गुनगुना कर गीत सारा
सार समझते जा रहा।
सर ताज से सुर ताल का
भेद समझते जा रहा।।
समझ सका ये गीत सारा
चाल समझते जा रहा।
चाल अपनी चल न सका
पर चाल चलते जा रहा।।
अधीर हुआ गंभीर हुआ
शमशीर धरते जा रहा।
धर दिया ढाल धरा पर
अब धीर धरते जा रहा।।
ये धरा अधीर हो चली
ये पथिक कहां जा रहा।
मंजिल अभी भी तय नहीं
बस चाल चलते जा रहा।।
-सौम्य
(SAUMY MITTAL
RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)
अदभुत कविता संग्रह
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