Monday, May 18, 2020

अपनी ताकत से परेशान इंसान

लोग अक्सर बहुत परेशान रहते हैं। उनकी परेशानियों का कारण, बाहरी से अधिक आंतरिक होता है। मानसिक तनाव, डर, ईर्ष्या, इंसान को खोखला कर देती है और उसे प्रताडित करती है। आपको हर दूसरा इंसान ऐसा मिल  जाएगा, जो किसी न किसी कारण परेशान होगा। जब आप उसकी परेशानियों का कारण जानेंगे तो पाएंगे, कि उसकी परेशानी, वास्तव में अस्तित्व में ही नहीं है। उसने ऐसी परेशानियों को अपने सिर पर लाद रखा है जो वास्तविक दुनिया की उपज ही नही हैं। लेकिन ऐसा क्यों है। क्यों इंसान को इतनी समस्याए हैं। और हमने ऐसा क्यों कहा है कि इंसान अपनी ही ताकत से परेशान है।
जब प्रकृति नें मनुष्य को बनाया , तब उसे सभी जीवों में सबसे बेहतर खूबियों से नवाजा। लेकिन उस समय तक इंसान का शरीर या दिमाग, आज की तरह नहीं था। आज की तरह विकसित दिमाग और शरीर पाने के लिए इंसान ने लाखों सालों तक प्रयत्न किया। निरंतर विकसित होकर, लगातार कडे अभ्यास और प्रयास से हमने शरीर और दिमाग को विकसित किया। हमने दो महान शक्तियों को समय के साथ प्राप्त किया। ये दो शक्तियां हैं, स्मरण शक्ति और कल्पना शक्ति। स्मरण शक्ति वो है जो हमें पुरानी घटनाओं, सूचनाओं को एकत्र करने की क्षमता प्रदान करती  है। कल्पना शक्ति वो है, जो हमें किसी भी ऐसी घटना अथवा सूचना, जो अस्तित्व में नहीं है, पर विचार करने की क्षमता प्रदान करती है। स्मरण शक्ति के प्रयोगों से तो हम सभी परिचित हैं। अपना नाम, परिचय, परिवार, देश, भोजन, भाषा, व्यापार, शासन आदि सभी चीजें मुख्यतः स्मरण शक्ति से ही संभव हैं।  बात करें कल्पना शक्ति की तो नए आविष्कार, कला, संगीत , लेखन, मनन आदि ऐसी चीजे हैं जो कल्पनाशक्ति के सहारे ही की जा सकती है। आज की दुनिया बनाने में, और जो दुनिया हम आगे बनाएंगे, वो इन दोनों शक्तियों के सहार ही संभव है। यदि ये दो शक्तियां इंसान से छीन ली जाएं, तो इंसान में और किसी साधारण जीव में कोई फर्क नहीं रह जाएगा। अब प्रश्न यह उठता है कि जब हमारे पास इतनी महान शक्तियां उपलब्ध हैं, जिनके सहारे हमने इतनी बेहतर दुनिया बना ली है, तो फिर हमें इतनी समस्याएं क्यों सामने आती हैं।
दरअसल, जब हमारे पास शक्तियां आती हैं, तो साथ में जिम्मेदारियां भी आती हैं। यदि हम उन जिम्मेदारियों का पालन सही प्रकार से नहीं करते हैं, और उन शक्तियों का सदुपयोग करने में असफल रहते हैं, तो हम न केवल स्वयं के लिए, अपितु दूसरों के लिए भी विनाश का कारण बन सकते हैं। हमने इंसान नें कल्पना शक्ति और स्मरण शक्ति को, लाखों बर्षों के प्रयास से प्राप्त तो कर लिया है, लेकिन उनका सदुपयोग करना अभी पूरी तरह नहीं सीख पाया है। इनका दुरूपयोग करने के कारण दुःख प्राप्त करता है। इसका उदाहरण देखने का प्रयास करते हैं। मानिए कि आज से पांच साल पहले , आपके किसी परिचित नें आपको सार्वजनिक रूप से अपमानित किया, और आप के साथ हाथापाई भी की। उस समय आप ने संयम रखा और शांत रहे। लेकिन उस अपमान ने आपको दुःख पहुंचाया। वो घटना पांच साल पहले घटित हो गई। आज पांच साल बाद आप उस घटना को याद करते हैं। उस घटना को याद करते ही, आप को गुस्सा, और दुःख का अनुभव होता है। आप का रक्तचाप बढ जाता है, और ह्रदय की धडकन बढ जाती है। आपको तनाव होता है, और आप परेशानी का अनुभव करते हैं। आपके साथ घटित हुई पांच साल पुरानी घटना को आप याद करके आज भी दुःखी हो रहे हैं। इसका अर्थ है कि आप