Tuesday, December 27, 2022

'वो' , उसके दादाजी और सर्दी में पेपर लीक


'वो' वैसे तो किसी को बहुत ज्यादा पसंद नहीं था क्योंकि वो सबको बुद्धू सा दिखाई पडता था। 'वो' चुपचाप सा रहता था, उसे दुनियादारी की बहुत ज्यादा समझ थी नहीं। परिवार में सबकुछ ठीक चल रहा था। उसके पिता साउथ के शहर में मार्बल का काम करते थे। साल में दो बार 15-15 दिन के लिए घर आया करते थे। परिवार का ठीक ठाक गुजारा हो जाता था।

 एक दिन अचानक पता चला कि मार्बल का काम करते हुए कटर से उसके पिता का पैर कट गया और वो चलने लायक नहीं रहे। डॉक्टर ने बोल दिया कि हो सकता है कि कभी चल भी न पाएं,  हो सकता है कि कुछ महीनों में ठीक हो जाए। लेकिन सब किस्मत के भरोसे। 4-5 महीने तक तो परिवार जैसे-तैसे चलता रहा क्योंकि पैसे बचे हुए थे। लेकिन धीरे - धीरे पैसे खत्म होने लगे और परिवार की स्थिति बिगडती गई। 'वो' कुछ काम करना चाहता था लेकिन वो इतना चतुर नहीं था कि कोई भी काम कर ले। कुछ दिन उसने अपने पिता के दोस्त के साथ मार्बल का काम करना चाहा लेकिन 10-12 दिन में बीमार हो गया और वापस लौटना पडा। वापस लौटकर उसने एक ढाबे पर वेटर का काम करना शुरू किया। इसमें उसको खाने का पैसा बच जाता और ढाबे के मालिक ने उसे रात में वहीं सोने की अनुमति दे दी। इससे ढाबे वाले को चौकीदार के पैसे खर्च नहीं करने पडते। 'वो' बडी मेहनत से काम करता और ग्राहकों से भी थोडी बहुत 'टिप' लेकर पैसा बचाता और घर भेजता जिससे घर का खर्चा जैसे तैसे चल सके।

उसने साथ-साथ अपनी पढाई जारी रखी। पहले बीए किया और फिर बीएड। पढने में बहुत ज्यादा रुचि नहीं रही थी लेकिन उसको सरकार स्कॉलरशिप मिलती, इसलिए उसने डिग्री ले ली। 

फिर उसको पता चला कि राजस्थान में वरिष्ठ अध्यापक के लिए आवेदन लिए जा रहे हैं। उसने आवेदन कर दिया। ढाबे के मालिक से एक महीने का वेतन एडवांस में लिया और काम के साथ-साथ पढाई प्रारंभ कर दी। ढाबे का मालिक और ग्राहक भी उसकी मेहनत की दाद देते थे।

नवंबर का महीना आ गया। उसने ढाबे वाले से कहा कि मैं अच्छी तरह तैयारी करना चाहता हूं, मुझे मदद कर दीजिए। ढाबे वाले ने कहा कि मैं ज्यादा कुछ मदद नहीं कर सकता  लेकिन इतना वादा कर सकता हूं कि तुम परीक्षा तक छुट्टी ले लो और उसके बाद तुम जब भी वापस आओगे, मैं तु्म्हे वापस काम पर रख लूंगा।

'वो' घर लौट आया। उसने पढाई शुरू कर दी। उसको देखकर उसके दादा, जो 75-80 वर्ष के बीच के रहे होंगे, ने पडौसी से कुछ पैसे उधार ले लिए ताकि घर का खर्चा चल सके और 'वो' दो महीने अच्छे से तैयारी कर सके। 

22 दिसंबर की बात थी, उसके दादाजी को अचानक से सीने में दर्द हुआ और वो चल बसे। घर में कोहराम मच गया। 'वो' सकपका गया। सारे रिश्तेदार आए और दादाजी का अंतिम संस्कार हुआ। 24 दिसंबर को तिए का कार्यक्रम होना था। लेकिन 24 दिसंबर के दिन ही उसकी परीक्षा भी थी। सुबह 9 बजे, जीके का पेपर। वो भी दूसरे शहर में। 'वो' परेशान था क्योंकि उसके दादाजी के अंतिम संस्कार के सारे कार्यक्रम उसको करने थे क्योंकि उसके पिता तो चल फिर नहीं सकते थे। 23 दिसंबर को कुछ रीति रिवाज पूरे किए। शाम होते - होते वो रोने लगा। उसके पिता ने कहा कि तू चिंता न कर। तू सुबह होते ही शहर जा और परीक्षा देकर आ। दोपहर को वहां से आने के बाद आगे का कार्यक्रम कर लेना और फिर 26 को संस्कृत की परीक्षा देने चले जाना। उस परीक्षा को देने के बाद आगे का काम देखेंगे। 

