Sunday, October 18, 2020

कोरोना : डर से लापरवाही तक

 

कोरोना : डर से लापरवाही तक

भारत में कोविड-19 का पहला केस 30 जनवरी 2020 को रजिस्टर किया गया था, जो कि 3 फरवरी तक बढकर 3 हो गए। मार्च 15 तक दुनियाभर के अनेकों देशों में लॉकडाउन लगाया जा चुका था।  भारत के कईं हिस्सों में अनेकों गतिविधियों पर रोक लगा दी गई थी। 22 मार्च 2020, रविवार के दिन जनता कर्फ्यू का आह्वान किया गया था, जिसमें देशभर के नागरिकों नें अच्छा सहयोग किया। इससे आगे बढते हुए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 24 मार्च 2020 को देशभर में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की, और घोषणा के कुछ घंटे बाद 24-25 मार्च 2020 की मध्यरात्रि से देशभर में लॉकडाउन लागू हो गया था। केवल अत्यावश्यक सुविधाओं को छोडकर, बाकी गतिविधियां बंद हो गई। कुछ ही घंटो में देशभर में माहौल बदल गया। कुछ लोग, अचानक हुए इस परिवर्तन से परेशान होकर ‘पैनिक’ करने लगे, कुछ लोग भयग्रस्त होकर अनावश्यक खरीददारी करने लगे। हालांकि प्रधानमंत्री जी ने अपने संबोधन में कहा था कि भयग्रस्त न हों। आवश्यक वस्तुओं की कोई कमीं नहीं आने दी जाएगी। देशभर में इसका अलग अलग प्रभाव रहा। जिस जगह मैं निवास कर रहा था, वहां खाद्य पदार्थ एवं दवाईयों जैसी जरूरी चीजों की कोई बिशेष समस्या नहीं रही। देशभर में कार्यालय, फैक्ट्रियां, यातायात आदि बंद हो गए। दिहाडी मजदूर एवं फेरीवालों का काम—ंधंधा ठप हो गया। चूंकि यह निर्णय सभी के हित में था, इसलिए सबने पर्याप्त सहयोग किया। पुलिस, प्रशासन, चिकित्साकर्मी, विद्युतकर्मी, जलदाय विभाग के कर्मचारी, सफाई कर्मचारी, मीडिया एवं संचार संबधी कार्मिकों ने अपना जीवन खतरे में होने के बावजूद भी अपना बेहतरीन देने की कोशिश की। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे विभाग भी थे, जिनके बारे में आमजनता को आभास नहीं था, लेकिन वो लगातार अपना कार्य करते रहे, ताकि देश चलता रहे।

लॉकडाउन के बाद देशभर में लोगों को अनेकों समस्याओं का सामना करना पडा। लोगों को ऐसे माहौल में जीने का कोई अनुभव नहीं था, इसलिए वो परेशान होने लगे। बडी संख्या में मानसिक रोग/तनाव आदि के रोगी बने। निम्नवर्ग के पास भोजन/दवाई आदि का भी अभाव हो गया। मध्यम वर्ग के लोगों की बचत भी मुठ्ठी में रेत की तरह फिसलने लगी। ऐसे नागरिक जो अपने घर से दूर रोजगार के लिए अथवा अन्य कारणों से रह रहे थे, उन्हे और उनके परिजनों को चिंताग्रस्त होना पड रहा था। सभी लोग इस अचानक आई आफत के कारण परेशान और भयभीत थे। उन्हे कुछ समझ नहीं आ रहा था। यातायात बंद था। सीमाएं सील थीं। लोग घर आना चाहते थे, लेकिन आ नहीं पा रहे थे। बाहर निकलने पर उन्हे बलप्रयोग का सामना करना पडता। अनेकों ऐसे केस भी थे जहां बलप्रयोग के कारण लोगों को चोटें आईं। लेकिन यह बलप्रयोग लोगों के जीवन के हित में था, इसलिए इस बलप्रयोग का विरोध नहीं किया गया, अपितु लोगों ने इसका स्वागत किया। समाजसेवियों ने आगे बढकर जरूरतमंदों की सहायता करने का फैसला किया, और अपनी जमापूंजी का उपयोग परहित में करते हुए निम्नवर्ग की पूरी सहायता करने की कोशिश की। एक तरफ जहां लोग अधिकाधिक सहायता प्रदान करने का प्रयास कर रहे थे, वहीं कुछ ऐसे भी लोग थे  जो मौके का फायदा उठाने की दृष्टि से जमाखोरी, कालाबाजारी आदि कर रहे थे।

अनेकों केस ऐसे भी  आए थे जहां किसी परिजन-माता,पिता,भाई,बहन,पुत्र,पुत्री एवं अन्य निकट संबंधी की मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सके, क्योंकि सीमाएं सील थीं, और उन्हे सीमाओं पर ही रोक दिया गया। जो लोग तकनीकि ज्ञान रखते थे, वो वीडियो कॉल के माध्यम से ही अंतिम संस्कार में शामिल हुए। लेकिन इस कष्ट को भी सहते हुए लोगों ने इस व्यवस्था का विरोध नहीं किया क्योंकि एक तो उनको पता था कि यह सबके भले के लिए किया जा रहा है, और दूसरा लोग इस मानसिक अवस्था में नहीं थे कि कुछ नया कर पाएं, क्योंकि इस अनोखी आफत से वो भयभीत थे।