अपनी स्मरण शक्ति का दुरूपयोग कर रहे हैं। यदि आप स्मरण शक्ति का सदुपयोग कर रहे होते, तो आप इस बेकार घटना को अनावश्यक याद करने के स्थान पर कुछ सकारात्मक उपयोग करते। अब इससे आगे विचार कीजिए। आपने वो घटना याद कर ली। अब आप सोच रहे हैं, कि काश मैं उस समय, उस दुष्ट को सबक सिखा देता।. काश मैं उसे वहीं पर ठीक कर देता। उसके कंधे पर डंडे से प्रहार कर देता। या फिर मैं उसके अपमान का जबाब, इस तर्क से देता। मैं उसकी सार्वजनिक निंदा कर देता। इस तरह से अनावश्यक विचार करके आप अपनी कल्पना शक्ति का दुरूपयोग कर रहे हैं। इस दुरुपयोग के कारण, आप को और ज्यादा तनाव, और कष्ट का सामना करना पड रहा है। आपका दुःख, पछतावे के साथ मिश्रित होकर आपको और ज्यादा कष्ट देता है। आपको अस्थिर बनाता है, तथा आपको वह दुःख पहुंचाता है, जो वास्तव में अस्तित्व में ही नहीं है। कल्पनाशक्ति के दुरूपयोग और उससे उत्पन्न कष्ट का एक और उदाहरण देखते हैं। मान लीजिए आप एक जंगल में गए। वहां रात का अंधेरा है। आप पेड के पास से गुजर रहे हैं। तभी पेड पर लटक रही बेल, आपके कंधे से टकराती है। उसी समय एक मधुमक्खी आपके कंधे पर काट लेती है। आपको दर्द होता है। आप कल्पना करते हैं, कि वो बेल एक सांप है, और सांप नें आपको काट लिया। आप दर्द से कराहते हैं। आप पसीना पसीना हो जाते हैं। आपको सामने मृत्यु दिखाई देती है। आपके हाथ-पैर कांपने लगते हैं। आप गिर जाते हैं। कल्पना शक्ति के दुरूपयोग नें आपको भयानक कष्ट दिया। तभी अचानक कोई लालटेन लेकर आपके पास आता है, और आप लालटेन के प्रकाश में देखते हैं कि ये तो एक बेल है, और आपको किसी सांप ने नहीं, अपितु मधुमक्खी नें काटा है। यह देखकर आपको राहत मिलती है। उस लालटेन के प्रकाश ने आपकी कल्पनाशक्ति के प्रभाव को कम कर दिया और आपको राहत मिल गई। दैनिक जीवन में देखें तो आपके जीवनसाथी के द्वारा धोखे की कल्पना, आपके पडोसी द्वारा आपकी हत्या की योजना की कल्पना, आपके बॉस द्वारा आपको नौकरी से निकालने की कल्पना, आदि कुछ ऐसी कल्पनाए हैं, जो आप करते हैं, और अनावश्यक दुख पाते हैं। वहीं किसी के द्वारा अपमानित होने का स्मरण, किसी परिजन को खोने का स्मरण, व्यापार में घाटे का स्मरण, किसी गलती का स्मरण, कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो दर्शाते हैं कि आपने अपनी शक्तियों का दुरूपयोग किया और आप अनावश्यक दुःख प्राप्त कर रहे हैं। आप अपनी शक्तियां ही आपके विनाश का कारण बन रही हैं। 
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या इससे बचा जा सकता है। बिल्कुल  इससे बचा जा सकता है। आपको इसके लिए , अपनी शक्तियों का सदुपयोग करना सीखना होगा। जब आप कल्पना शक्ति, और स्मरण शक्ति का सदुपयोग करना सीख जाएंगे, तो आप अपने मस्तिष्क का अधिकतम उपयोग करना सीख जाएंगे। उस समय आप न केवल अपना अपितु औरों का भी जीवन बेहतर बना पाएंगे। कल्पनाशक्ति का सदुपयोग करके ही हमारे महान आविष्कारकों ने आविष्कारों की कल्पनाएं की, और उन्हे साकार किया। बेहतरीन भवन, यंत्र, महान पुस्तकें, कला, फिल्म, संगीत, हाईवे, पुल , प्रतिमाएं आदि सभी कल्पनाशक्ति के सदुपयोग से ही संभव हो सकी  हैं। आप प्रयास करें कि इन शक्तियों का सदुपयोग कर सकें। याद रखें कि
यदि आपकी ही शक्तियां आपके विनाश का कारण बनती हैं, तो संसार में सिवाय आपके मस्तिष्क के, जो इन शक्तियों शक्तियों को नियंत्रित कर सकता है, कोई आपको नहीं बचा सकता।

