'वो' वैसे तो किसी को बहुत ज्यादा पसंद नहीं था क्योंकि वो सबको बुद्धू सा दिखाई पडता था। 'वो' चुपचाप सा रहता था, उसे दुनियादारी की बहुत ज्यादा समझ थी नहीं। परिवार में सबकुछ ठीक चल रहा था। उसके पिता साउथ के शहर में मार्बल का काम करते थे। साल में दो बार 15-15 दिन के लिए घर आया करते थे। परिवार का ठीक ठाक गुजारा हो जाता था।
एक दिन अचानक पता चला कि मार्बल का काम करते हुए कटर से उसके पिता का पैर कट गया और वो चलने लायक नहीं रहे। डॉक्टर ने बोल दिया कि हो सकता है कि कभी चल भी न पाएं, हो सकता है कि कुछ महीनों में ठीक हो जाए। लेकिन सब किस्मत के भरोसे। 4-5 महीने तक तो परिवार जैसे-तैसे चलता रहा क्योंकि पैसे बचे हुए थे। लेकिन धीरे - धीरे पैसे खत्म होने लगे और परिवार की स्थिति बिगडती गई। 'वो' कुछ काम करना चाहता था लेकिन वो इतना चतुर नहीं था कि कोई भी काम कर ले। कुछ दिन उसने अपने पिता के दोस्त के साथ मार्बल का काम करना चाहा लेकिन 10-12 दिन में बीमार हो गया और वापस लौटना पडा। वापस लौटकर उसने एक ढाबे पर वेटर का काम करना शुरू किया। इसमें उसको खाने का पैसा बच जाता और ढाबे के मालिक ने उसे रात में वहीं सोने की अनुमति दे दी। इससे ढाबे वाले को चौकीदार के पैसे खर्च नहीं करने पडते। 'वो' बडी मेहनत से काम करता और ग्राहकों से भी थोडी बहुत 'टिप' लेकर पैसा बचाता और घर भेजता जिससे घर का खर्चा जैसे तैसे चल सके।
उसने साथ-साथ अपनी पढाई जारी रखी। पहले बीए किया और फिर बीएड। पढने में बहुत ज्यादा रुचि नहीं रही थी लेकिन उसको सरकार स्कॉलरशिप मिलती, इसलिए उसने डिग्री ले ली।
फिर उसको पता चला कि राजस्थान में वरिष्ठ अध्यापक के लिए आवेदन लिए जा रहे हैं। उसने आवेदन कर दिया। ढाबे के मालिक से एक महीने का वेतन एडवांस में लिया और काम के साथ-साथ पढाई प्रारंभ कर दी। ढाबे का मालिक और ग्राहक भी उसकी मेहनत की दाद देते थे।
नवंबर का महीना आ गया। उसने ढाबे वाले से कहा कि मैं अच्छी तरह तैयारी करना चाहता हूं, मुझे मदद कर दीजिए। ढाबे वाले ने कहा कि मैं ज्यादा कुछ मदद नहीं कर सकता लेकिन इतना वादा कर सकता हूं कि तुम परीक्षा तक छुट्टी ले लो और उसके बाद तुम जब भी वापस आओगे, मैं तु्म्हे वापस काम पर रख लूंगा।
'वो' घर लौट आया। उसने पढाई शुरू कर दी। उसको देखकर उसके दादा, जो 75-80 वर्ष के बीच के रहे होंगे, ने पडौसी से कुछ पैसे उधार ले लिए ताकि घर का खर्चा चल सके और 'वो' दो महीने अच्छे से तैयारी कर सके।
22 दिसंबर की बात थी, उसके दादाजी को अचानक से सीने में दर्द हुआ और वो चल बसे। घर में कोहराम मच गया। 'वो' सकपका गया। सारे रिश्तेदार आए और दादाजी का अंतिम संस्कार हुआ। 24 दिसंबर को तिए का कार्यक्रम होना था। लेकिन 24 दिसंबर के दिन ही उसकी परीक्षा भी थी। सुबह 9 बजे, जीके का पेपर। वो भी दूसरे शहर में। 'वो' परेशान था क्योंकि उसके दादाजी के अंतिम संस्कार के सारे कार्यक्रम उसको करने थे क्योंकि उसके पिता तो चल फिर नहीं सकते थे। 23 दिसंबर को कुछ रीति रिवाज पूरे किए। शाम होते - होते वो रोने लगा। उसके पिता ने कहा कि तू चिंता न कर। तू सुबह होते ही शहर जा और परीक्षा देकर आ। दोपहर को वहां से आने के बाद आगे का कार्यक्रम कर लेना और फिर 26 को संस्कृत की परीक्षा देने चले जाना। उस परीक्षा को देने के बाद आगे का काम देखेंगे।
'वो' 23 दिसंबर के दिन सुबह 3 बजे जाग गया। नित्य क्रियाओं से निवृत्त हुआ और पडोसी से कहा कि उसकी बाईक की जरूरत होगा, परीक्षा देने जाना है। पडौसी ने भी परिस्थिति को भांपते हुए कहा कि मुझे तेरी चिंता है, तुझे अकेला नहीं जाने दूंगा। पडोसी ने कहा कि मैं खुद तुझे परीक्षा दिलवाकर लाउंगा। 'वो' और उसका पडोसी सुबह साढे पांच बजे परीक्षा के लिए निकल गए। आखिर 8 बजे सेंटर पर पहुंचना था। भयंकर सर्दी और कोहरा था। ज्यादा कुछ दिख नहीं रहा था। इसलिए लगातार हॉर्न बजाकर, लाईट जलाकर और जोर जोर से भजन गाते हुए धीरे धीरे बाईक पर चलने लगे। भजन इसलिए गा रहे थे ताकि अगर सामने से कोई आ जाए तो उसे आवाज से पता चल जाए। कोहरे में कुछ दिखाई तो दे रहा नहीं था। साढे 7 बजे के आसपास उनकी सर्दी से बुरी हालत हो गई। सडक के किनारे चायवाले के पास रुके। वहां उससे माचिस लेकर पास में आग जलाई और 5-7 मिनट तापने लगे। 