Saturday, October 12, 2024

तो शायद...

 राहतों के समंदर में,

अश्क घुल जाता तो शायद...।

ख्वाबों में थी जन्नत मेरी,

गर आंख लग जाती तो शायद...।


सहर, कारवां, घर, गली,

दरिया भी अपने थे सभी,

हर शै थी पास मेरे,

पर वो ठहराव न मिला तो शायद...।


चार कंधों से पहले,

एक मिल जाता तो शायद...!

-सौम्य

(SAUMY MITTAL

RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)

Friday, September 20, 2024

‘वो’ की खून लगी रोटी

 

‘वो’ की खून लगी रोटी

‘वो’ बाबला था। शायद विक्षिप्त सा। एक लाठी लेकर चलता था। बाल बडे हुए थे। महीनों से नहाया नहीं था। कहीं और होता तो बच्चे उसे पागल-पागल कहकर चिढाते, पर पता नहीं इस बस्ती में कोई उसे परेशान नहीं करता था। लोग कहते थे कि वो पढा लिखा इंसान था पर किस्मत नें उसे इस हालत में ला दिया।कभी कोई खाने को देता तो वो ले लेता, पर अपने से कभी मांगता नहीं था। चुपचाप या तो सडक किनारे बैठा रहता या फिर कभी कभी गायब हो जाता। उसके कोई रिश्तेदार भी नहीं थे कोई।

एक जमाने में जब ‘वो’ एक नवयुवक ही था। अपने गुजारे के लिए अलग-अलग काम करता था। कभी किसी शादी-पार्टी में केटरिंग वालों के साथ काम कर लिया तो कभी किसी रैली के लिए पोस्टर चिपकाने का काम कर लिया। उसने बीए कर लिया था। लेकिन बीए से पेट नहीं भरता ना। इसलिए काम तो करना पडेगा ही। त्योहारों के टाईम पर हलवाईयों के यहां काम बहुत बढ जाता है। ऐसे मे हलवाई के यहां पर उसे काम मिल जाता था। काम तो अलग-अलग कर लेता था लेकिन उसका सपना था कि कोई एक जगह काम मिल जाए तो वो सैटल हो जाए। उन्ही दिनों सरकार ने गरीबों के लिए मकान बनवाने की योजना बनाई थी। उसने भी फॉर्म भर दिया। किस्मत अच्छी थी कि लॉटरी में उसका नाम आ गया। एक खाली बस्ती में उसको भी मकान मिल गया। मकान क्या था, केवल एक कमरा और एक शौचालय। लेकिन आसपास कोई रोजगार नहीं था तो उसने कहीं पर एक कमरा किराए पर ले लिया।  सस्ता सा था, बस सिर छुपाने लायक। कमरा भी नहीं था, बस ईंट पत्थर की कमजोर सी दीवारें और ऊपर टिन लगी हुई थी। वहीं थोडी दूरी पर एक ‘बडे आदमी’ का बंगला था। उसके पास दो-तीन कारें थीं। ‘वो’ चाहता था कि किसी तरह इन सेठजी के यहां ड्राईवर की नौकरी मिल जाए तो उसकी लाईफ भी सेटल हो जाएगी। एक रोजगार रहेगा तो अपना घर भी बसा लेगा। ‘बडे आदमी’ तो बडे होते हैं, उनकी आदतें भी बडी होती हैं। ‘बडे आदमी’ रोजाना सुबह घूमने जाता था। शायद मॉर्निंग वॉक कहते हैं उसे। ‘वो’ रोजाना ‘बडे आदमी’ को जाते हुए देखता और उसे नमस्ते कहता। बहुत दिनों तक यही चलता रहा तो ‘बडे आदमी’ ने उस से पूछा कि कौन हो, क्या काम करते हो। ‘वो’ बोला कि साब मैं यहां हर तरह का काम करता हूं। पर आपके यहां काम चाहिए। क्या आप मुझे ड्राईवर का काम दे सकते हैं। मैं आपके लिए बाकी काम भी कर दूंगा। मुझे बगीचे की देखभाल और साफ-सफाई का काम भी आता है। ‘बडे आदमी’ ने कुछ सोचा और फिर कहा कि देखते हैं, कुछ होगा तो मैं बता दूंगा। ‘वो’ खुश हो गया कि चलो यहां पर कुछ काम मिल जाएगा। एक दिन रात को वो किसी पार्टी में से काम करके आ रहा था तब उसने देखा कि दो-तीन लोग झगडा कर रहे हैं और एक बुजुर्ग से कुछ छीन कर जा रहे हैं। ‘वो’ डर गया लेकिन उसने हिम्मत करके कुछ चिल्लाया तो उनमें से एक ने इसके सिर पर डंडा दे मारा। ‘वो’ गिर गया और बेहोश हो गया। कुछ दिनों के कोमा के बाद सरकारी बेड पर उसकी आंख खुली। दो दिन के बाद उसे वहां से छुट्टी दे दी। वो वापस कमरे पर आ गया। लेकिन उसका शरीर अब साथ नहीं दे पाता था। वो विक्षिप्त सा हो गया था। कोई काम नहीं कर पाता था।  उसके जमा पैसे खाने पीने में खर्च हो गये। किराया नहीं दे पाया तो मालिक ने निकाल दिया। वो वापस अपने सरकार से मिले छोटे से घर में रहने लग गया।  अब तक इस बस्ती में आसपास और भी  लोग रहने लग गए थे। ये यहीं रहने लग गया। थोडा बहुत काम अगर कर पाता तो कर लेता जिस से खाना मिल जाए। वक्त गुजरता गया और उसका दिमाग कमजोर होता गया। धीरे धीरे वो विक्षिप्त सा बन गया। लोग उसको देखते आए थे इसलिए उसे भगाते नहीं थे बल्कि दया दिखाते थे। कोई न कोई कुछ खाने को दे देता कभी कभी। पास में एक ढावा खुला था। ढावे वाले को लगता था कि जब ढावे वाला ‘वो’ को खाना दे देता है तो उसकी दुआ लगती है। कभी कभी कोई न कोई खाने को दे ही देता। अगर कोई उसे पैसे देता तो वो पैसे के लिए मना कर देता। बस कोई खाना दे दे तो रख लेता था।

