Thursday, July 16, 2020

आपदा में भी स्वार्थ ढूंढती राजनीति

इतिहास हमें बताता कि क्या हुआ। इतिहास हमें सिखाता है कि हमने क्या गलतियां कीं जो नहीं की जानी चाहिए थीं। जब कभी इतिहास लिखा जाएगा, और अगर मैं इतिहास लिखूँगा, तो यह अवश्य लिखा जाएगा कि जिस समय दुनिया महामारी से जूझ रही थी, लोगों के जीवन पर संकट था, विद्यार्थियों के भविष्य-जीवन अंधकार में थे, उस समय हमारे राजनैतिक दल, अनैतिक रूप से राज्य की सत्ता की खींचतान में लगे थे।
जिस गम्भीर और मूल्यवान समय में, जनहित में सर्वाधिक महत्वपूर्ण फैसले लिए जाने थे, उस समय राज्य में  अप्रत्याशित राजनैतिक उठापटक मची हुई थी। जिम्मेदार लोग मौन थे, और हमारे मतदाताओं ने इस विकट  स्वार्थपूर्ण परिस्थिति का विरोध भी नही किया। राज्य के मतदाताओं ने राजनैतिक दलों से यह प्रश्न तक नहीं किया कि वर्तमान समय राजनैतिक उठापठक का नहीं, बल्कि जनहित में महत्वपूर्ण निर्णय लेने का है, ऐसे में आप क्यों अस्थिरता लाने के प्रयास में हो!  हमारे समझदार मीडिया नें अपनी जिम्मेदारी निभाने के स्थान पर, अपनी प्रसिद्धि कमाने के मार्ग को चुना।
लोकतंत्र और संविधान पर हमला तो अनेकों बार हुआ है, औऱ सम्भवतया भविष्य में भी होगा, लेकिन वर्तमान में जो गम्भीर परिस्थिति बनी हुई है, उसमें लोकतंत्र, शासन, संविधान अथवा राजनैतिक दांवपेचों से अधिक महत्वपूर्ण है आमजन के जीवन और भविष्य की रक्षा!
अरे अत्यधिक बुद्धिमान प्राणियों! जब जनता ही नही बचेगी, लोगों के प्राण ही न बचेंगे, तो शासन क्या निर्जीव वस्तुओं अथवा रोबोट्स पर करोगे?
प्रभावशाली लोग कितना भी प्रभाव का दुरुपयोग कर लें, अपने आप को समाजसेवी और राजनैतिक आलोचक कहने वाले लोग, इस गम्भीर परिस्थिति में कितना भी मौन रह लें, 'शिशु नेता' कितना भी किसी दल का महिमामंडन कर लें, संवैधानिक औऱ कानूनी दांवपेचों का प्रयोग करके चाहे कोई पक्ष जीते, कोई हारे, लेकिन यह बात तय है कि इस सब संकट में आमजन पिसता जा रहा है। उसके हित के लिए आवश्यक निर्णय नही हो पा रहे हैं और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि वो आम आदमी एकदम चुप है, मानों पाषाण प्रतिमा हो! प्रभावशाली लोगों की चाटूकारिता की प्रवृत्ति, औऱ बलशाली लोगों के दिखाए भय ने सबको मौन कर रखा है!
प्रश्न यह नही है कि कौनसा दल सही है, कौनसा गलत, अथवा किस पक्ष ने सही निर्णय लिया, या किस पक्ष ने गलती की। सवाल यह है कि जब जनहित और जनजीवन पर संकट का समय था, राज्य और देश के लोगों को मदद की सर्वाधिक आवश्यकता थी, उस समय सभी जिम्मेदार लोग निज स्वार्थ में मग्न थे, औऱ उनके समर्थक उनसे प्रश्न करने के स्थान पर उनकी जयजयकार करते जा रहे थे।