Saturday, May 16, 2020

समाज से डरी बच्ची

जब घऱ में कोई संतान पैदा होने वाली होती है तो माहौल खुशमय हो जाता है। सभी लोग प्रसन्न होते हैं। मंगल गीत गाए जाते हैं। होने वाले मां-बाप को बधाईयां मिलती हैं। लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि ये सारा माहौल अचानक थम सा जाए और दुःख व्यक्त किया जाने लगे। सोचने में लगता है कि कोई दुःखद घटना घटित हुई होगी, इसलिए ये सारा जश्न एकदम से थम गया। क्या आप सोच सकते हैं कि आज भी समाज में ऐसे अनेकों परिवार हैं, जहां किसी बालिका के जन्म लेने पर खुशी नहीं मनाई जाती। यकीनन आपका और मेरा परिवार ऐसा नही हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि हमारे आसपास ऐसे बहुत से परिवार/लोग हैं, जो किसी लडकी के जन्म से अत्यंत प्रसन्न नहीं होते हैं। इसके पीछे कईं कारण हो सकते हैं, कुछ पूर्वाग्रह भी। हम उन कारणों में नही जाना चाहते, और न ही यह अभी आवश्यक है। हम तो बस यह प्रश्न कर रहे हैं कि आखिर ऐसा समय कब आएगा, जब समाज में सभी लोग, संतान के जन्म का उत्सव मनाएंगे, न कि लडके अथवा लडकी के जन्म का। कुछ दशक पहले तकनीकि विकसित की गई , जिसके माध्यम से जन्म से पूर्व यह पता लगाया जा सकता था कि गर्भ में बालक है अथवा बालिका। मनमुताबिक बच्चों के जन्म को चयनित किया जाने लगा। यदि किसी को बालक की आशा है, और बालिका जन्म लेने वाली है, तो भ्रूण में ही उसकी हत्या कर दी जाती है। कष्ट की बात है कि इस हत्या के ऊपर कोई फांसी का भी प्रावधान नहीं था। यह केवल किसी जीव की हत्या ही नहीं थी, वरन् प्रकृति के नियमों से भयंकर छेडछाड थी। हालांकि सुखमय बात यह है कि सरकारों का इस ओर ध्यान गया और लिंग परीक्षण को अवैध घोषित कर, कडी कार्यवाही का प्रावधान किया गया। हालांकि अभी भी अनेको स्थानों पर ऐसे केस सामने आते हैं, जो जन्मपूर्व लिंग परीक्षण से जुडे होते हैं, लेकिन उन मामलों में अपराधियों पर उचित कार्यवाही भी होती है। 
लेकिन क्या यह सिर्फ कानून व्यवस्था संबंधी मामला है। नहीं ऐसा नहीं है। यह एक सामाजिक मामला है। एक ऐसा मामला जिसका खामियाजा  न केवल स्त्री, बल्कि पुरूष में भुगतते हैं। कुछ ऐसी धारणाएं समाज में पनप गई हैं, जो समाज में किसी बच्ची को, किसी लडकी को डराते हैं। न केवल बच्ची अथवा लडकी, अपितु उनके परिजन, उनके भाई-पिता को भी उनकी सुरक्षा की बडी चुनौती होती है। जन्म से लेकर, विद्यालय जाने तक, फिर युवावस्था में, फिर उसके विवाह होने तक। विवाह होने के बाद उसके पति तक। यह भय अकारण ही नहीं है। यह भय जन्म लेता है अनेकों अप्रिय घटनाओं की पुनरावृत्ति से। घटनाएं होती है अत्यंत घृणित । मारपीट, छेडछाड, दुष्कर्म, ऐसिड-अटैक, जबरदस्ती, दहेज संबंधी अपराध तो कुछ उदाहरण मात्र हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे अनेकों अपराध हैं, जिनके बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती। ये घटनाएं, और उन घटनाओं के समाचार ही कारण बनते हैं कि किसी बालिका के मन में समाज के प्रति भय का। समाज में ये घटनाऐं बच्चियों को डराती हैं। जब बच्ची घर से निकलती है, और चौराहे पर खडे लोगों की ऑंखे, एक्सरे का काम करते हुए उसे स्कैन करने का प्रयास करती हैं, उस समय बालिका के मन-मस्तिष्क पर जो भय का माहौल बनता है, जो मानसिक प्रताडना उसे झेलनी पडती है, उसे शब्दों में बता पाना अत्यंत कठिन है। जब बालिका को शिक्षा प्राप्त करने के लिए, स्कूल , कॉलेज अथवा दूसरे शहर में जाकर रहना पडता है, उस समय उसके बारे में जो बातें बनाईं जाती हैं, उससे बालिका और उसके परिजनों को जिस मानसिक कष्ट से गुजरना पडता है, वो अत्यंत भयानक होता है। जब किसी युवती पर एसिड अटैक किया जाता है, जिस के कारण उसकी मुंह, गला, मांस आदि जल, गल कर टपकते हैं, और उसकी खूबसूरत जिंदगी में जो भयानक समय आता है, वो कोई और कभी महसूस नहीं कर सकता। इन अपराधों को रोकना समाज का दायित्व है। इस डर को दूर करना भी समाज का ही दायित्व है। घरेलू हिंसाओं को, या अन्य अपराधों को केवल कानून का भय दिखाकर दूर नहीं किया जा सकता। इस कार्य को करने के लिए समाज में जागृति लानी होगी। इस कार्य को स्त्री और पुरूष दोनों मिलकर ही कर सकते हैं। सरकारों को प्रयास करना चाहिए कि समाज में जागरूकता आए, भय नहीं। 
जब सभी प्रयास करेंगे, तभी सभी विकसित होंगे।

Monday, May 11, 2020

TikTok Vs YouTube का झगडा... क्या मैं परवाह करूं?

पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर बडा हंगामा चल रहा है। सोशल मीडिया पर हंगामा कोई नई बात नहीं है, ये चलता रहता है। लेकिन इस बार ये एक अलग ही स्तर पर पहुंच गया। इस हंगामे को एक संज्ञा भी दे दी गई है TikTok Vs YouTube. इस पर बडे स्तर पर लोग बहस कर रहे हैं। हालांकि बहस वही लोग कर रहे हैं जो इन्ही से संबंधित हैं। लेकिन आम दर्शक इस जाल में फंसकर अपना समय और ऊर्जा बर्बाद कर रहे हैं। तो चलिए पहले ये समझने का प्रयास करते हैं कि ये आखिर चल क्या रहा है।
वैसे तो आप TikTok और YouTube से परिचित होंगे ही। लेकिन फिर भी एक बार और जान लेते हैं। टिकटॉक  एक ऐसा प्लेटफॉर्म अथवा मोबाईल एप्लीकेशन है जो लोगों को वीडियो पोस्ट करने का अवसर देती है। इस पर वीडियो की लंबाई एक मिनिट तक की हो सकती है। यह प्लेटफॉर्म पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चायना  की एक कंपनी द्वारा तैयार किया गया है। इस के माध्यम से बहुत से लोगों ने प्रसिद्धि पाई है और करियर में आगे बढे हैं।  यूट्यूब  भी एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जिस पर वीडियो पोस्ट की जाती है। यूट्यूब पर वीडियो कई घंटो तक लंबी हो सकती है। यह गूगल के द्वारा बनाया गया प्लेटफॉर्म है। इस प्लेटफॉर्म ने दुनिया को बहुत से कलाकारों से मिलवाया है और लाखों लोग इस प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे हैं। यहां पर मनोरंजन, समाचार, कला, पाककला, अध्ययन एवं अन्य विभिन्न क्षेत्रों के वीडियो उपलब्ध हैं। दोनो ही प्लेटफॉर्म का उपयोग लोग बिशेषतौर पर मनोरंजन के लिए करते हैं। रिलायंस जियो के बाजार में आने के बाद जब इंटरनेट सस्ता हुआ तो ऑनलाईन वीडियो प्लेटफॉर्म के उपयोग में अचानक वृद्धि हुई। जब दर्शक बढे तो कलाकार भी बढ गए।
अब थोडा विवाद पर नजर डालते हैं। लंबे समय से अनेकों यूट्यूबर , टिकटॉक वीडियो बनाने वालो पर 'रोस्ट वीडियो' बनाते आए हैं। रोस्ट वीडियो को कुछ इस तरह समझ सकते हैं कि रोस्ट वीडियो में किसी भी व्यक्ति या कंटेंट पर व्यंग्य किया जाता है। लेकिन यह व्यंग्य कठोर भाषा का उपयोग करके बनाया जाता है, जिसमें वीडियो बनाने वाला यथासंभव प्रयास करता है कि ज्यादा से ज्याता कडा व्यंग्य किया जाए। व्यंग्य तक तो ठीक है, लेकिन कई बार व्यंग्य अथवा रोस्टिंग के नाम पर गाली-गलौच का प्रयोग भी किया जाता है। आमतौर पर यूट्यूबर्स जो हैं, वो टिकटॉकर्स पर यह आरोप लगाते हैं कि टिकटॉक बनाए जाने वाले अधिकांश वीडियोज में न तो कला का स्तर होता है, न ही सभ्यता का। उनका मानना है कि टिकटॉक पर वीडियोज बनाने में मेहनत नहीं करनी पडती हैं। हांलांकि इस बात के बारे मे मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। आप लोग अपने स्तर पर यह जांच कर सकते हैं कि टिकटॉक बनाने में कितना प्रयास अथवा मेहनत करनी पडती है। पिछले दिनों लॉकडाउन के दौरान एक यूट्यबर ने घर पर रहते हुऐ कंटेंट बनाने का विचार किया। उसने टिकटॉकर्स का रोस्ट किया। बहुत से टिकटॉक वीडियोज को लेकर उनकी रोस्टिंग की। रोस्टिंग के दौरान उस यूट्यूबर ने कुछ स्थानों पर ऐसी शब्दावली का प्रयोग किया जिसे आमतौर पर सभ्य समाज में अच्छा नहीं माना जाता। जब यह वीडियो लोगों ने देखा तो विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं दीं। टिकटॉकर्स ने जब वीडियो देखा तो अनेक टिकटॉकर्स क्रोधित हो गए। एक टिकटॉकर ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया के तौर पर वीडियो बनाया और उसने सभी यूट्यूबर्स को बुरा भला कहा। जैसे ही इस टिकटॉकर की वीडियो सामने आई तो बहुत से यूट्यूबर्स ने इस वीडियो पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इस टिकटॉकर, तथा बाकी के टिकटॉकर्स के ऊपर