फिर कोरोना आ गया। इस ढावे बंद हो गए। लोगों ने एक दूसरे से मिलना बंद कर दिया। ‘वो’ बस घूमता या घऱ में रहता। उसे खाना मिलना भी बंद सा हो गया। कमजोर हो गया था वो। उसके रिश्तेदार भी नहीं थे कोई।

भूखा घूम रहा था एक दिन। रोटी नहीं मिली थी कहीं से। आस पास वालों को ये ख्याल नही आ पाया कि इसको तीन चार दिन से खाना नहीं मिला होगा। शाम का वक्त था, रात होने वाली थी, थोडा अंधेरा सा था। थोडी दूर पर एक चबूतरा था जहां पर लोग जानवरों के लिए कभी कभी पुराना चावल या बासी रोटी डाल देते थे। ‘वो’ वहां गया और वहां पडी हुई एक रोटी उठा लाया। थोडी गंदी थी रोटी, पर कोई बात नहीं। उसने प्याउ के नल से रोटी को धो लिया और अपने घर की तरफ गया ताकि वहां खा सके। तभी वहां से ‘बडे आदमी’ गाडी से निकला। ‘बडे आदमी’ को देखकर इसने नमस्ते किया। इसे लगा कि शायद आज ‘बडे आदमी’ इसे काम देने आया है। लेकिन ‘बडे आदमी’ को लगा कि कोई भिखारी है जो पैसे मांगेगा। ‘बडे आदमी’ ने गाडी तेजी से निकाली। इसको हल्की सी टक्कर लगी। ‘वो’ गिर गया। थोडा सा खून निकल आया सिर से। रोटी पर लग गया था हल्का सा खून। ये अपने घर में चला गया। रोटी को कोने में रख दिया और अपनी बनियान को फाड कर सिर पर बांध लिया ताकि खून रूक जाए। पर खून रूका नहीं। रुकता भी कैसे, शरीर में जान ही नहीं थी। वो सडक की तरफ आया, और सडक पर पहुंचने से पहले गिर गया। खून तो रूक गया पर साथ में सांस भी रुक गई। मर गया था शायद। सोच रहा होगा कि मर ही  जाउँ। भूखा आदमी मर भी नहीं सकता। पर वो बेशर्म था, भूखा होकर भी मर गया। सवेरे किसी ने देखा कि ‘वो’ तो मर गया। अच्छा आदमी था कहकर लोगो नें सोचा कि इसको मरने के बाद तो इज्जत से विदा कर दें। सबनें चंदा इक्ट्ठा किया और किसी को बुलाकर इसका अंतिम संस्कार करवा दिया।  अब ‘वो’ का घर खाली था। चार दिन हो गए। लोग कहते हैं कि उसमें ‘वो’ का भूत रहता है।

