Tuesday, June 11, 2024

चंदा और छुटकू

 छुटकू अकेला था और

खेल रहा था आंगन में
एक दम अकेला था वो
और कोई दोस्त भी नहीं था।
खेलते खेलते रोने लगा
काश मेरा भी कोई दोस्त होता
जो मेरे साथ खेलता
और मैं बातें करता
अपने छोटे से मन की
छोटी छोटी पर प्यारी बातें।।

छुटकू रोने लगा और
बोलने लगा कोई तो होता मेरा दोस्त
क्या कोई नहीं है जो बन जाए दोस्त
और मेरे साथ खेले और बातें करे।

कौन सुनता छुटकू की बातें,
और कौन उसका दोस्त बनता।
पर दूर आसमान में कोई था
कोई चमक रहा था अंधेरे में
शायद वो चंदा ही था,
हां वो ही था, वो देख रहा था छुटकू को।
और उतर आया धीरे धीरे आंगन में।

आंगन में आया और छुटकू से बोला
मैं दोस्त हूं तुम्हारा,
तुम मेरे साथ खेलना और
बातें करना अपने मन की
खूब सारी बातें करना
और मैं भी ढेर सारी बातें करूंगा।।

छुटकू खुश हो गया,
अब उसके पास दोस्त था।
दोस्त ऐसा जो किसी का पास नहीं
चंदा खुद दोस्त बन गया।
उस चंदा को सब दूर से देखते थे
पर वो रोज छुटकू से मिलने आता
मिलने आता और ढेर सारी बातें करता।

फिर अंधेरी रातें आई।
अमावस आने वाली थी शायद।
चंदा ने कहा अब वो जाएगा
जाएगा और शायद नहीं आ पाएगा।
छुटकू ने रोते हुए कहा तुम मत जाओ।
तुम गए तो मेरा दोस्त कोई नहीं।
चंदा ने कहा जाना पड़ेगा।
चंदा होने का फर्ज निभाना पड़ेगा।
शायद अब मैं खेलने और बातें करने नहीं आ पाऊंगा।
पर तुम्हे मैं दूर आसमान से देखूंगा
और तुम्हे भी मैं दिखाई दूंगा दूर से।
फिर हम याद करेंगे वो दिन
जब हम रोज आंगन में खेला करते थे
और ढेर सारी बातें किया करते थे।

फिर चंदा आसमान में चला गया।
शायद वो छुटकू से मिलने नहीं आएगा
और न ही बातें कर पाएगा।
चंदा को तो चंदा बने रहना है,
इसे पूरी दुनिया को रोशन करना है।
पर छुटकू अब उदास नहीं है,
उसे पता है कि वो अकेला था
जिसका दोस्त चंदा था।
और वो हमेशा उसका दोस्त रहेगा।
सामने न सही
पर यादों में हमेशा रहेगा।।


-सौम्य

(SAUMY MITTAL

RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)

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