शमशीर है पर धार नहीं है।
कमाने हैं पर ढाल नहीं है।।
तीर अचानक इक ऐसा आया
सांसें तो हैं पर जान नहीं है।।
तख्त मिला पर पाया हिला है।
हुक्म है पर दिल में गिला है।।
दरबारी दस्तरखान बहुतेरे
जंग में वो खड़ा अकेला है।।
पानी में गया तो मगर मिला है।
रेत पर चला अजगर मिला है।।
कब्रिस्तान में जब जाकर बैठा
एक मुर्दा भी रोता मिला है।।
ठंडी छाछ से वो से जला है।
आस्तीन में भी सांप पला है।।
अंदाजन वो फिर ऐसे जिया है
कि पानी को धो धोकर पिया है।।
-सौम्य
(SAUMY MITTAL
RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)
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