सात दिन बाद दो तीन लोग आए। ‘वो’ का घऱ देखने लगे। किसी ने पूछा कि आप लोग कौन हो, तो उन्होने बताया कि ये लोग ‘वो’ के रिश्तेदार हैं, और ‘वो’ के मरने के बाद ये घर रिश्तेदारों का हुआ। रिश्तेदार ‘वो’ के घर को बेच देंगे किसी खरीददार को। खरीददार को ‘वो’ का घर दिखाया जाने लगा। लोग अंदर गए तो बदबू थी। वहां कोने में रोटी पडी थी। खून लगी सूखी रोटी। खरीददार ने पूछा कि ये सब क्या है।

रिश्तेदार ने बोला कि आप चिंता मत करो, मैं इसे साफ करवा दूंगा। आप तो प्लॉट की डील फाईनल करो।

खरीददार ने पूछा – वो तुम्हारा रिश्तेदार ही था क्या। वो ऐसे हालात में रहता था। तुमने मदद क्यों नहीं कि?

रिश्तेदार ने कहा – कौन मुंह लगता उस बाबले के।  ‘वो’ पागल था ससुरा। खुद का खून लगाकर रोटी खाता था...

... सब हंसने लगे। प्लॉट की डील फाईनल हो गई।...




-सौम्य

(SAUMY MITTAL

RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)

Monday, June 17, 2024

गंभीर

 गुनगुना कर गीत सारा

सार समझते जा रहा।

सर ताज से सुर ताल का

भेद समझते जा रहा।।


समझ सका ये गीत सारा

चाल समझते जा रहा।

चाल अपनी चल न सका

पर चाल चलते जा रहा।।


अधीर हुआ गंभीर हुआ

शमशीर धरते जा रहा।

धर दिया ढाल धरा पर

अब धीर धरते जा रहा।।


ये धरा अधीर हो चली

ये पथिक कहां जा रहा।

मंजिल अभी भी तय नहीं

बस चाल चलते जा रहा।।



-सौम्य

(SAUMY MITTAL

RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)

Tuesday, June 11, 2024

चंदा और छुटकू

 छुटकू अकेला था और

खेल रहा था आंगन में
एक दम अकेला था वो
और कोई दोस्त भी नहीं था।
खेलते खेलते रोने लगा
काश मेरा भी कोई दोस्त होता
जो मेरे साथ खेलता
और मैं बातें करता
अपने छोटे से मन की
छोटी छोटी पर प्यारी बातें।।

छुटकू रोने लगा और
बोलने लगा कोई तो होता मेरा दोस्त
क्या कोई नहीं है जो बन जाए दोस्त
और मेरे साथ खेले और बातें करे।

कौन सुनता छुटकू की बातें,
और कौन उसका दोस्त बनता।
पर दूर आसमान में कोई था
कोई चमक रहा था अंधेरे में
शायद वो चंदा ही था,
हां वो ही था, वो देख रहा था छुटकू को।
और उतर आया धीरे धीरे आंगन में।

आंगन में आया और छुटकू से बोला
मैं दोस्त हूं तुम्हारा,
तुम मेरे साथ खेलना और
बातें करना अपने मन की
खूब सारी बातें करना
और मैं भी ढेर सारी बातें करूंगा।।

छुटकू खुश हो गया,
अब उसके पास दोस्त था।
दोस्त ऐसा जो किसी का पास नहीं
चंदा खुद दोस्त बन गया।
उस चंदा को सब दूर से देखते थे
पर वो रोज छुटकू से मिलने आता
मिलने आता और ढेर सारी बातें करता।

