पिछले कुछ समय से सौर ऊर्जा को प्रचुर मात्रा में उपयोग में लिया जा रहा है। Rajasthan Patrika की एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में कुल 3200 मेगावाट क्षमता के सौलर उपकरण लगे हुए हैं। राजस्थान की कुल बिजली की आवश्यकता का लगभग एक तिहाई भाग, सौर ऊर्जा से प्राप्त होता है। देश में सौर ऊर्जा उत्पादन में राजस्थान का तीसरा स्थान है और तेलंगाना प्रथम स्थान पर है। यह न्यूनतम व्यय और श्रम के साथ अधिकतम ऊर्जा उत्पादन का सरल उपाय प्रतीत होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सौर ऊर्जा के समुचित उपयोग से हम देश की बिजली की अधिकांश मांग को पूरा कर सकते हैं। इस का एक कारण यह भी है कि भारत में और बिशेषकर राजस्थान जैसे राज्यों में बर्षभर धूप पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है। भारत वर्तमान में 28 GW बिजली, सौर ऊर्जा से उत्पादित कर रहा है और बर्ष 2022 तक इसे 100 GW तक ले जाने का लक्ष्य है। सोलर पैनल को हम अधिकांशत सिंगापुर, चाइना, फिलीपींस जैसे देशों ले मंगवाते हैं और यहां असेम्बल करते हैं। भारत में सोलर पैनल का उत्पादन बहुत सीमित है। भारत चाइना और घाना जैसे देश, सौर ऊर्जा का सर्वाधिक उपयोग करते हैं।
ऊर्जा का उत्पादन तो अच्छी बात है, विश्व के विकास के लिए बिजली एक अत्यंत आवश्यक पहलू है लेकिन जब हम बात सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन की करते हैं, तो हम इसके सोलर कचरा (Solar Waste) के निस्तारण को भूल जाते हैं। अभी कुछ समय पहले Bridge To India नाम की संस्था नें एक रिपोर्ट जारी की जिसके अनुसार सोलर पैनल ऊर्जा संबंधी समस्याओं का एक अच्छा समाधान है। लेकिन इसका कचरा इतनी अधिक मात्रा में उत्पादित होने वाला है कि 2050 के बाद सोलर कचरे कों फेंकने के लिए जगह नहीं बचेगी। बर्ष 2030 तक सोलर कचरे की मात्रा 2 लाख टन होगी जो 2050 में बढकर 18 लाख टन तक पहुंच जाएगी। International Renewable Energy Agency की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक दुनिया में 780 लाख टन यानि 78000000000 किलों सोलर कचरा एकत्रित हो जाएगा
सामान्यतः सोलर पैनल का जीवनकाल तीस बर्ष का होता है। दस से बारह साल में इसकी क्षमता दस प्रतिशत तक कम हो जाती है। बीस सालों में यह पच्चीस प्रतिशत तक क्षमता खो देती है। तीस से अधिक सालों बाद यह उपयोग के लायक नहीं रह जाती और इसे फेंकना पडता है। सोलर पैनल का 80 प्रतिशत हिस्सा ग्लास/
जब सोलर कचरे से निपटने की तैयारियों की बात आती है तो भारत इसमें बहुत पीछे है। दुनिया के विकसित देशों ने इसके बारे में कुछ तैयारी कर दी है। चाइना ने इसके बारे में स्टडी और रिसर्च शुरू कर दी है। कईं बार कहा जाता है कि हम इतना जल्दी क्यों सोच रहे हैं। 2050 की बात अभी से क्यों कर रहे हैं। अभी तक भारत के ईलेक्ट्रोनिक कचरे से संबंधित नियमों में सोलर कचरे के बारे में स्पष्ट उल्लेख नहीं है। हमने अभी तक इसके बारे में ठोस गाईडलाईन तक तैयार नहीं की है। हमारे पास टेलिविजन-कम्प्य
(तस्वीर गूगल से ली गई है)
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