रोस्टिंग वीडियो बनाया। जब तक यूट्यूब के बडे क्रिएटर इससे दूर थे, तब तक मामला इतना गर्म नहीं था। लेकिन फिर एक बडे यूट्यूबर  ने जब अपनी प्रतिक्रिया देते हुए वीडियो बनाया तो मामला अचानक गर्म हो गया। कुछ लोग इस यूट्यूबर के समर्थन में आ गए तो कईं लोग टिकटॉकर के समर्थन में आ गए। फिर टिकटॉकर्स और यूट्यूबर्स एक दूसरे के प्लेटफॉर्म पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए वीडियो बनाने लगे। वो स्वयं के प्लेटफॉर्म को अच्छा और दूसरे के प्लेटफॉर्म को खराब बताने लगे। इसी स्थिति को 'कंट्रोवर्सी' की संज्ञा मिल गई और मौके का लाभ उठाने के उद्देश्य से बहुत से लोग इस पर अपनी प्रतिक्रिया देने लगे। ट्विटर आदि पर ट्रेंड चलने लगे। 'मीम्स कम्यूनिटी (Memes Community) ' यानि वो लोग जो किसी प्रसिद्ध डायलॉग को लेकर चुटकुला आदि बनाते हैं, वो इसे अवसर के तौर पर देखने लगे और मीम्स आदि बनाने लगे। लोगों ने जमकर इनको शेयर किया। इसका परिणाम यह निकला कि दोनो प्लेटफॉर्म के क्रिएटर्स में बहसें होनें लगीं। लेकिन बिशेष बात यह है कि दोनो प्लेटफॉर्म को चलाने  वाली कंपनियों की ओर से कोई बिशेष प्रतिक्रिया नहीं आई।
अब बिषय यह है कि क्या यह महत्वपूर्ण बिषय है? लोग इस के बारें चर्चाएं कर रहे हैं  और अपनी वैचारिक ऊर्जा का दुरुपयोग कर रहें हैं। जहां तक बात है टिकटॉक कम्यूनिटी, यूट्यूब कम्यूनिटी अथवा मीम्स कम्यूनिटी की तो उन लोगों के द्वारा इस पर कंटेट बनाया जाना तो समझ में आता है, लेकिन जो लोग क्रिएटर नहीं है, वो अपना समय और ऊर्जा ऐसे विवाद में नष्ट कर रहे हैं जिसका अस्तित्व ही नहीं है। ये दोनों कम्पनियां विदेशी हैं। प्लेटफॉर्म विदेशी हैं। लेकिन इस पर जो झगडा हो रहा है, उनमें ज्यातातर भारतीय लोग ही परस्पर विवाद कर रहे हैं। परस्पर गाली गलौच कर रहे हैं। अब प्रश्न यह है कि किसी ऐसी चीज जो अनावश्यक है, उसके लिए अपने ही लोगों से झगडा कितना उचित है। क्या भारतीय दर्शकों को इस विवाद को महत्व देना चाहिए ? क्योंकि हर विवाद का कोई न कोई लाभ उठा रहा होता है। इस विवाद का लाभ सभी उठा रहे हैं। कुछ लाईक्स और व्यूज की बहती गंगा में हाथ धोने के लिए इसको बढावा दे रहे हैं तो कुछ केवल मनोरंजन के उद्देश्य से यह चाहते हैं कि ये विवाद समाप्त न हों। लेकिन सभी लोग यह भूल रहे हैं कि इस तरह के विवाद से आपस में जो कडवाहट पैदा होती है, वो किसी के लिए भी उचित नहीं होती। टिकटॉक और यूट्यूब के बडे क्रिएटर्स को आपस में बातचीत करके इस विवाद को समाप्त करना चाहिए। मेरा विचार है कि जितने भी ऑनलाईन प्लेटफॉर्म के बडे क्रिएटर्स हैं, उनको कोई ऐसा संगठन आदि बनाना चाहिए जिसमें ऐसे ही विवादो पर चर्चा हो। इनको सुलझाया जाए। इस संगठन में इन प्लेटफॉर्म के सकारात्मक उपयोग पर चर्चा हो सकेगी। प्लेटफॉर्म का दुरूपयोग कर रहे लोगों पर कार्यवाही के लिए भी यह संगठन कंपनियों को सुझाव दे सकेगा। अगर इस तरह का संगठन संभव नहीं हुआ तो किसी न किसी दिन, बहुत से देशों की सरकारों को आगे आकर इन पर लगाम कसनी होगी ताकि समाज में समरसता बनी रहे। लेकिन यदि यह काम सरकारों अथवा कानून के ्द्वारा किया गया तो किसी के लिए भी लाभदायक नहीं होगा। इस स्थिति से बचने के लिए बडे क्रिएटर्स को चाहिए कि वो स्वयं ही आगे बढकर प्रयास करें कि सभी क्रिएटर्स में समरसता बनी रहे। आखिर विवाद से कोई हल तो कभी नहीं निकलता है, बल्कि विवाद का हल ढूंढने में अधिक ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
वैसे आप इस बारे में क्या विचार रखते हैं, आप यहां बता सकते हैं। आप एक कदम आगे बढकर सोशल मीडिया के माध्यम से सभी तक यह संदेश पहुंचा सकते हैं कि कोई संगठन बनाकर मेलजोल बढाएं। आखिर हम लोग ही तो कहते आए है 'वसुधैव कुटुम्बकम्'।