फिर अंधेरी रातें आई।
अमावस आने वाली थी शायद।
चंदा ने कहा अब वो जाएगा
जाएगा और शायद नहीं आ पाएगा।
छुटकू ने रोते हुए कहा तुम मत जाओ।
तुम गए तो मेरा दोस्त कोई नहीं।
चंदा ने कहा जाना पड़ेगा।
चंदा होने का फर्ज निभाना पड़ेगा।
शायद अब मैं खेलने और बातें करने नहीं आ पाऊंगा।
पर तुम्हे मैं दूर आसमान से देखूंगा
और तुम्हे भी मैं दिखाई दूंगा दूर से।
फिर हम याद करेंगे वो दिन
जब हम रोज आंगन में खेला करते थे
और ढेर सारी बातें किया करते थे।

फिर चंदा आसमान में चला गया।
शायद वो छुटकू से मिलने नहीं आएगा
और न ही बातें कर पाएगा।
चंदा को तो चंदा बने रहना है,
इसे पूरी दुनिया को रोशन करना है।
पर छुटकू अब उदास नहीं है,
उसे पता है कि वो अकेला था
जिसका दोस्त चंदा था।
और वो हमेशा उसका दोस्त रहेगा।
सामने न सही
पर यादों में हमेशा रहेगा।।


-सौम्य

(SAUMY MITTAL

RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)

Thursday, May 30, 2024

गज गर्जन

 गज गर्जन


धूम्र विकट, मौत निकट
और भयंकर शिर-पीडा।
दाह जलन, कटि विचलन
सिंह शिकारित मृगक्रीडा।।


तडित दंड सा खण्ड-खण्ड
और विखण्डित मन सारा।
लहू ठण्ड व वेग प्रचण्ड
कालनेमी सम हत्याारा।।

कर नाम अमर, गदा पकड
संचय करके बल सारा।
कर गज गर्जन व रिपु मर्दन
चिता शयन कर भव पारा।।


भाव-

भयानक नजारे में  जब धुआं ही धुआं उठता जा रहा है और मृत्यु निकट प्रतीत हो रही है। सिर में भयंकर पीडा हो रही है। पूरे शरीर में ऐसे जलन हो रही है जैसे भयंकर जला दिया गया हो और अस्थियां व कमर अपने स्थान से हिल गई हैं। जिस प्रकार सिंह के द्वारा शिकार किया गया मृग मृत्यु के निकट वाली क्रिया करता हैं, वैसे ही शरीर तडप रहा है। 
जिस प्रकार तडित अर्थात बिजली का प्रहार होने पर सब कुछ खण्ड-खण्ड हो जाता है, उसी तरह सारी भावनाएं और आंतरिक शक्तियां खण्डित हो गई हैं। रक्त एक दम ठण्डा हो गया है और तेज वेग से शरीर से बहता जा रहा है। सामने कालनेमी के समान वेश बदलकर हमला करने वाला हत्यारा खडा है।
अब कुछ भी शेष नहीं है। मृत्यु निकट है, पर एक अवसर बाकी है। अपना नाम अमर करके, शस्त्र धारण करके और अपने अंदर वाला सारा बल एकत्र कर ले, हाथी के समान गर्जना कर सामने खडे कालनेमि जैसे हत्यारे पर पूरी शक्ति से प्रहार कर। उसके बाद मृत्यु को अपना कर, चिता पर लेट कर इस संसार से गर्व के साथ वीरों के समान विदा ले।


-सौम्य

(SAUMY MITTAL

RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)

Wednesday, April 17, 2024

सर्फ पुदीना के सपने में ‘लोकतंत्र रक्षक’

 सुबह जागकर मैं जब फोन पर मॉर्निंग वॉक कर रहा था तभी भागता हुआ मेरा मित्र ‘सर्फ पुदीना’ आ पहुंचा। वैसे तो सर्फ पुदीना का असली नाम सर्फ पुदीना नहीं है लेकिन हम उसे सर्फ पुदीना ही कहते हैं। अब सर्फ पुदीना क्यों कहते हैं इस के बारे में कभी और बात की जाएगी। 

हां तो सर्फ पुदीना आ पहुंचा। मैने पूछा “कैसे सुबह सुबह हांफ रहे हो सर्फ पुदीना। क्या हो गया? ”

सर्फ पुदीना - “यार मित्तल जी। कुछ नहीं। मैने आज एक सपना देखा। सपना देखने के बाद मुझ से रहा नहीं गया और मैं तुरंत भागकर आ गया सपना बताने के लिए।”

मैं - “ आज से करीब डेढ सौ साल पहले ग्राहम बेल अंकल ने एक आविष्कार किया था। उसका ही यूज कर लेते”