'वो' 23 दिसंबर के दिन सुबह 3 बजे जाग गया। नित्य क्रियाओं से निवृत्त हुआ और पडोसी से कहा कि उसकी बाईक की जरूरत होगा, परीक्षा देने जाना है। पडौसी ने भी परिस्थिति को भांपते हुए कहा कि मुझे तेरी चिंता है, तुझे अकेला नहीं जाने दूंगा। पडोसी ने कहा कि मैं खुद तुझे परीक्षा दिलवाकर लाउंगा। 'वो' और उसका पडोसी सुबह साढे पांच बजे परीक्षा के लिए निकल गए। आखिर 8 बजे सेंटर पर पहुंचना था। भयंकर सर्दी और कोहरा था। ज्यादा कुछ दिख नहीं रहा था। इसलिए लगातार हॉर्न बजाकर, लाईट जलाकर और जोर जोर से भजन गाते हुए धीरे धीरे बाईक पर चलने लगे। भजन इसलिए गा रहे थे ताकि अगर सामने से कोई आ जाए तो उसे आवाज से पता चल जाए। कोहरे में कुछ दिखाई तो दे रहा नहीं था। साढे 7 बजे के आसपास उनकी सर्दी से बुरी हालत हो गई। सडक के किनारे चायवाले के पास रुके। वहां उससे माचिस लेकर पास में आग जलाई और 5-7 मिनट तापने लगे। 5-7 मिनिट्स बाद उनको उठना पडा क्योंकि सेंटर पर भी पहुंचना था। सर्दी इतनी थी कि उठने का मन नहीं कर रहा था। हालात खराब थी लेकिन विकट परिस्थिति में ही वीरों की पहचान होती है, ये सोचकर वो आगे बढ चले। दादाजी की मौत, भयंकर सर्दी, पारिवारिक स्थिति इन सबको मन में दबाए हुए 'वो' पडोसी के प्रति आभार व्यक्त करने लगा कि वो इतनी सर्दी में उसके साथ परीक्षा दिलवाने जा रहा है। पडोसी ने कहा कि थोडा कष्ट सह लेंगे लेकिन  अगर 'वो' परीक्षा में सफल हो जाता है तो पूरे परिवार के दुख दूर हो जाएंगे।

समय पर वो परीक्षा केन्द्र पहुंच गए। ठीक साढे 8 पर पहुंचे। पडोसी ने कहा कि वो बाहर ही इंतजार करेगा। 'वो' अंदर पहुंच गया। उसके दिल की धडकन बढ गई। दादाजी को याद करते करते आंखें भी गीली थीं। खैर.....वीरों की पहचान तो विकट परिस्थितियों में ही होती है। वो परीक्षा कक्ष में अंदर गया। वीक्षक ने उसकी जांच की। उसके फटे हुए स्वेटर को चेक किया। उसके बाल चेक किए। उसके जूते-मोजे चेक किए। क्या पता नकल करने का साधन छुपा लाया हो। उसे अच्छी तरह चेक करने के बाद अंदर बिठाया। 8-55 पर उसे पेपर मिला। उसने पेपर की पॉलीथीन को हटाया और पेपर बाहर निकाला। पेपर में से ओएमआर शीट बाहर निकाली। ओएमआर पर रोल नंबर डाला। 3-4 बार चेक किया कि गलत नंबर नही डल जाए। 

फिर उसने भगवान को याद किया, फिर दादाजी को याद किया। और प्रश्न हल करने लगा। शुरू के 3 प्रश्न देखे। तीनों के उत्तर उसे पता थे। वो खुश हो गया। अब लगा कि उसकी और उसके परिवार की सारी समस्याओं का अंत हो जाएगा। चौथा प्रश्न देखने ही वाला था कि वीक्षक ने सभी को टोका। वीक्षक बोला कि अभी अभी ऑर्डर आया है। सभी पेपर हल करना रोक दो और ओएमआर शीट को वापस पेपर के अंदर रख कर पेपर को पॉलीथीन में रख दो।

विद्यार्थियों में हलचल मच गई। आखिर हुआ क्या। अचानक ऐसा आदेश क्यों। जब वीक्षक से पूछा तो वीक्षक ने कहा कि उन्हे कुछ नहीं मालूम। बस जो कहा जा रहा है वो करो। सभी ने अपने पेपर पैक कर दिए। वीक्षक ने सारे पेपर वापस ले लिए। 9 बजकर 15 मिनिट हो गई। विद्यार्थी चिंतित थे  कि हो क्या रहा है। किसी के पास कोई जबाव नहीं । 

9 बजकर 18 मिनिट पर वीक्षक नें बताया कि आपका ये पेपर स्थगित किया जाता  है। बाकी के पेपर यथावत रहेंगे।

'वो' हतप्रत था। उसके पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। परीक्षा केन्द्र पर ज्यादा शोर मचा तो अधिकारी का आदेश आया 'धक्को देर बारे काड' अर्थात इन अभ्यर्थियों को धक्का देकर सेंटर से बाहर निकालो।

खैर बाहर निकलने के पश्चात पता चला कि किसी बस में कुछ अभ्यर्थी पकडे गए हैं जिन्होने पेपर लीक किया है।

'वो' रोने लगा। पारिवारिक स्थिति, पिता की गंभीर हालत, दादाजी की मौत, भयंकर सर्दी में परीक्षा केन्द्र पर आना, कुछ भी गलत न होते हुए भी वीक्षकों द्वारा चोरों की तरह चेक किए जाना.....

