Thursday, May 30, 2024

गज गर्जन

 गज गर्जन


धूम्र विकट, मौत निकट
और भयंकर शिर-पीडा।
दाह जलन, कटि विचलन
सिंह शिकारित मृगक्रीडा।।


तडित दंड सा खण्ड-खण्ड
और विखण्डित मन सारा।
लहू ठण्ड व वेग प्रचण्ड
कालनेमी सम हत्याारा।।

कर नाम अमर, गदा पकड
संचय करके बल सारा।
कर गज गर्जन व रिपु मर्दन
चिता शयन कर भव पारा।।


भाव-

भयानक नजारे में  जब धुआं ही धुआं उठता जा रहा है और मृत्यु निकट प्रतीत हो रही है। सिर में भयंकर पीडा हो रही है। पूरे शरीर में ऐसे जलन हो रही है जैसे भयंकर जला दिया गया हो और अस्थियां व कमर अपने स्थान से हिल गई हैं। जिस प्रकार सिंह के द्वारा शिकार किया गया मृग मृत्यु के निकट वाली क्रिया करता हैं, वैसे ही शरीर तडप रहा है। 
जिस प्रकार तडित अर्थात बिजली का प्रहार होने पर सब कुछ खण्ड-खण्ड हो जाता है, उसी तरह सारी भावनाएं और आंतरिक शक्तियां खण्डित हो गई हैं। रक्त एक दम ठण्डा हो गया है और तेज वेग से शरीर से बहता जा रहा है। सामने कालनेमी के समान वेश बदलकर हमला करने वाला हत्यारा खडा है।
अब कुछ भी शेष नहीं है। मृत्यु निकट है, पर एक अवसर बाकी है। अपना नाम अमर करके, शस्त्र धारण करके और अपने अंदर वाला सारा बल एकत्र कर ले, हाथी के समान गर्जना कर सामने खडे कालनेमि जैसे हत्यारे पर पूरी शक्ति से प्रहार कर। उसके बाद मृत्यु को अपना कर, चिता पर लेट कर इस संसार से गर्व के साथ वीरों के समान विदा ले।


-सौम्य

(SAUMY MITTAL

RESEARCH SCHOLAR, UNIVERSITY OF RAJASTHAN)

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