Saturday, May 9, 2020

मातृ दिवस या फिर मात्र दिवस

आज मैंने सुबह जैसे ही स्मार्टफोन का डाटा ऑन किया तो मुझे सबसे पहले मातृ दिवस की पोस्ट्स दिखाई दीं। मैने व्हाट्सएप, ट्विवर और फेसबुक चेक किए तो हर जगह हर कोई इसी होड में लगा हुआ था कि मातृ दिवस पर कोई फोटो या चार लाईंस चिपका दे। मुझे देखकर आश्चर्य हुआ। आश्चर्य इस बात का नहीं कि आज मातृ दिवस है। आश्चर्य इस बात का कि मेरे वो परिचित जो हर समय अपने परिजनों से कडे शब्दों में बात करते रहते हैं, आज मातृ दिवस पर मातृभक्त के रूप में दिखाईं दे रहे थे। मुझे लगा कि शायद ये आज सुधर गए हैं। लेकिन सत्य क्या है, इस बात को तो हम और आप अंदर तक जानते हैं। आज मातृ दिवस है। बडी संख्या में लोग माताओं पर कविताएं, फोटो, लेख  आदि लिखेंगे। फिर कल तक सब गायब। सालभर जो लोग दूसरों की माता- बहनों को बात बात में याद करते हैं, उन्हे आज अपनी माताओं के साथ फोटो चिपकाते देख मुझे बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं होता। सोशल मीडिया पर 'कूल ड्यूड' या स्मार्ट दिखने के लिए यह सब करना आवश्यक हो गया है। लाईक्स, कमेंट्स की बहती गंगा में हाथ धोने के लिए इस तरह के स्टेटस, पोस्ट करना लोग अपना कर्तव्य समझते हैं। मातृ दिवस में कोई परेशानी नहीं है। न हीं होनी चाहिए। लेकिन मातृ दिवस को मात्र लाईक्स का दिवस बना देना, ये उचित नहीं है। सालभर सोशल मीडिया पर ब्रेकअप, मीम्स, शायरी, राजनैतिक ज्ञान बांटने वाले आज अचानक दिखावे के लिए सोशल मीडिया पर मातृ दिवस का प्रपंच करते हैं तो उसे देखकर खुशी बिल्कुल नहीं होती। स्वयं विचार करें कि आपने पिछले मातृ दिवस से इस मातृ दिवस पर कितनी गालियां दूसरों की माताओं के नाम पर दी हैं। कितना आप अपनी माता से झगडे हैं। कितना आपने उनको इग्नोर किया है। यदि आपका उत्तर 'शून्य' है तो आपको बधाई। आप मातृ दिवस मनाईए। मातृ दिवस मनाना कैसे शुरू हुआ इसके इतिहास में जाएंगे तो हम ज्यादा से ज्यादा सवा सौ साल पुराने समय में पहुंचेंगे। लेकिन हम यदि 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते..' के इतिहास में जाएंगे तो हजारों साल पुराने समय में पहुंच जाएंगे। मातृ मनाना उचित या अनुचित नहीं है, बल्कि मातृ दिवस के नाम पर दिखावा करना उचित या अनुचित हो सकता है। यदि आपके, आपकी माताजी के साथ संबंध अच्छे हैं तो आप भाग्यशाली हैं। यदि आपके और आपकी माताजी के संबंध अच्छे नहीं हैं तो आप उतने भाग्यशाली नहीं है। आप मातृ दिवस पर क्या करते हैं, यह आपके अधिकार क्षेत्र का प्रश्न है और मैं आपके अधिकार क्षेत्र में बिल्कुल भी अतिक्रमण नहीं कर सकता। लेकिन यदि आप सालभर न केवल अपनी माताजी, बल्कि दूसरों की माताजी का भी उतना ही आदर करते हैं, तो आप का मैं आदर करता हूं। आप बात बात में गालियों के लिए किसी की माताजी को माध्यम नहीं बनाते हैं तो निश्चित ही आप हीरो हैं, लेकिन यदि आप बात बात में गालियों में दूसरों की माताओं को याद करते हैं, और आज मातृ दिवस पर बडी बडी बातें कर रहे हैं तो क्षमा कीजिए, आप से बडा ढोंगी कोई नहीं हो सकता। आप प्रसन्नतापूर्व पोस्ट या स्टेटस चिपकाईए, लेकिन उसे जीवन में उतारिए भी। लॉकडाउन चल रहा है, आप उसका पालन करिए। न केवल अपने लिए बल्कि देश के लिए। आपको देशसेव का मौका मिला है, इसे व्यर्थ न जाने दीजिए। लोगों में लॉकडाउन के प्रति जागरूकता लाने का प्रयास कीजिए।
आप को मातृ दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।