खैर 'वो' कुछ नहीं बोला.... पडोसी भी कुछ नहीं बोला... दोने वापस चल दिए।... आखिर घर जाकर दादाजी के तिए का काम भी तो करना था....

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(डिस्क्लेमर -  ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है। इसके वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है। बाकी आप सब पाठकगण समझदार हैं...)



-सौम्य

(SAUMY MITTAL

RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)

Tuesday, November 8, 2022

अपनी जाति का नेता

 व्यंग्य

चुनावी बसंत था। नेताओं की मंडी लगी हुई थी। एक से एक नेता उपलब्ध थे। अच्छा नेता, भ्रष्टाचारी नेता, बाहुबली नेता, युवा नेता, वरिष्ठ नेता, मदिरापान करने कराने वाला नेता, जेल का अनुभवी नेता, गरीब नेता, सताया हुआ नेता, सताने वाला नेता और भी अलग अलग गुणवत्ता वाले अलग अलग ब्रांड के नेता। 

एक जाति के वोटर ने 'अपनी जाति' के नेता को देखा। उस जाति के नेता ने 'अपनी जाति' के वोटर को देखा। फिर दोनों ने एक-दूसरे को देखा। फिर नेता 'अपनी जाति' के वोटर को देख मुस्काया। वोटर 'अपनी जाति' के नेता पर रीझ गया। फिर नेता ने 'अपनी जाति' के वोटर के कान के कुछ फुसफुसाया और वोटर ने 'अपनी जाति' के नेता के सामने सिर हिलाया।

चुनाव हुआ तो वोटर ने 'अपनी जाति' के नेता के चुनाव चिह्न वाले बटन को दबाया। आखिर 'अपनी जाति' के काम न आए तो किस काम के। 'अपनी जाति" का नेता आगे बढ़ना चाहिए न।

चुनाव संपन्न हुआ। नेता खुश था कि 'अपनी जाति' के पूरे वोट मिल गए। वोटर खुश था कि 'अपनी जाति' का नेता जीत गया।

फिर सरकार बनी और वोटर 'अपनी जाति' के नेता से मिलने गया, अपने अधूरे अरमान पूरे करने, अपने वायदे याद दिलाने, कुछ 'अपनी जाति' के नेता की सुनने, कुछ अपनी सुनाने। आखिर 'अपनी जाति' का नेता है, काम तो आएगा ही।

कार्यालय पहुंचा तो पता चला कि चुनाव जीतने के बाद नेता ने अपनी जाति 'बदल' दी। अब वो 'अपनी जाति' के नेता से बदलकर 'मंत्री जाति' में शामिल हो गया और ऐरे-गैर वोटर को मुंह नहीं लगाता। हां, अगर पर्याप्त सिक्के उछाले जाएं तो फिर वो गले लगा लेगा। आखिर चुनाव में हुआ खर्चा भी तो वोटर से ही वसूलना है न। और फिर जब वसूलना ही है तो अपनी - पराई जाति का भेद किया तो फिर मंत्री कैसा!

'अपनी जाति' का नेता 'अपनी जाति' के वोटर के काम नहीं आया।



-सौम्य

(SAUMY MITTAL

RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)

Saturday, January 29, 2022

पानी को धो धोकर पिया है।

 शमशीर है पर धार नहीं है।

कमाने हैं पर ढाल नहीं है।।

तीर अचानक इक ऐसा आया

सांसें तो हैं पर जान नहीं है।।


तख्त मिला पर पाया हिला है।

हुक्म है पर दिल में गिला है।।

दरबारी दस्तरखान बहुतेरे

जंग में वो खड़ा अकेला है।।


पानी में गया तो मगर मिला है।

रेत पर चला  अजगर मिला है।।

कब्रिस्तान में जब जाकर बैठा

एक मुर्दा भी  रोता मिला है।।


ठंडी छाछ से वो से जला है।

आस्तीन में भी सांप पला है।।

अंदाजन वो फिर ऐसे जिया है

कि पानी को धो धोकर पिया है।।



-सौम्य

(SAUMY MITTAL

RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)

कावेरी इंजन - भारत का स्वदेशी फाईटर जेट इंजन

 सारांश-  किसी भी देश की सुरक्षा के लिए वर्तमान में फाईटर जेट अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस लेख में चर्चा की गई है कि फाईटर जेट के लिए इंजन का क्...