सर्फ पुदीना - “ क्या मतलब ”

मैं - “ अरे भाई फोन। फोन कर लेते”

सर्फ पुदीना - “ नहीं यार मित्तल जी। फोन पर बात करने में मजा नहीं आता। मुझे लगा कि आमने सामने ही बताउं ”

मैं - “ हां तो बताओ क्या हुआ ”

फिर सर्फ पुदीना के चेहरे पर मिश्रित भाव आ गया। उसने सपना बताना शुरू किया।  उसने बताया- मैं सो रहा था। फिर सपना आया। सपने में मैने देखा कि एक आदमी जा रहा है। वो थोडा थका परेशान सा लग रहा था। मैने पूछा कि भाई कौन हो? तो उस आदमी ने बताया कि उसका नाम लोकतंत्र है।

सर्फ पुदीना - “ अरे तुम मिल गए। तुम ठीक तो हो। सुना है कि तुम खतरे में आ गये हो। ”

लोकतंत्र - “ नहीं। मैं खतरे में नहीं हूं। बस थोडा सा परेशान हूं।”

सर्फ पुदीना - “ तुम्हारी उम्र कितनी है? 75 साल?”

लोकतंत्र - “ नहीं। मेरी उम्र तो हजारों साल की है। पर मेरी वर्तमान स्वरूप की उम्र 75 साल है”

सर्फ पुदीना - “ लेकिन मैने सुना है कि तुम खतरे में हो। आजकल कुछ लोग कह रहे हैं कि तुम खतरे में हो। मैं तुम्हे बचाना चाहता हूं। बताओं क्य करूं तुम्हारी हिफाजत के लिए। तुम कमजोर हो गये हो क्या”

इतना सुनते ही लोकतंत्र नाम का वो आदमी जमीन पर बैठ गया। देखते ही देखते वो पेड बन गया। एक विशाल पेड। उसकी जडें बहुत गहरी थीं। जमीन में काफी गहरी। एक छायांदार और फलदार पेड। देखनें में लग रहा था कि हवा का एक छोटा सा झोंका आया था तो उसके कुछ फल जमीन पर गिर गए थे और बेचारे कुछ भूखे पक्षी उस फल को खाकर अपना पेट भर रहे थे। फिर वो पेड बोलने लगा।

लोकतंत्र - “ देखो। मेरी जडें कितनी गहरी हैं। क्या तुमको लगता है कि कोई मेरी जडों को हिला सकता है। इतना आसान नहीं है मेरी जडों को हिलाना। मेरे फल को गरीब और कमजोर लोग खाकर अपना पेट पालते हैं। मैं अगर मिट गया होता तो ये लोग भी बहुत खराब हालातों में होते।”

सर्फ पुदीना - लेकिन वो लोग कह रहे हैं कि तुम खत्म होने वाले हो। और वो तुम्हे बचाने की बात कर रहे हैं।

तभी वहां पर कुछ लोग आ गए। उनकी कमीज पर ‘लोकतंत्र रक्षक’ लिखा हुआ था। उन्होने कहा - “ देखो भाई सर्फ पुदीना। ये लोकतंत्र का पेड खतरे में है। हम इसे बचाने आए हैं। हम इसे बचाकर ही रहेंगे।

सर्फ पुदीना -“ लेकिन इस को तो कोई खतरा नजर नहीं आ रहा। अगर तुम्हे लग रहा है कि खतरा है तो कोई सोर्स बताओ इस जानकारी का”

लोकतंत्र रक्षक - “ जानकारी का सोर्स है - ‘ट्रस्ट मी ब्रो’। ट्रस्ट मी, ये खतरे में हैं।”

सर्फ पुदीना - “ ठीक है। लेकिन मुझे लग रहा है कि इसे कोई खतरा नहीं है”

लोकतंत्र रक्षक - “ सर्फ पुदीना। तेरी आंखों पर पट्टी लगी हुई है। तुझे दिख नहीं रहा खतरा। और फिर मैने बोला कि खतरा है तो खतरा है। मैं बहुत समझदार हूं ।”

सर्फ पुदीना - “अच्छा। ठीक है। अगर तुम इसे बचाने आए हो तो तुम्हारे हाथों में ये कुल्हाडी क्या कर रही है। कुल्हाडी हाथ में लेकर तुम इस लोकतंत्र के पेड को कैसे बचाओगे।”