Thursday, May 7, 2020

महामारी

महामारी

महामारी का काल है, या तेरी ही माया है।

अपनी प्यारी धरती पर, ये कैसी विपदा लाया है।।

कैसे आउं तेरे दर पर, तेरे सब पट बंद हैं।

महामारी के कष्ट काल में, मानव की बुद्धि कुंद है।।

मानव से रूठ गया है तू, या कलयुग विकट अब खिलता है।

तूने कहा था गीता में, तू सभी जगह पर मिलता है।।1।।

 

 

गुरू है तू, ज्ञान है तू।

मानव का अभिमान है तू।।

संपत्ति है तू, विपत्ति है तू।

कंद-मूल और पत्ती है तू।।

योग है तू, संयोग है तू।

बिछुडों का वियोग है तू।।

अपकार है तू, उपकार है तू।

जीवन का उपहार है तू।।2।।

 

प्रेत भी तू है, खेत भी तू है।

सागर की ये रेत भी तू है।।

प्रेम भी तू है, रार भी तू है।

प्रलय का हाहाकार भी तू है।।

ताप भी तू है, आंच भी तू है।

तांडव का महानाच भी तू है।।

सौम्य भी तू है, काल भी तू है।

कालों का महाकाल भी तू है।।3।।

 

तू महाचन्द्र, तू श्याम विवर।

तू ही इस पृथ्वी का दिनकर।।

तू महात्वरित, तू महावेग।

तू ही कण कण का संवेग।।

तू ही शंका, तू महानिवारण।

तू गुरूत्व के बल का कारण।।

तू महानियम, तू ही खंडन।

तू नाभिक का महाविखंडन।।4।।

 

तू जीत में, तू हार में।

तू प्रेमी के प्यार में।।

तू एक में, तू खंड में।

तू शासक के दंड में।।

तू स्नेह में, तू रोष में।

तू प्रजा के आक्रोष में।।

तू राष्ट्र में, तू ग्राम में।

तू वीरों के संग्राम में।।5।।

 

मै मानव था महामूर्ख,

मैं मद में होकर चलता था,

कीट-पतंगे-जीवों को,

निज पैरों तले कुचलता था।

सागर सोखे-धरती चीरी-

पर्वत तोड-हवा बिगाडी,

और मिले मुझे और मिले,

मेरा मन यही मचलता था।।6।।

 

जीवों पर अत्याचार किया,

जुल्म विकट बरपाया था,

जिन्दा भूने और उबाले,

जीवित ही उन्हे पकाया था।

खालें खींचीं-आंख निकाली-

सींगें तोडे-आंत निकाली,

वो चीख रहे-चीत्कार रहे,

बिन सोचे उन्हे सताया था।।7।।

 

नाभिक तोडे-विस्फोट किए।

मानस में अपने खोट लिए।।

नदियां रोकी-बांध लगाए।

गले तो उनके सोख दिये।।

बंदूक बनाई-तोप सजाईं।

और चलाए अणु हथियार।।

गर्दन काटी-रक्त बहाए।

और मिटाए घर परिवार।।8।।

 

शाप उन्ही का लगा मुझे है।

लगा उन्ही का है अभिशाप।।

लौट मुझी पर आएंगे।

मेरी करनी - मेरे पाप।।

तेरे पथ से मैं भटक गया।

तुझे चुनौती दे डाली।।

झूठी शक्ति के मद ने।

बुद्धि तो मेरी हर डाली।।9।।

 

मै महामूर्ख, मै महानीच।

मै महाधूर्त, मै हूं गलीच।।

मै महातुच्छ, मै महापापी।

छुरी छुपाकर माला जापी।।

पर शरण में तेरी आया हूं।

हे मालिक मेरे पाप हरो।।

तेरी ही तो संतान हूं मैं।

हे मालिक मुझको माफ करो।।10।।

 

करो दया हे दयावान।

करो कृपा हे कृपानिधान।।

मानव की तुम रक्षा करो।

रक्षा करो हे महाबलवान।।

मुझको तुम सद्बुद्धि दो।

अपने पथ का देदो ज्ञान।।

मानव की तुम रक्षा करो।

हे त्राहिमाम हे त्राहिमाम।।11।।

 

 


