Tuesday, November 8, 2022

अपनी जाति का नेता

 व्यंग्य

चुनावी बसंत था। नेताओं की मंडी लगी हुई थी। एक से एक नेता उपलब्ध थे। अच्छा नेता, भ्रष्टाचारी नेता, बाहुबली नेता, युवा नेता, वरिष्ठ नेता, मदिरापान करने कराने वाला नेता, जेल का अनुभवी नेता, गरीब नेता, सताया हुआ नेता, सताने वाला नेता और भी अलग अलग गुणवत्ता वाले अलग अलग ब्रांड के नेता। 

एक जाति के वोटर ने 'अपनी जाति' के नेता को देखा। उस जाति के नेता ने 'अपनी जाति' के वोटर को देखा। फिर दोनों ने एक-दूसरे को देखा। फिर नेता 'अपनी जाति' के वोटर को देख मुस्काया। वोटर 'अपनी जाति' के नेता पर रीझ गया। फिर नेता ने 'अपनी जाति' के वोटर के कान के कुछ फुसफुसाया और वोटर ने 'अपनी जाति' के नेता के सामने सिर हिलाया।

चुनाव हुआ तो वोटर ने 'अपनी जाति' के नेता के चुनाव चिह्न वाले बटन को दबाया। आखिर 'अपनी जाति' के काम न आए तो किस काम के। 'अपनी जाति" का नेता आगे बढ़ना चाहिए न।

चुनाव संपन्न हुआ। नेता खुश था कि 'अपनी जाति' के पूरे वोट मिल गए। वोटर खुश था कि 'अपनी जाति' का नेता जीत गया।

फिर सरकार बनी और वोटर 'अपनी जाति' के नेता से मिलने गया, अपने अधूरे अरमान पूरे करने, अपने वायदे याद दिलाने, कुछ 'अपनी जाति' के नेता की सुनने, कुछ अपनी सुनाने। आखिर 'अपनी जाति' का नेता है, काम तो आएगा ही।

कार्यालय पहुंचा तो पता चला कि चुनाव जीतने के बाद नेता ने अपनी जाति 'बदल' दी। अब वो 'अपनी जाति' के नेता से बदलकर 'मंत्री जाति' में शामिल हो गया और ऐरे-गैर वोटर को मुंह नहीं लगाता। हां, अगर पर्याप्त सिक्के उछाले जाएं तो फिर वो गले लगा लेगा। आखिर चुनाव में हुआ खर्चा भी तो वोटर से ही वसूलना है न। और फिर जब वसूलना ही है तो अपनी - पराई जाति का भेद किया तो फिर मंत्री कैसा!

'अपनी जाति' का नेता 'अपनी जाति' के वोटर के काम नहीं आया।

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