Friday, September 20, 2024

‘वो’ की खून लगी रोटी

 

‘वो’ की खून लगी रोटी

‘वो’ बाबला था। शायद विक्षिप्त सा। एक लाठी लेकर चलता था। बाल बडे हुए थे। महीनों से नहाया नहीं था। कहीं और होता तो बच्चे उसे पागल-पागल कहकर चिढाते, पर पता नहीं इस बस्ती में कोई उसे परेशान नहीं करता था। लोग कहते थे कि वो पढा लिखा इंसान था पर किस्मत नें उसे इस हालत में ला दिया।कभी कोई खाने को देता तो वो ले लेता, पर अपने से कभी मांगता नहीं था। चुपचाप या तो सडक किनारे बैठा रहता या फिर कभी कभी गायब हो जाता। उसके कोई रिश्तेदार भी नहीं थे कोई।

एक जमाने में जब ‘वो’ एक नवयुवक ही था। अपने गुजारे के लिए अलग-अलग काम करता था। कभी किसी शादी-पार्टी में केटरिंग वालों के साथ काम कर लिया तो कभी किसी रैली के लिए पोस्टर चिपकाने का काम कर लिया। उसने बीए कर लिया था। लेकिन बीए से पेट नहीं भरता ना। इसलिए काम तो करना पडेगा ही। त्योहारों के टाईम पर हलवाईयों के यहां काम बहुत बढ जाता है। ऐसे मे हलवाई के यहां पर उसे काम मिल जाता था। काम तो अलग-अलग कर लेता था लेकिन उसका सपना था कि कोई एक जगह काम मिल जाए तो वो सैटल हो जाए। उन्ही दिनों सरकार ने गरीबों के लिए मकान बनवाने की योजना बनाई थी। उसने भी फॉर्म भर दिया। किस्मत अच्छी थी कि लॉटरी में उसका नाम आ गया। एक खाली बस्ती में उसको भी मकान मिल गया। मकान क्या था, केवल एक कमरा और एक शौचालय। लेकिन आसपास कोई रोजगार नहीं था तो उसने कहीं पर एक कमरा किराए पर ले लिया।  सस्ता सा था, बस सिर छुपाने लायक। कमरा भी नहीं था, बस ईंट पत्थर की कमजोर सी दीवारें और ऊपर टिन लगी हुई थी। वहीं थोडी दूरी पर एक ‘बडे आदमी’ का बंगला था। उसके पास दो-तीन कारें थीं। ‘वो’ चाहता था कि किसी तरह इन सेठजी के यहां ड्राईवर की नौकरी मिल जाए तो उसकी लाईफ भी सेटल हो जाएगी। एक रोजगार रहेगा तो अपना घर भी बसा लेगा। ‘बडे आदमी’ तो बडे होते हैं, उनकी आदतें भी बडी होती हैं। ‘बडे आदमी’ रोजाना सुबह घूमने जाता था। शायद मॉर्निंग वॉक कहते हैं उसे। ‘वो’ रोजाना ‘बडे आदमी’ को जाते हुए देखता और उसे नमस्ते कहता। बहुत दिनों तक यही चलता रहा तो ‘बडे आदमी’ ने उस से पूछा कि कौन हो, क्या काम करते हो। ‘वो’ बोला कि साब मैं यहां हर तरह का काम करता हूं। पर आपके यहां काम चाहिए। क्या आप मुझे ड्राईवर का काम दे सकते हैं। मैं आपके लिए बाकी काम भी कर दूंगा। मुझे बगीचे की देखभाल और साफ-सफाई का काम भी आता है। ‘बडे आदमी’ ने कुछ सोचा और फिर कहा कि देखते हैं, कुछ होगा तो मैं बता दूंगा। ‘वो’ खुश हो गया कि चलो यहां पर कुछ काम मिल जाएगा। एक दिन रात को वो किसी पार्टी में से काम करके आ रहा था तब उसने देखा कि दो-तीन लोग झगडा कर रहे हैं और एक बुजुर्ग से कुछ छीन कर जा रहे हैं। ‘वो’ डर गया लेकिन उसने हिम्मत करके कुछ चिल्लाया तो उनमें से एक ने इसके सिर पर डंडा दे मारा। ‘वो’ गिर गया और बेहोश हो गया। कुछ दिनों के कोमा के बाद सरकारी बेड पर उसकी आंख खुली। दो दिन के बाद उसे वहां से छुट्टी दे दी। वो वापस कमरे पर आ गया। लेकिन उसका शरीर अब साथ नहीं दे पाता था। वो विक्षिप्त सा हो गया था। कोई काम नहीं कर पाता था।  उसके जमा पैसे खाने पीने में खर्च हो गये। किराया नहीं दे पाया तो मालिक ने निकाल दिया। वो वापस अपने सरकार से मिले छोटे से घर में रहने लग गया।  अब तक इस बस्ती में आसपास और भी  लोग रहने लग गए थे। ये यहीं रहने लग गया। थोडा बहुत काम अगर कर पाता तो कर लेता जिस से खाना मिल जाए। वक्त गुजरता गया और उसका दिमाग कमजोर होता गया। धीरे धीरे वो विक्षिप्त सा बन गया। लोग उसको देखते आए थे इसलिए उसे भगाते नहीं थे बल्कि दया दिखाते थे। कोई न कोई कुछ खाने को दे देता कभी कभी। पास में एक ढावा खुला था। ढावे वाले को लगता था कि जब ढावे वाला ‘वो’ को खाना दे देता है तो उसकी दुआ लगती है। कभी कभी कोई न कोई खाने को दे ही देता। अगर कोई उसे पैसे देता तो वो पैसे के लिए मना कर देता। बस कोई खाना दे दे तो रख लेता था।