देश मे प्रतिदिन 25 हजार से ज्यादा संक्रमण के केस आ रहे हैं, और इनकी संख्या में निरंतरता के साथ वृद्धि होती जा रही है। एक मिलियन अर्थात दस लाख क्रॉस होने वाला है। विशेषज्ञ चिंतित हैं! डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी निरन्तर पुरूषार्थ की पराकाष्ठा करते हुए जीवन को बचाने में लगे हुए हैं। हमारे शोधकर्ताओं ने उपचार और वैक्सीन ढूंढने के लिए दिन-रात एक किया हुआ है। हमारे ऐसे बुजुर्ग अथवा वरिष्ठ शिक्षक जिन्होंने कभी कैमरे का अथवा मोबाइल आदि का सामना नही किया, जिन्होंने कभी वीडियो कॉलिंग नही की, वो समय की गम्भीरता को समझते हुए , विभिन्न कठिनाईयों का सामना करते हुए बच्चों को ऑनलाइन पढा रहे हैं। हमारे सफाईकर्मी निरन्तर अपने काम में लगे हुए हैं। हमारे प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी और हमारे पुलिसकर्मी, अपनी जान जोखिम में डालकर जनसेवा कर रहे हैं। हमारे रेहड़ीवाले, सब्जी वाले, अखबार वाले अपने अपने काम को बखूबी निभा रहे हैं। लेकिन हमारे वो जिम्मेदार राजनैतिक दल, जिनका दायित्व है कि इन सबको पर्याप्त सहयोग दे, वो इस समय राजनीतिक उठापठक में लगे हैं। हमारा मीडिया, उस उठापठक को इस तरह दिखा रहा है मानों देश मे कोई और घटना ही नहीं घट रही।  हमारा आम आदमी, जिसको इन सबका विरोध करना चाहिए, वो या तो टीवी पर आँखें टिकाकर न्यूज देखे जा रहा है, या व्हाट्सएप फॉरवर्ड और पोस्ट्स को पढ़कर, अपने आप को कुशल राजनीतिक विश्लेषक समझकर अनावश्यक चर्चा में मशगूल है। 
कोरोना आया है, तो हमें बहुत कुछ सिखा रहा है। लेकिन समस्या है कि ये एक क्रूर शिक्षक है,  और न सीखने वालों को ये कड़ा दंड भी दे रहा है। भविष्य उन्ही का है जो मजबूत हैं , डार्विन भी यह बात सदियों पहले समझ चुका था, चाणक्य हजारों साल पहले यह बता चुका था। लेकिन हम मजबूत बनने के बजाय इतना कमजोर हो गए हैं कि आवाज तक नहीं उठा रहे। हमारा नैतिक पतन होता जा रहा है, और हमारा आत्मबल इतना कमजोर हो गया है कि गलत को गलत कहने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे।
वर्तमान समय एक ऐसा समय है जो भविष्य को लिए यह तय करेगा कि क्या वास्तव में मनुष्य 'सभ्य' बन पाया है, या अभी भी लाखों साल पहले के आदिमानव की तरह भोजन, वस्त्र और अन्य भौतिक वस्तुओं के पीछे एक-दूसरे को मार डालने पर उतारू है। हमारे वीर योद्धा, हमारे स्वतंत्रता सेनानी, हमारे सैनिक, हमारे महान राजा, हमारी वीरांगनाएं, हमारे संत और हमारे अच्छे शिक्षक जब स्वर्ग से वर्तमान परिस्थितियों को देख रहे होंगे, तो सोच रहे होंगे कि क्या ये वही दुनिया है जिसकी कल्पना उन्होंने की, और उस कल्पना को साकार करने में अपना जीवन अर्पित कर दिया!
श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि "धर्मयुद्ध में कोई निरपेक्ष नहीं रह सकता! जो धर्म के साथ नही हैं, अथवा मौन है, वो अधर्म का समर्थक है।" और कुछ तथाकथित तर्कवादी और बुद्धिजीवयों को यह स्पष्ट कर दूं कि यहां धर्म का मतलब किसी पूजा पद्धिति से नहीं, बल्कि यहां धर्म का मतलब सच्चाई,अच्छाई, मानवता, ईमानदारी आदि मूल्यों से हैं।
खैर लगे रहो। 

1 comment:

  1. सभी बातें बिल्कुल कटु सत्य है

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