Monday, May 4, 2020

सख्त शिक्षक की भूमिका निभाता लॉकडाउन

जब से कोरोना को विश्व स्वास्थय संगठन ने महामारी घोषित किया है, तब से अनेकों देश लॉकडाउन में रहने को विवश हैं। एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में विश्व की लगभग आधी जनसंख्या लॉकडाउन में रह रही है। यह समय हमें बहुत कुछ सीखने का अवसर देता है। कोरोना से पहले तक हर युद्ध घऱ से बाहर निकलकर युद्धभूमि में लडा जाता था, लेकिन यह पहला अवसर है जब किसी समस्या को सुलझाने के लिए घर के अंदर रहने के लिए कहा जा रहा है। किसी ने कभी यह कल्पना भी नहीं कि होगी कि ऐसा समय भी आएगा जब सबकुछ थम जाएगा और दुनिया वीरान सी दिखने लगेगी।
कहते हैं कि हर समस्या अपने साथ कोई न कोई शिक्षा लेकर आती है। शायद कोरोना भी हमारे लिए कुछ सीख लेकर ही आया होगा। कोरोना ने मनुष्य को यह सोचने पर विवश किया है कि जीवन के जिन आभासी सुखों के पीछे हम मनुष्य भाग रहे हैं, वो कितना स्थाई है। हम मानव अपने विकास को लेकर अहंकार में रहते हैं। हम प्रकृति को चुनौती देने का प्रयास करते हैं लेकिन जब प्रकृति अपनी प्रतिक्रिया देती है तो हम असहाय हो जाते हैं। मानव का मूल स्वभाव है किसी भी संकट से झूझना और अंततः उससे उबर जाना। आशा है कि मानव अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करते हुए इस संकट से भी निपट लेगा। पिछले कुछ दशकों में संचार और यातायात के क्षेत्र में हमने क्रांति ला दी है। संचार के साधनों के माध्यम से दुनिया को एक छोटे शहर की तरह तो बना दिया है लेकिन इसके साथ आने वाले खतरों का आंकलन करने में हम विफल रहे। महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक 'हिंद स्वराज' में लिखा था कि रेलगाडी दुष्टता फैलाती है। आज के दौर में रेलगाडी का साथ हवाईजहाज आदि ने दिया है और कोरोना उस दुष्टता के रुप में फैल गया है। हालांकि आज के दौर में जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए यातायात के साधनों का प्रयोग आवश्यक है, लेकिन इससे उत्पन्न खतरों से लडने की तैयारी भी आवश्यक है।
जब हम इस महामारी से निपटने में सक्षम हो जाऐंगे तो हमारे लिए आवश्यक होगा कि हम ऐसी व्यवस्था करें कि यदि भविष्य में ऐसी कोई भी समस्या आने पर देश में सभी प्रकार की सीमाओं को सरलता से बंद की जा सके। अर्थात ऐसा तंत्र विकसित करना होगा कि यदि कोई संकट आता है तो किसी गांव, जिले, शहर अथवा राज्य की सीमाओं को पूरी तरह बंद किया जा सके। ऐसा करने से किसी भी प्रकार की महामारी को किसी क्षेत्र में ही रोका जा सकेगा। हमने देखा था कि कोरोना संकट में अनेको लोगों ने सकारात्मक योगदान दिया, लेकिन बडी संख्या में लोग ऐसे भी थे जिनके कारण स्थिति खराब हुई। ये लोग सरकारों के लिए चुनौती बन गए थे। हमें हमारे लोगों को इस तरह प्रशिक्षित करना होगा कि ऐसे किसी भी संकट में वो न केवल जिम्मेदाराना व्यवहार करें बल्कि संकट से निपटने में सरकार का सहयोग भी करें। जब हर व्यक्ति जिम्मेदार नागरिक की तरह व्यवहार करेगा तो हम किसी भी समस्या को आसानी से पराजित कर सकें। समस्या हमारे सामने यह आई थी कि लॉकडाउन लगाने पर अर्थव्यवस्था के साथ साथ शिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाएं भी ठप हो गईं थी। हमें  इस तरह से अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित करना होगा कि हम इस तरह के संकट में भी अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखें तथा हर व्यक्ति को अत्यावश्यक वस्तुएं यथा भोजन आदि की पूर्ति करवा सकें।
देखने में आया था कि कुछ लोगों ने ऐसे मौके पर एकदम गैरजिम्मेदाराना हरकतें की थीं। कुछ लोगों ने अपने सामूहिक कार्यक्रमों को बिल्कुल भी रद्द नहीं किया था। कुछ दुकानदारों नें मौके का गलत फायदा उठाते हुए कीमतें बढा दी थीं। कईं स्थानों पर वहां के स्थानीय निवासियों नें चिकित्साकर्मियों एवं सुरक्षाकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार किया था। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए न केवल दोषियों को कडी सजा का प्रावधान होना चाहिए बल्कि समाज में जागरूकता भी फैलाई जानी चाहिए ताकी लोग ऐसा करने से बचे।
इस बार लॉकडाउन के कारण तथा कुछ अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रमों के चलते कच्चे तेल की कीमतें असाधारण रूप से गिर गईं। इसके अतिरिक्त बहुत सी अंतरराष्ट्रीय कम्पनियों ने उत्पादन इकाईयों को एक देश से दूसरे देश में स्थानांनतरित किया था। ये दोनो ही भारत के लिए बडे अवसर थे। हम इन अवसरों का लाभ नहीं उठा पाए, बल्कि कुछ दूसरे देशों ने इनका लाभ उठाया।
इस महामारी में कुछ देश ऐसे थे जो एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति कर रहे थे, वहीं भारत ऐसा देश था जिसने आरोप प्रत्यारोप से दूर रहते हुए न केवल भारतवासी बल्कि हर मानवमात्र के भले के लिए पुरूषार्थ की पराकाष्ठा की। विश्व को भारत से शिक्षा लेनी चाहिए।
कहने को तो ये महामारी हमें बहुत कुछ सिखा सकती है, लेकिन ये हम लोगों पर निर्भर करता है कि हम इससे कुछ सीखते हैं या पहले से भी ज्यादा गैरजिम्मेदार बनते हैं।

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