लोकतंत्र रक्षक - “तुम मूर्ख हो। ये कुल्हाडी मैने इसे बचाने के लिए ही रखी है। इस पेड को मजबूत बनाने के लिए ही ये कुल्हाडी लाया हूं”

सर्फ पुदीना - “ तुम्हारे इरादे नेक नहीं लग रहे।”

लोकतंत्र रक्षक - “ तुम चुप रहो। हमें बोलने दो। हमें बोलने का अधिकार इस पेड ने दिया है। एकदम चुप हो जाओ”

सर्फ पुदीना - “ बडी अजीब बात है। मुझे चुप करवा कर खुद बोलने के अधिकार का फल खा रहे हो”

तभी वहां पर एक नवयुवक आया। करीब 18-20 साल का लग रहा था। उसकी कमीज पर मतदाता लिखा हुआ था। उसके हाथ में पानी का जग था। जग पर मतदान लिखा हुआ था। वो मतदान वाले जग में से लोकतंत्र के पेड की जडों में पानी देने वाला ही था तभी लोकतंत्र रक्षक चिल्लाया - “ क्या कर रहे हो मूर्ख। देखते नहीं कि ये खतरे में है।”

मतदाता - “ मैं इसे 75 सालों से पानी देता आया हूं। मैने पानी और खाद देकर इसे बडा किया है। मैं इसे जानता हूं। ये खतरे में नही हैं।”

लोकतंत्र रक्षक - “चुप रह। एकदम चुप। तू मूर्ख है। तुझे कुछ नहीं आता। इसे खतरा है।”

मतदाता- “ पिछले सालों में मैने बहुत बार ऐसा शोर सुना है। मैं  इसे हर बार खाद और पानी देता हूं। पेड लगातार मजबूत हो रहा है”

फिर मतदाता ने मतदान वाले जग में से लोकतंत्र के पेड को पानी दिया। पानी मिलने ही पेड की जडें और गहरी हो गई। पेड ने गर्जना की और तेज हवा चली। उस तेज हवा से लोकतंत्र रक्षक की कमीज उड गई और उसकी दूसरी कमीज दिखने लगी। दूसरी कमीज पर बहुत सारी डिजायन बनी हुई थी। उन पर लिखा हुआ था - सत्ता की भूख, सोशल मीडिया का ज्ञान, ब्रेनवॉश, फेक न्यूज, प्रोपगेंडा, अज्ञात फंडिंग आदि।


फिर सर्फ पुदीना ने लोकतंत्र के पेड से उसकी मजबूती का राज पूछा।

लोकतंत्र “ मेरी शक्ति का वर्णन संविधान नाम की किताब में है। किताब को 75 साल पहले  299 लोगों ने करोडों लोगों की राय से लिखा था। मेरी शक्ति का स्त्रोत भी वो संविधान ही है”

सर्फ पुदीना -  “ और उस संविधान की शक्ति का स्त्रोत क्या है?”

लोकतंत्र - “ संविधान की प्रस्ताव के शुरूआती शब्द - हम भारत के लोग। यानि भारत के लोगों से ही संविधान को शक्ति मिलती है। और उस संविधान से मुझे खाद और ऊर्जा मिलती है। जब तक संविधान है, मुझे कोई खतरा नहीं है”

सर्फ पुदीना - “ पर अगर किसी ने वो संविधान ही हटा दिया तो?”

लोकतंत्र - “ नहीं। संविधान कोई मृत पुस्तक नहीं है। यह सजीव पुस्तक है। इसकी शक्ति भारत के मतदाता से आती है। इसलिए ये खतरे में नहीं है”

सर्फ पुदीना - “ लेकिन वो लोग जो कह रहे हैं तुम खतरे में हो, उनका क्या”

लोकतंत्र - “तुमने देखा न, उनके हाथों में कुल्हाडी थी। फिर भी पूछ रहे हो”

सर्फ पुदीना - “हां। समझ गया। अब सब समझ गया। अच्छा एक बात और बताओ। तुम्हे और मजबूत कैसे बनाया जाए”

लोकतंत्र - “बस मतदान वाले दिन मतदान कर आओ। आंखें और कान खुली रखो। किसी के बहकावे में मत आओ। तुम खुद शक्तिशाली हो। और जब तक ये सब है, तब तक मैं सुरक्षित हूं”

फिर सर्फ पुदीना ने मुझे बताया - “ इतना बात कर रहे थे कि मेरी नींद खुल गई। मित्तल जी, अब मुझे शंका है”

मैं - “ कैसी शंका।”

सर्फ पुदीना - “ ये सब सुनने में तो ठीक लग रहा है, लेकिन ये था तो सपना ही। मान लो लोकतंत्र की रक्षा वाली कमीज पहने कुल्हाडीधारी लोग सही कह रहे हों, मान लो वास्तव में ही खतरा हो तो?”

