लेकिन क्या यह सिर्फ कानून व्यवस्था संबंधी मामला है। नहीं ऐसा नहीं है। यह एक सामाजिक मामला है। एक ऐसा मामला जिसका खामियाजा न केवल स्त्री, बल्कि पुरूष में भुगतते हैं। कुछ ऐसी धारणाएं समाज में पनप गई हैं, जो समाज में किसी बच्ची को, किसी लडकी को डराते हैं। न केवल बच्ची अथवा लडकी, अपितु उनके परिजन, उनके भाई-पिता को भी उनकी सुरक्षा की बडी चुनौती होती है। जन्म से लेकर, विद्यालय जाने तक, फिर युवावस्था में, फिर उसके विवाह होने तक। विवाह होने के बाद उसके पति तक। यह भय अकारण ही नहीं है। यह भय जन्म लेता है अनेकों अप्रिय घटनाओं की पुनरावृत्ति से। घटनाएं होती है अत्यंत घृणित । मारपीट, छेडछाड, दुष्कर्म, ऐसिड-अटैक, जबरदस्ती, दहेज संबंधी अपराध तो कुछ उदाहरण मात्र हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे अनेकों अपराध हैं, जिनके बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती। ये घटनाएं, और उन घटनाओं के समाचार ही कारण बनते हैं कि किसी बालिका के मन में समाज के प्रति भय का। समाज में ये घटनाऐं बच्चियों को डराती हैं। जब बच्ची घर से निकलती है, और चौराहे पर खडे लोगों की ऑंखे, एक्सरे का काम करते हुए उसे स्कैन करने का प्रयास करती हैं, उस समय बालिका के मन-मस्तिष्क पर जो भय का माहौल बनता है, जो मानसिक प्रताडना उसे झेलनी पडती है, उसे शब्दों में बता पाना अत्यंत कठिन है। जब बालिका को शिक्षा प्राप्त करने के लिए, स्कूल , कॉलेज अथवा दूसरे शहर में जाकर रहना पडता है, उस समय उसके बारे में जो बातें बनाईं जाती हैं, उससे बालिका और उसके परिजनों को जिस मानसिक कष्ट से गुजरना पडता है, वो अत्यंत भयानक होता है। जब किसी युवती पर एसिड अटैक किया जाता है, जिस के कारण उसकी मुंह, गला, मांस आदि जल, गल कर टपकते हैं, और उसकी खूबसूरत जिंदगी में जो भयानक समय आता है, वो कोई और कभी महसूस नहीं कर सकता। इन अपराधों को रोकना समाज का दायित्व है। इस डर को दूर करना भी समाज का ही दायित्व है। घरेलू हिंसाओं को, या अन्य अपराधों को केवल कानून का भय दिखाकर दूर नहीं किया जा सकता। इस कार्य को करने के लिए समाज में जागृति लानी होगी। इस कार्य को स्त्री और पुरूष दोनों मिलकर ही कर सकते हैं। सरकारों को प्रयास करना चाहिए कि समाज में जागरूकता आए, भय नहीं।
जब सभी प्रयास करेंगे, तभी सभी विकसित होंगे।
बहुत ही सटीक वर्णन🙏
ReplyDeleteधन्यवाद🙏
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