Monday, May 11, 2020

TikTok Vs YouTube का झगडा... क्या मैं परवाह करूं?

पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर बडा हंगामा चल रहा है। सोशल मीडिया पर हंगामा कोई नई बात नहीं है, ये चलता रहता है। लेकिन इस बार ये एक अलग ही स्तर पर पहुंच गया। इस हंगामे को एक संज्ञा भी दे दी गई है TikTok Vs YouTube. इस पर बडे स्तर पर लोग बहस कर रहे हैं। हालांकि बहस वही लोग कर रहे हैं जो इन्ही से संबंधित हैं। लेकिन आम दर्शक इस जाल में फंसकर अपना समय और ऊर्जा बर्बाद कर रहे हैं। तो चलिए पहले ये समझने का प्रयास करते हैं कि ये आखिर चल क्या रहा है।
वैसे तो आप TikTok और YouTube से परिचित होंगे ही। लेकिन फिर भी एक बार और जान लेते हैं। टिकटॉक  एक ऐसा प्लेटफॉर्म अथवा मोबाईल एप्लीकेशन है जो लोगों को वीडियो पोस्ट करने का अवसर देती है। इस पर वीडियो की लंबाई एक मिनिट तक की हो सकती है। यह प्लेटफॉर्म पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चायना  की एक कंपनी द्वारा तैयार किया गया है। इस के माध्यम से बहुत से लोगों ने प्रसिद्धि पाई है और करियर में आगे बढे हैं।  यूट्यूब  भी एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जिस पर वीडियो पोस्ट की जाती है। यूट्यूब पर वीडियो कई घंटो तक लंबी हो सकती है। यह गूगल के द्वारा बनाया गया प्लेटफॉर्म है। इस प्लेटफॉर्म ने दुनिया को बहुत से कलाकारों से मिलवाया है और लाखों लोग इस प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे हैं। यहां पर मनोरंजन, समाचार, कला, पाककला, अध्ययन एवं अन्य विभिन्न क्षेत्रों के वीडियो उपलब्ध हैं। दोनो ही प्लेटफॉर्म का उपयोग लोग बिशेषतौर पर मनोरंजन के लिए करते हैं। रिलायंस जियो के बाजार में आने के बाद जब इंटरनेट सस्ता हुआ तो ऑनलाईन वीडियो प्लेटफॉर्म के उपयोग में अचानक वृद्धि हुई। जब दर्शक बढे तो कलाकार भी बढ गए।
अब थोडा विवाद पर नजर डालते हैं। लंबे समय से अनेकों यूट्यूबर , टिकटॉक वीडियो बनाने वालो पर 'रोस्ट वीडियो' बनाते आए हैं। रोस्ट वीडियो को कुछ इस तरह समझ सकते हैं कि रोस्ट वीडियो में किसी भी व्यक्ति या कंटेंट पर व्यंग्य किया जाता है। लेकिन यह व्यंग्य कठोर भाषा का उपयोग करके बनाया जाता है, जिसमें वीडियो बनाने वाला यथासंभव प्रयास करता है कि ज्यादा से ज्याता कडा व्यंग्य किया जाए। व्यंग्य तक तो ठीक है, लेकिन कई बार व्यंग्य अथवा रोस्टिंग के नाम पर गाली-गलौच का प्रयोग भी किया जाता है। आमतौर पर यूट्यूबर्स जो हैं, वो टिकटॉकर्स पर यह आरोप लगाते हैं कि टिकटॉक बनाए जाने वाले अधिकांश वीडियोज में न तो कला का स्तर होता है, न ही सभ्यता का। उनका मानना है कि टिकटॉक पर वीडियोज बनाने में मेहनत नहीं करनी पडती हैं। हांलांकि इस बात के बारे मे मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। आप लोग अपने स्तर पर यह जांच कर सकते हैं कि टिकटॉक बनाने में कितना प्रयास अथवा मेहनत करनी पडती है। पिछले दिनों लॉकडाउन के दौरान एक यूट्यबर ने घर पर रहते हुऐ कंटेंट बनाने का विचार किया। उसने टिकटॉकर्स का रोस्ट किया। बहुत से टिकटॉक वीडियोज को लेकर उनकी रोस्टिंग की। रोस्टिंग के दौरान उस यूट्यूबर ने कुछ स्थानों पर ऐसी शब्दावली का प्रयोग किया जिसे आमतौर पर सभ्य समाज में अच्छा नहीं माना जाता। जब यह वीडियो लोगों ने देखा तो विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं दीं। टिकटॉकर्स ने जब वीडियो देखा तो अनेक टिकटॉकर्स क्रोधित हो गए। एक टिकटॉकर ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया के तौर पर वीडियो बनाया और उसने सभी यूट्यूबर्स को बुरा भला कहा। जैसे ही इस टिकटॉकर की वीडियो सामने आई तो बहुत से यूट्यूबर्स ने इस वीडियो पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इस टिकटॉकर, तथा बाकी के टिकटॉकर्स