदीना के सपने में ‘लोकतंत्र रक्षक’

 सुबह जागकर मैं जब फोन पर मॉर्निंग वॉक कर रहा था तभी भागता हुआ मेरा मित्र ‘सर्फ पुदीना’ आ पहुंचा। वैसे तो सर्फ पुदीना का असली नाम सर्फ पुदीन...