--राजनीति का चक्कर भारी--
राजनीति का चक्कर भारी।
सांप-नेवले करते यारी।।
दोनों मिलकर बीन बजाकर।
सत्ता हथियाने की तैयारी।।1।।
सहयोगों की कसमें खाते।
हलाहलों के गुण समझाते।।
कालकूट सा चरित्र छुपाकर।
पीयूष मुखौटे ये दिखलाते।।2।।
मौका पाकर रूप बदलते।
झांसा देते चलते-चलते।।
सड़क-दवाई-पानी-पुलिया।
चारा तक भी स्वयं निगलते।।3।।
रक्तपात की कर तैयारी।
जहर उगलते बारी-बारी।।
गाँधीजी की शपथ उठाकर।
छुरी छुपाने की होशियारी।।
राजनीति का चक्कर भारी
सांप नेवले करते यारी।।4।।
-सौम्य
(SAUMY MITTAL
RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)