Friday, September 22, 2017

सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें

सोशल मीडिया पर फर्जी समाचारों के मामले बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में एक सोशल साइट 'फेसबुक' ने अपने ग्राहकों को जागरूक करने के लिए एक लेख साझा किया है जो उनको न्यूज फीड में दिखाई देता है। यहां आपके साथ उस लेख को शेयर कर रहा हूँ। आइए पढ़ते हैं लेख को उन्ही के शब्दों में-

हम Facebook पर फ़र्ज़ी ख़बरों को फैलने से रोकना चाहते हैं. इसके संबंध में हम क्या कर रहे हैं, इसके बारे में और जानें. जबकि हम ऐसी ख़बरों को फैलने से रोकना सीमित करने पर काम कर रहे हैं, हम आपको इन्हें पहचानने की कुछ युक्तियाँ बताना चाहेंगे:
शीर्षकों पर सहज ही विश्वास न करें. फ़र्ज़ी ख़बरों के शीर्षक अक्सर लुभावने होते हैं बड़े-बड़े अक्षरों में, विस्मय बोधक बिंदुओं के साथ. अगर इन शीर्षकों के दावे विश्वास करने लायक नहीं लग रहे हों, तो संभव है वे विश्वास करने के लायक नहीं ही हों.
URL को ग़ौर से देखें. झूठा या मिलता-जुलता URL, फ़र्ज़ी ख़बरों का चेतावनी लक्षण होता है. बहुत सी फ़र्ज़ी ख़बरों वाली साइटें, URL में छोटे-मोटे बदलावों के साथ, विश्वसनीय ख़बरों के स्रोतों की नक़ल करती हैं. आप इन विश्वसनीय साइटों पर जा कर URL की तुलना करके इन्हें जाँच सकते हैं.
स्रोत की जाँच-पड़ताल करें. सुनिश्चित करें कि ख़बरें किसी ऐसे स्रोत से हों जिन पर आप विश्वास करते हैं और सटीकता के लिए जिनकी ख्याति हो. अगर ख़बर किसी अनजान संस्था से आ रही हो, तो और अधिक जानने के लिए उनके “परिचय" खंड में जाकर मालूम करें.
अजीब सी दिखने वाली फ़ॉर्मेटिंग से सजग रहें. फ़र्ज़ी ख़बर वाली बहुत सी साइटों पर वर्तनी की ग़लतियाँ और अजीब से लेआउट देखने को मिलते हैं. अगर आपको ऐसे लक्षण दिखाई दें, तो सावधानी से पढ़ें.
फ़ोटो पर विचार करें. फ़र्ज़ी ख़बर वाली साइटों पर ऐसे चित्र या वीडियो होते हैं, जिनसे छेड़-छाड़ की गई होती है. कई बार फ़ोटो तो असली होती है, मगर उन्हें ग़लत प्रसंग में दिखाया जाता है. आप उस फ़ोटो या चित्र के लिए खोज करके यह सत्यापित कर सकते हैं कि वे आई कहाँ से हैं.
तारीख़ों की जाँच करें. फ़र्ज़ी ख़बरों में तारीख़ों का ऐसा क्रम हो सकता है जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता हो या फिर उनमें घटनाओं की तारीख़ों को बदला गया हो.
प्रमाण की जाँच करें. लेखक के स्रोतों की जाँच करें ताकि यह कन्फ़र्म किया जा सके कि वे सटीक हैं. प्रमाणों का न होना या ऐसे विशेषज्ञों पर भरोसा करना, जिनका नाम ही न दिया गया हो, ये फ़र्ज़ी ख़बर होने के लक्षण हैं.
अन्य रिपोर्ट देखें. अगर इस ख़बर की रिपोर्टिंग ख़बरों के किसी और स्रोत द्वारा नहीं की जा रही है, तो ये भी दर्शाता है कि ख़बर फ़र्ज़ी हो सकती है. अगर इस ख़बर की रिपोर्टिंग ख़बरों के किसी और स्रोतों द्वारा की जा रही है, जिन पर आपको भरोसा है, तो ख़बर असली होने की सम्भावना ज़्यादा होगी.
ये ख़बर है या मज़ाक़? कई बार फ़र्ज़ी ख़बरों और मज़ाक़ या व्यंग्य में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है. इसकी जाँच करें कि कहीं ख़बरों का यह स्रोत पैरोडी के लिए तो नहीं जाना जाता है, और ख़बरों के वर्णन और टोन से ऐसा तो नहीं लगता कि वे सिर्फ़ हँसी-मज़ाक़ के लिए हैं.
कुछ ख़बरें जानबूझ कर फ़र्ज़ी बनाई जाती हैं. जिन ख़बरों को आप पढ़ें, उनके बारे में समीक्षात्मक रूप से सोचें, और सिर्फ़ वही ख़बरें साझा करें जिनके सच्चाई के बारे में आपको यक़ीन हो.
वाकई फेसबुक के द्वारा यह एक अच्छा लेख है और अफवाहों से बचने  के लिए इस लेख को अपने परिचितों के साथ अवश्य शेयर करें

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