के ऊपर रोस्टिंग वीडियो बनाया। जब तक यूट्यूब के बडे क्रिएटर इससे दूर थे, तब तक मामला इतना गर्म नहीं था। लेकिन फिर एक बडे यूट्यूबर  ने जब अपनी प्रतिक्रिया देते हुए वीडियो बनाया तो मामला अचानक गर्म हो गया। कुछ लोग इस यूट्यूबर के समर्थन में आ गए तो कईं लोग टिकटॉकर के समर्थन में आ गए। फिर टिकटॉकर्स और यूट्यूबर्स एक दूसरे के प्लेटफॉर्म पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए वीडियो बनाने लगे। वो स्वयं के प्लेटफॉर्म को अच्छा और दूसरे के प्लेटफॉर्म को खराब बताने लगे। इसी स्थिति को 'कंट्रोवर्सी' की संज्ञा मिल गई और मौके का लाभ उठाने के उद्देश्य से बहुत से लोग इस पर अपनी प्रतिक्रिया देने लगे। ट्विटर आदि पर ट्रेंड चलने लगे। 'मीम्स कम्यूनिटी (Memes Community) ' यानि वो लोग जो किसी प्रसिद्ध डायलॉग को लेकर चुटकुला आदि बनाते हैं, वो इसे अवसर के तौर पर देखने लगे और मीम्स आदि बनाने लगे। लोगों ने जमकर इनको शेयर किया। इसका परिणाम यह निकला कि दोनो प्लेटफॉर्म के क्रिएटर्स में बहसें होनें लगीं। लेकिन बिशेष बात यह है कि दोनो प्लेटफॉर्म को चलाने  वाली कंपनियों की ओर से कोई बिशेष प्रतिक्रिया नहीं आई।
अब बिषय यह है कि क्या यह महत्वपूर्ण बिषय है? लोग इस के बारें चर्चाएं कर रहे हैं  और अपनी वैचारिक ऊर्जा का दुरुपयोग कर रहें हैं। जहां तक बात है टिकटॉक कम्यूनिटी, यूट्यूब कम्यूनिटी अथवा मीम्स कम्यूनिटी की तो उन लोगों के द्वारा इस पर कंटेट बनाया जाना तो समझ में आता है, लेकिन जो लोग क्रिएटर नहीं है, वो अपना समय और ऊर्जा ऐसे विवाद में नष्ट कर रहे हैं जिसका अस्तित्व ही नहीं है। ये दोनों कम्पनियां विदेशी हैं। प्लेटफॉर्म विदेशी हैं। लेकिन इस पर जो झगडा हो रहा है, उनमें ज्यातातर भारतीय लोग ही परस्पर विवाद कर रहे हैं। परस्पर गाली गलौच कर रहे हैं। अब प्रश्न यह है कि किसी ऐसी चीज जो अनावश्यक है, उसके लिए अपने ही लोगों से झगडा कितना उचित है। क्या भारतीय दर्शकों को इस विवाद को महत्व देना चाहिए ? क्योंकि हर विवाद का कोई न कोई लाभ उठा रहा होता है। इस विवाद का लाभ सभी उठा रहे हैं। कुछ लाईक्स और व्यूज की बहती गंगा में हाथ धोने के लिए इसको बढावा दे रहे हैं तो कुछ केवल मनोरंजन के उद्देश्य से यह चाहते हैं कि ये विवाद समाप्त न हों। लेकिन सभी लोग यह भूल रहे हैं कि इस तरह के विवाद से आपस में जो कडवाहट पैदा होती है, वो किसी के लिए भी उचित नहीं होती। टिकटॉक और यूट्यूब के बडे क्रिएटर्स को आपस में बातचीत करके इस विवाद को समाप्त करना चाहिए। मेरा विचार है कि जितने भी ऑनलाईन प्लेटफॉर्म के बडे क्रिएटर्स हैं, उनको कोई ऐसा संगठन आदि बनाना चाहिए जिसमें ऐसे ही विवादो पर चर्चा हो। इनको सुलझाया जाए। इस संगठन में इन प्लेटफॉर्म के सकारात्मक उपयोग पर चर्चा हो सकेगी। प्लेटफॉर्म का दुरूपयोग कर रहे लोगों पर कार्यवाही के लिए भी यह संगठन कंपनियों को सुझाव दे सकेगा। अगर इस तरह का संगठन संभव नहीं हुआ तो किसी न किसी दिन, बहुत से देशों की सरकारों को आगे आकर इन पर लगाम कसनी होगी ताकि समाज में समरसता बनी रहे। लेकिन यदि यह काम सरकारों अथवा कानून के ्द्वारा किया गया तो किसी के लिए भी लाभदायक नहीं होगा। इस स्थिति से बचने के लिए बडे क्रिएटर्स को चाहिए कि वो स्वयं ही आगे बढकर प्रयास करें कि सभी क्रिएटर्स में समरसता बनी रहे। आखिर विवाद से कोई हल तो कभी नहीं निकलता है, बल्कि विवाद का हल ढूंढने में अधिक ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
वैसे आप इस बारे में क्या विचार रखते हैं, आप यहां बता सकते हैं। आप एक कदम आगे बढकर सोशल मीडिया के माध्यम से सभी तक यह संदेश पहुंचा सकते हैं कि कोई संगठन बनाकर मेलजोल बढाएं। आखिर हम लोग ही तो कहते आए है 'वसुधैव कुटुम्बकम्'।

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