मैं - “ तुम अपनी राय खुद बनाओ। खुद समझदार बनो। खुद दुनिया को देखो। लोकतंत्र के पेड ने जो कहा वो सही था। और मान लो कि वो खतरे में हो, तो सबसे पहले तुम उसकी रक्षा के लिए जाना। तुम तो खुद शक्तशाली हो न।”

सर्फ पुदीना - “ सही है। मैं चाहता हूं कि उसे खतरा न हो। लेकिन मित्तल जी। एक समस्या और है?”

मैं - “ वो क्या?”

सर्फ पुदीना - “ आप जो मेरे और आपके बीच की बातचीत लिख रहे हो, वो भी तो आपके दिमाग की कल्पना है। वास्तव में तो मैं हूं ही नहीं। लोग जो हमारी बातचीत पढ रहे हैं, वो भी तो कल्पना ही है। अगर वास्तविक दुनिया जिसमें आप रहते हों वो अलग हुई तो?”

मैं - “ भाई सर्फ पुदीना। बात मान लो काल्पनिक है, पर तर्क तो हमारे सही हैं न। लोग तो समझदार हैं न। वो सब अपने हिसाब से निर्णय़ लेंगे। बस भविष्य में कोई ऐसी घटना, जिसके होने की संभावन बहुत कम है, उसके होने का डर दिखाकर लोग तुम्हारा सुख चैन छीनना चाहेंगे। पर तुम अपना मस्तिष्क स्थिर बनाए रखो। खुद सोचो और खुद राय बनाओ। उसके हिसाब से निर्णय लो। पर इन सब में यह मत भूल जाओ कि तुम्हारी एक निजी जिंदगी भी है। वो भी तुम्हे आगे लेकर जानी है। तुम्हारे दोस्त, पडौसी, परिवार ये सब भी हैं। तुम्हारे लिए ये लोग भी महत्वपूर्ण हैं। कुछ बुरा होने के डर से इन से संबंध खराब मत करो। कुछ बुरा न हो जाए इसके लिए सजग हो सकते हो, लेकिन जो हुआ ही नहीं, जो भविष्य में है, उसकी चिंता करके वर्तमान और भविष्य न बिगाडो”

सर्फ पुदीना - “ लोग तो कहते हैं कि बातचीत किया करो। राजनैतिक बातचीत करो। भोले मत बनो, सच्चाई से मत भागो।”

मैं - “ हां। बात करो। लेकिन उन लोगों से करो जो सकारात्मक चर्चा करना चाहते हो। कुछ सीखना कुछ सिखाना चाहते हों। अगर कोई हठी बनकर, खुद को सबसे समझदार मानकर आपको मूर्ख समझकर गलत साबित करना चाहे तो उस से चर्चा करने में तो केवल समय ही खराब होगा। इससे अच्छा है कि तुम ‘बुक रीडिंग’ करके ज्ञान में बढोतरी करो”

सर्फ पुदीना - “ बात तो सही है। एक बात और है....”

मैं - “ आगे कोई बात बाद में करेंगे। लोग हमारी यहां तक की बातचीत ही शायद न पढें। और कोई यहां तक आ भी गया हो तो बोर हो गया होगा। इसलिए आगे की बात कभी और...”

इसके बाद सर्फ पुदीना अपने घऱ चला गया। पर इस बार उसके चेहरे से चिंता गायब थी और मुक्त सोच उसके चेहरे पर झलक रही थी।




-सौम्य

(SAUMY MITTAL

RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)



कावेरी इंजन - भारत का स्वदेशी फाईटर जेट इंजन

 सारांश-  किसी भी देश की सुरक्षा के लिए वर्तमान में फाईटर जेट अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस लेख में चर्चा की गई है कि फाईटर जेट के लिए इंजन का क्...