फिर कोरोना आ गया। इस ढावे बंद हो गए। लोगों ने एक दूसरे से मिलना बंद कर दिया। ‘वो’ बस घूमता या घऱ में रहता। उसे खाना मिलना भी बंद सा हो गया। कमजोर हो गया था वो। उसके रिश्तेदार भी नहीं थे कोई।

भूखा घूम रहा था एक दिन। रोटी नहीं मिली थी कहीं से। आस पास वालों को ये ख्याल नही आ पाया कि इसको तीन चार दिन से खाना नहीं मिला होगा। शाम का वक्त था, रात होने वाली थी, थोडा अंधेरा सा था। थोडी दूर पर एक चबूतरा था जहां पर लोग जानवरों के लिए कभी कभी पुराना चावल या बासी रोटी डाल देते थे। ‘वो’ वहां गया और वहां पडी हुई एक रोटी उठा लाया। थोडी गंदी थी रोटी, पर कोई बात नहीं। उसने प्याउ के नल से रोटी को धो लिया और अपने घर की तरफ गया ताकि वहां खा सके। तभी वहां से ‘बडे आदमी’ गाडी से निकला। ‘बडे आदमी’ को देखकर इसने नमस्ते किया। इसे लगा कि शायद आज ‘बडे आदमी’ इसे काम देने आया है। लेकिन ‘बडे आदमी’ को लगा कि कोई भिखारी है जो पैसे मांगेगा। ‘बडे आदमी’ ने गाडी तेजी से निकाली। इसको हल्की सी टक्कर लगी। ‘वो’ गिर गया। थोडा सा खून निकल आया सिर से। रोटी पर लग गया था हल्का सा खून। ये अपने घर में चला गया। रोटी को कोने में रख दिया और अपनी बनियान को फाड कर सिर पर बांध लिया ताकि खून रूक जाए। पर खून रूका नहीं। रुकता भी कैसे, शरीर में जान ही नहीं थी। वो सडक की तरफ आया, और सडक पर पहुंचने से पहले गिर गया। खून तो रूक गया पर साथ में सांस भी रुक गई। मर गया था शायद। सोच रहा होगा कि मर ही  जाउँ। भूखा आदमी मर भी नहीं सकता। पर वो बेशर्म था, भूखा होकर भी मर गया। सवेरे किसी ने देखा कि ‘वो’ तो मर गया। अच्छा आदमी था कहकर लोगो नें सोचा कि इसको मरने के बाद तो इज्जत से विदा कर दें। सबनें चंदा इक्ट्ठा किया और किसी को बुलाकर इसका अंतिम संस्कार करवा दिया।  अब ‘वो’ का घर खाली था। चार दिन हो गए। लोग कहते हैं कि उसमें ‘वो’ का भूत रहता है।

सात दिन बाद दो तीन लोग आए। ‘वो’ का घऱ देखने लगे। किसी ने पूछा कि आप लोग कौन हो, तो उन्होने बताया कि ये लोग ‘वो’ के रिश्तेदार हैं, और ‘वो’ के मरने के बाद ये घर रिश्तेदारों का हुआ। रिश्तेदार ‘वो’ के घर को बेच देंगे किसी खरीददार को। खरीददार को ‘वो’ का घर दिखाया जाने लगा। लोग अंदर गए तो बदबू थी। वहां कोने में रोटी पडी थी। खून लगी सूखी रोटी। खरीददार ने पूछा कि ये सब क्या है।

रिश्तेदार ने बोला कि आप चिंता मत करो, मैं इसे साफ करवा दूंगा। आप तो प्लॉट की डील फाईनल करो।

खरीददार ने पूछा – वो तुम्हारा रिश्तेदार ही था क्या। वो ऐसे हालात में रहता था। तुमने मदद क्यों नहीं कि?

रिश्तेदार ने कहा – कौन मुंह लगता उस बाबले के।  ‘वो’ पागल था ससुरा। खुद का खून लगाकर रोटी खाता था...

... सब हंसने लगे। प्लॉट की डील फाईनल हो गई।...




-सौम्य

(SAUMY MITTAL

RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)

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