5-7 मिनिट्स बाद उनको उठना पडा क्योंकि सेंटर पर भी पहुंचना था। सर्दी इतनी थी कि उठने का मन नहीं कर रहा था। हालात खराब थी लेकिन विकट परिस्थिति में ही वीरों की पहचान होती है, ये सोचकर वो आगे बढ चले। दादाजी की मौत, भयंकर सर्दी, पारिवारिक स्थिति इन सबको मन में दबाए हुए 'वो' पडोसी के प्रति आभार व्यक्त करने लगा कि वो इतनी सर्दी में उसके साथ परीक्षा दिलवाने जा रहा है। पडोसी ने कहा कि थोडा कष्ट सह लेंगे लेकिन अगर 'वो' परीक्षा में सफल हो जाता है तो पूरे परिवार के दुख दूर हो जाएंगे।
समय पर वो परीक्षा केन्द्र पहुंच गए। ठीक साढे 8 पर पहुंचे। पडोसी ने कहा कि वो बाहर ही इंतजार करेगा। 'वो' अंदर पहुंच गया। उसके दिल की धडकन बढ गई। दादाजी को याद करते करते आंखें भी गीली थीं। खैर.....वीरों की पहचान तो विकट परिस्थितियों में ही होती है। वो परीक्षा कक्ष में अंदर गया। वीक्षक ने उसकी जांच की। उसके फटे हुए स्वेटर को चेक किया। उसके बाल चेक किए। उसके जूते-मोजे चेक किए। क्या पता नकल करने का साधन छुपा लाया हो। उसे अच्छी तरह चेक करने के बाद अंदर बिठाया। 8-55 पर उसे पेपर मिला। उसने पेपर की पॉलीथीन को हटाया और पेपर बाहर निकाला। पेपर में से ओएमआर शीट बाहर निकाली। ओएमआर पर रोल नंबर डाला। 3-4 बार चेक किया कि गलत नंबर नही डल जाए।
फिर उसने भगवान को याद किया, फिर दादाजी को याद किया। और प्रश्न हल करने लगा। शुरू के 3 प्रश्न देखे। तीनों के उत्तर उसे पता थे। वो खुश हो गया। अब लगा कि उसकी और उसके परिवार की सारी समस्याओं का अंत हो जाएगा। चौथा प्रश्न देखने ही वाला था कि वीक्षक ने सभी को टोका। वीक्षक बोला कि अभी अभी ऑर्डर आया है। सभी पेपर हल करना रोक दो और ओएमआर शीट को वापस पेपर के अंदर रख कर पेपर को पॉलीथीन में रख दो।
विद्यार्थियों में हलचल मच गई। आखिर हुआ क्या। अचानक ऐसा आदेश क्यों। जब वीक्षक से पूछा तो वीक्षक ने कहा कि उन्हे कुछ नहीं मालूम। बस जो कहा जा रहा है वो करो। सभी ने अपने पेपर पैक कर दिए। वीक्षक ने सारे पेपर वापस ले लिए। 9 बजकर 15 मिनिट हो गई। विद्यार्थी चिंतित थे कि हो क्या रहा है। किसी के पास कोई जबाव नहीं ।
9 बजकर 18 मिनिट पर वीक्षक नें बताया कि आपका ये पेपर स्थगित किया जाता है। बाकी के पेपर यथावत रहेंगे।
'वो' हतप्रत था। उसके पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। परीक्षा केन्द्र पर ज्यादा शोर मचा तो अधिकारी का आदेश आया 'धक्को देर बारे काड' अर्थात इन अभ्यर्थियों को धक्का देकर सेंटर से बाहर निकालो।
खैर बाहर निकलने के पश्चात पता चला कि किसी बस में कुछ अभ्यर्थी पकडे गए हैं जिन्होने पेपर लीक किया है।
'वो' रोने लगा। पारिवारिक स्थिति, पिता की गंभीर हालत, दादाजी की मौत, भयंकर सर्दी में परीक्षा केन्द्र पर आना, कुछ भी गलत न होते हुए भी वीक्षकों द्वारा चोरों की तरह चेक किए जाना.....
खैर 'वो' कुछ नहीं बोला.... पडोसी भी कुछ नहीं बोला... दोने वापस चल दिए।... आखिर घर जाकर दादाजी के तिए का काम भी तो करना था....
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(डिस्क्लेमर - ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है। इसके वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है। बाकी आप सब पाठकगण समझदार हैं...)
-सौम्य
(SAUMY MITTAL
RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)
जिन लोगों ने विपरीत हालातों में तैयारी की हैं उनका दुख सिर्फ वहीं जानते हैं
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख है दिल को छू लेने वाला है इस दर्द को केवल एक विद्यार्थी ही महसूस कर सकता है
ReplyDeleteजिससे गुजरती है वो समझता है ।
ReplyDeleteAccha likha h
ReplyDeleteरुलाओगे क्या मित्तल जी
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