खैर जैसे तैसे वो दौर समाप्त हुआ और लॉकडाउन के कुछ चरणों के बाद अनलॉक की प्रक्रिय शुरू हुई। अनलॉक की प्रक्रिया के पीछे सरकार की मंशा थी कि देश को चलाए रखने के लिए, लोगों की रोजी-रोटी  के लिए एवं जीवन को वापस पटरी पर लाने के लिए आवश्यक गतिविधियों को शुरू किया जाए। इसके लिए अनेकों चरण भी बनाए गए। अब लोगों को बाहर निकलने पर बलप्रयोग का सामना तो नहीं करना पडता लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग-मास्क-सेनिटाईजेशन आदि का ध्यान रखना पडता। अधिकांश लोग इसका पालन करने के लिए तैयार हो गए, लेकिन कुछ लोग ऐसे थे जो इसे अपने आत्मसम्मान से जोडकर इनका पालन करने में अपना अपमान समझते थे। खैर जैसे तैसे लोग अपना जीवन वापस पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे थे। अब 18 अक्टूबर 2020 का दिन है, और आज के दिन ‘पत्र सूचना कार्यालय’ की वेबसाईट पर उपलब्ध 16 अक्टूबर 2020 के ‘कोरोना बुलेटिन’ के अनुसार 13 अक्टूबर 2020 शाम आठ बजे तक 71,25,880 कोविड-19 के केस दर्ज किए गए। पिछले 24 घंटों में 55,342 केस दर्ज किए गए। 1,09,856 मृत्यु दर्ज की गईं। अर्थान एक लाख से अधिक लोगों की जिंदगी को ये बीमारी लील गई। अनकों परिवार ऐसे थे जिसमें एक से अधिक सदस्यों की मृत्यु हुई।

इतनी गंभीर स्थिति होने के बावजूद भी लोगों में लापरवाही बढती जा रही है। एक ओर ऐसे लोग हैं, जो इस बीमारी को इतनी गंभीरता ले रहे हैं कि इससे बचाव के चक्कर में मानसिक अवसाद में जा रहे हैं, वहीं बडी संख्या में ऐसे लोग है जो इसके प्रति असावधान है, और प्रतिदिन सैक़डों लोगों की मृत्यु हो रही है, और हजारों लोग पॉजीटिव पाए जा रहे हैं। एक आम व्यक्ति लापरवाह होता है तो समाज के प्रतिष्ठित लोग, बुद्धिजीवियों, नेताओं और प्रशासकों की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि उन्हे सचेत करें। अगर वो फिर भी लापरवाही बरतें तो उन्हे उचित रूप से दंडित करें। यह दंड उनके लाभ के लिए ही होगा। किन्तु आप परिस्थिति विपरीत है। राजनैतिक फायदों के लिए अनेकों जगहों पर सभाएं की जा रही हैं, आंदोलन, प्रदर्शन किए जा रहे हैं। जिन स्थानो पर चुनाव है, वहां पर चुनावी सभाओं  का आयोजन किया जा रहा है, जहां बडी संख्या में लोग एकत्रित हो रहे हैं। ऐसे में इन एकत्रित लोगों में किसी भी एक व्यक्ति के कोरोना संक्रमित होने पर, पूरे समूह के और उस समूह के जरिए समाज के उन लोगों के भी संक्रिमत होने की संभावना बढती है, जो अभी तक सावधानी और नियमों की पालना करते हुए इससे बचे हुए हैं। अनेकों देशों के कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर आ चुकी है, और उसके चलते संक्रमण की गति फिर से बढती जा रही हैं। इन सभी बातों की जानकारी होते हुए भी राजनेता, और आम नागरिक अपनी और दूसरों की जिंदगी खतरे में  डाल रहे हैं। राजनेताओं के बारे में आम धारणा है कि वो अपने राजनैतिक हित के लिए किसी भी प्रकार का अनैतिक कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे में चुनावी सभाएं, रैली, प्रदर्शन, आंदोलन आदि किए जाएं, तो आम नागरिक को आश्चर्य नहीं होता है, लेकिन जब आम नागरिक, इनमें सम्मिलित होते हैं, तो यह चिंता का बिषय बन जाता है।

आज राजनीति के स्तर और राजनेताओं की छवि लोगों के मन में बहुत अच्छी नहीं रह गई हैं। ऐसे में अगर राजनेता, राजनैतिक हित के लिए संक्रमण का खतरा बढाते हैं, तो उनकी छवि को और अधिक नुकसान नहीं होगा, क्योंकि आमजन इसके प्रति सचेत नहीं है, लेकिन अगर राजनैतिक दल चाहें तो इस समय लोगों को सचेत कर, और अपने राजनैतिक हित के स्थान पर नागरिकों के जीवन और देशहित को महत्व दें तो वो अपना स्तर और छवि दोनों सुधार सकते हैं। खैर मुझे नहीं लगता कि इस बार राजनैतिक दल कुछ सकारात्मकता दिखाएंगे। ऐसे में हमारे पास एक ही तरीका बचा है, कि खुद को इस संक्रमण से बचाएं, और संक्रमण के वाहक न बनकर दूसरों की भी रक्षा करें। अगर संक्रमण के लक्षण हैं तो बिन डर या लापरवाही के चिकित्सकीय सलाह लें। अगर संक्रमित हो गए हैं तो दिशानिर्देशों का पालन करें। अगर संक्रमण के बाद पुनः स्वस्थ हो गए हैं तो दूसरों को इसके अनुभव के बारे में बताकर जागरूकता लाएं।

(डिस्क्लेमर-  इस लेख में लेखक के निजी विचार प्रस्तुत किए गए हैं। इनके पीछे कोई दुर्भावना नहीं है।  अगर आप इन विचारों से सहमत नहीं हैं, तो इस लेख को नजरंदाज कर सकते हैं।)

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